अगर बजाज ने अपने इलैक्ट्रिक वाहन बनाने किए बंद तो भारत के लिए होगी बड़ी चुनौती
भारत की इलैक्ट्रिक वाहन यानि ईवी आकांक्षाओं के लिए गंभीर संकेत मिले हैं। देश की दूसरी सबसे बड़ी इलैक्ट्रिक स्कूटर निर्माता कंपनी बजाज ऑटो अपने प्रमुख चेतक इलैक्ट्रिक स्कूटर और गोगो इलैक्ट्रिक थ्री-व्हीलर का उत्पादन अगस्त में पूरी तरह से बंद करने की तैयारी कर रही है। इसकी वजह चीन द्वारा हाल ही में लगाए गए निर्यात प्रतिबंधों के कारण दुर्लभ मृदा चुम्बकों की कमी है।
बजाज कंपनी के प्रबंध निदेशक राजीव बजाज ने पुष्टि की है कि कंपनी को ‘शून्य माह’ का सामना करना पड़ सकता है। उद्योग जगत की भाषा में यह एक ऐसा महीना होता है, जिसमें कोई उत्पादन नहीं होता। ऐसे बजाज ऑटो संभावित रूप से पहली भारतीय वाहन निर्माता कंपनी बन जाएगी, जो महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं को लेकर बढ़ते भू-राजनीतिक विवाद के कारण ईवी उत्पादन बंद कर देगी। हालांकि कंपनी ने जून में मौजूदा स्टॉक को कम करके पूरा उत्पादन किया, लेकिन जुलाई के उत्पादन की मात्रा पहले ही आधी हो चुकी है। दुर्लभ मृदा चुम्बक ना केवल ईवी के लिए, बल्कि कई आधुनिक तकनीकों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। यह आंतरिक दहन इंजन घटकों से लेकर नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, एयरोस्पेस प्रणालियों और राष्ट्रीय रक्षा उपकरणों तक के लिए अहम है। इनका छोटा आकार इनके सामरिक महत्व को झुठलाता है और आज, चीन वैश्विक आपूर्ति के 80% से अधिक को नियंत्रित करता है।
इन सामग्रियों के निर्यात पर बीजिंग की कड़ी पकड़ दुनिया भर में तेज़ी से महसूस की जा रही है। हालांकि भारत के नवजात इलैक्ट्रिक वाहन क्षेत्र में इसकी गंभीरता कहीं और नहीं है। उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन कार्यक्रम जैसी योजनाओं के तहत सरकारी प्रोत्साहनों के बावजूद, आयातित पुर्जों पर भारत की निर्भरता, शेष रूप से चीन से, इसके हरित औद्योगिक परिवर्तन की कमज़ोरी को उजागर करती है। यह पहली बार है, जब हम किसी प्रमुख भारतीय वाहन निर्माता को चीन से कच्चे माल की कमी के कारण उत्पादन रुकने की बात खुले तौर पर स्वीकार करते हुए देख रहे हैं। यह नीति निर्माताओं के लिए एक चेतावनी होनी चाहिए। यह बात एक वाहन विश्लेषक ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा।
राजीव बजाज ने भारत सरकार से मौजूदा आपूर्ति संकट और निकट भविष्य के दृष्टिकोण के बारे में स्पष्ट संवाद प्रदान करने का आग्रह किया है। साथ ही पूरे उद्योग जगत में व्याप्त चिंता की ओर इशारा किया है। उन्होंने कहा, संबंधित मंत्रालय या किसी अन्य नियामक प्राधिकरण से कोई निर्णायक जानकारी नहीं मिली है। जहां भारत ने वैश्विक ईवी केंद्र बनने की साहसिक घोषणाएं की हैं, वहीं उसकी औद्योगिक नीति तेज़ी से बदलते वैश्विक बदलावों का जवाब देने में सुस्त बनी हुई है। घरेलू ईवी निर्माताओं ने पीएलआई योजना के तहत, विशेष रूप से स्थानीयकरण संबंधी अनिवार्यताओं के संबंध में, बार-बार अधिक व्यावहारिक अनुपालन समय-सीमा की मांग की है। यह तर्क देते हुए कि दुर्लभ मृदा चुम्बकों जैसे महत्वपूर्ण घटकों के लिए एक घरेलू पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कोई अल्पकालिक कार्य नहीं है।
वर्तमान संकट भारत के लिए दुर्लभ मृदा अन्वेषण, प्रसंस्करण और चुम्बक निर्माण क्षमताओं में तेज़ी लाने की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है। हालांकि भारत में दुर्लभ मृदा भंडार हैं। मुख्य रूप से तटीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले मोनाज़ाइट रेत, देश ने इन सामग्रियों को बड़े पैमाने पर संसाधित करने या उन्हें उच्च-प्रदर्शन चुम्बकों में बदलने के लिए आवश्यक उन्नत धातु विज्ञान विकसित करने के लिए बहुत कम काम किया है। साल 2030 तक 30% ईवी पैठ का लक्ष्य रखने वाले देश के लिए, इसके निहितार्थ बेहद गंभीर हैं। रणनीतिक कच्चे माल नीति और तेज़ नियामक स्पष्टता के बिना भारतीय ईवी निर्माताओं को बाहरी आपूर्ति झटकों का सामना करना पड़ सकता है। सरकार को कार्रवाई करने में जितना अधिक समय लगेगा, घरेलू निर्माता उतने ही कमज़ोर होते जाएंगे। यहां काबिलेजिक्र है कि बजाज ऑटो की दुर्दशा सिर्फ़ आपूर्ति श्रृंखला में रुकावट नहीं है। यह भारत की ईवी महत्वाकांक्षा के लिए एक तनाव परीक्षा है। और अभी, यह व्यवस्था तनाव के संकेत दे रही है।
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