माहिरों की मानें तो ट्रंप नाराज हुए मोदी के ताजा रवैये से !
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को भारत पर 25 फ़ीसदी अतिरिक्त टैरिफ़ लगाने के एग्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर साइन किए। इसके साथ भारत पर कुल अमेरिकी टैरिफ़ 50 फ़ीसदी हो गया, भारत पर नए टैरिफ़ 27 अगस्त से लागू होंगे। यह खबर देश-दुनिया में सुर्खियों में बनी है।
टैरिफ़ लगाने के पीछे ट्रंप ने दलील दी है कि भारत रूस से तेल ख़रीद कर यूक्रेन की जंग को बढ़ावा दे रहा है। हालांकि, भारत ने ट्रंप का फ़ैसला बेबुनियाद बताते कहा कि कई यूरोपीय देशों समेत अमेरिका भी रूस से व्यापार कर रहा है। काबिलेजिक्र है कि भारत के अलावा चीन भी रूस का बड़ा व्यापारिक साझेदार है, लेकिन ट्रंप ने भारत पर ही टैरिफ़ लगाया है। जब ट्रंप से बीबीसी संवाददाता एंथनी ज़र्चर ने सवाल किया कि ‘चीन सहित कई देश रूस से तेल खरीद रहे हैं, तो भारत को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा ? वह बोले, अभी तो सिर्फ 8 घंटे ही हुए हैं, देखते हैं आगे क्या होता है, आपको और भी बहुत कुछ देखने को मिलेगा। क्या अमेरिका की चीन पर भी अतिरिक्त टैरिफ़ लगाने की कोई योजना है ? इस पर ट्रंप ने कहा,ऐसा हो सकता है, यह इस पर निर्भर है कि हम आगे क्या कदम उठाते हैं।
हाल ही में ट्रंप ने ट्रेड डील की समय सीमा समाप्त होने के बाद 90 से ज़्यादा देशों पर नए टैरिफ़ लगाने की घोषणा की थी। ट्रंप ने जिन देशों पर हाई टैरिफ़ लगाया है उनमें ब्रिक्स के देश भी शामिल हैं। चीन, रूस का भारत से बड़ा व्यापारिक साझेदार है, फिर भी चीन पर भारत से कम टैरिफ़ लगाए जाने पर जानकार कई तरह के तर्क देते हैं। ब्लूमबर्ग की सीनियर ग्लोबल अफ़ेयर्स अनालिस्ट करिश्मा वासवानी के मुताबिक चीन ने टैरिफ़ के मामले में बड़ी ही समझदारी से काम किया। उसकी कूटनीति काफ़ी परिपक्व रही है। अमेरिका और चीन दोनों जानते हैं कि उनकी कारोबारी ज़रूरतें कैसे पूरी होती हैं। कई दौर की बातचीत के बाद टैरिफ़ में लगातार कमी यह साफ़ दर्शाता है कि चीन की स्थिति कितनी मज़बूत है। वहीं अमेरिका स्थित दक्षिण एशिया के विश्लेषक माइकल कुगलमैन भारत पर ज़्यादा और चीन पर कम अमेरिकी टैरिफ़ पर कहते हैं कि चीन ने अमेरिका को नाराज़ नहीं किया। भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल भी ट्रंप के इस रवैये पर सवाल उठाते हैं। उनके मुताबिक ट्रंप भारत को ‘टैरिफ़ किंग’ कहकर लगातार निशाना बना सकते हैं, टैरिफ़ लगाने की धमकी दे सकते हैं, कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की इच्छा जता सकते हैं, लेकिन मोदी उन्हें यह भी नहीं बता सकते कि क्या सही है और क्या ग़लत ?
असल बात, कभी मोदी के साथ गर्मजोशी से हाथ मिलाने वाले ट्रंप अब उनके ख़िलाफ़ क्यों हो गए हैं ? अतीत पर नज़र दौड़ाएं तो इसके संकेत पहले ही मिलने लगे थे। कूटनीति के जानकारों ने चेतावनी दी थी कि आपसी संबंधों पर व्यक्तिगत केमिस्ट्री को तरजीह नहीं दी जानी चाहिए। मोदी और ट्रंप के बीच दोस्ती पर मीडिया की कवरेज देखने में तो अच्छी लगती होगी, लेकिन ये दो देशों के बीच रिश्तों की जटिलताओं को नहीं दिखाती। आख़िरकार निजी रिश्ते राजनीति में काम नहीं आए। ट्रंप की सियासत में जज़्बात अहमियत नहीं रखते। जानकार मानते हैं कि भारत तेल या व्यापार के मसले पर ट्रंप से सहमत नहीं हुआ, उसी की वजह से सब कुछ हो रहा है।
भारत और अमेरिका के बीच कई दौर की बातचीत के बावजूद व्यापार समझौता नहीं हो पाया। इसके पीछे की वजह भारत के कृषि और डेयरी सैक्टर में अमेरिका को छूट नहीं देना है। बीबीसी हिन्दी के शो ‘द लेंस’ में प्रोफ़ेसर शॉन रे ने कहा, अमेरिका चाहता है कि कृषि और डेयरी क्षेत्र भारत खोल दे। हमने यूके के साथ भी समझौता किया है और ये क्षेत्र नहीं खोले हैं।
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