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गुस्ताख़ी माफ़

गुस्ताख़ी माफ 20.4.2024   चाहे बारिश या हवा, चाहे हो तूफान। भर दूंगा नुक़सान सब, मान रहे हैं मान। मान रहे हैं मान, फ़िक्र मत करना यारो। आप मज़े से बैठ, सड़क पर धरना मारो। कह साहिल कविराय, लगा देना तुम फाहे। खुलकर मांगों यार, ख़राबा जितना चाहे।   प्रस्तुति — डॉ. राजेन्द्र साहिल

गुस्ताख़ी माफ़

गुस्ताख़ी माफ़ 18.4.2024   बंटवारे से टिकट के, विकट हुआ टकराव। कइयों को दिखता नहीं, पूरा होता चाव। पूरा होता चाव, मची है मारा-मारी। तोपें उल्टी घुमा, कर रहे गोला-बारी। कह साहिल कविराय, अड़े बैठे हैं सारे। अटक हलक में गये, टिकट के ये बंटवारे।   प्रस्तुति — डॉ. राजेन्द्र साहिल

गुस्ताख़ी माफ़

गुस्ताख़ी माफ 16.4.2024   बंटवारे से टिकट के, विकट हुआ टकराव। कइयों को दिखता नहीं, पूरा होता चाव। पूरा होता चाव, मची है मारा-मारी। तोपें उल्टी घुमा, कर रहे गोला-बारी। कह साहिल कविराय, अड़े बैठे हैं सारे। अटक हलक में गये, टिकट के ये बंटवारे।   प्रस्तुति — डॉ. राजेन्द्र साहिल

गुस्ताख़ी माफ़

गुस्ताख़ी माफ़ 15.4.2024   मामे-फुफ्फड़ हम सभी, पक्के रिश्तेदार। दल हो कोई भी भले, मगर एक परिवार। मगर एक परिवार, लीडरों में है एका। मिलजुल कर है लिया, सियासत का हर ठेका। कह साहिल कविराय, समझते सबको कुक्कड़। दाने देते डाल, मौज़ लें मामे-फुफ्फड़।   प्रस्तुति — डॉ. राजेन्द्र साहिल

गुस्ताख़ी माफ़

गुस्ताख़ी माफ़ 14.4.2024   मामे-फुफ्फड़ हम सभी, हम सब रिश्तेदार। दल हो कोई भी भले, मगर एक परिवार। मगर एक परिवार, लीडरों में है एका। मिलजुल कर है लिया, सियासत का हर ठेका। कह साहिल कविराय, समझते सब को कुक्कड़। दाने देते डाल, मौज़ लें मामे-फुफ्फड़।   प्रस्तुति — डॉ. राजेन्द्र साहिल

गुस्ताख़ी माफ़

गुस्ताख़ी माफ 11.4.2024   क्या करना रहकर यहां, खाली जब खलिहान। जिस घर में चुग्गा मिले, भर ले उधर उड़ान। भर ले उधर उड़ान, डालता है जो दाने। उसकी छतरी बैठ, उसी के गा तू गाने। कह साहिल कविराय, किसी से अब क्या डरना। दल-वल जल्दी बदल, सोच ले क्या है करना।   प्रस्तुति — … Read more

गुस्ताख़ी माफ़

गुस्ताख़ी माफ़ 10.4.2024   मौक़ा मिलते ही करें, घर अपना आबाद। किसी बड़े परिवार के, बन जायें दामाद। बन जायें दामाद, सियासत में हो सारे। करें देश पर राज, दलों के बनें दुलारे। कह साहिल कविराय, लगायें डेली चौका। मिले सियासी सास, किसे मिलता है मौक़ा।   प्रस्तुति — डॉ. राजेन्द्र साहिल

गुस्ताख़ी माफ़

गुस्ताख़ी माफ़ 8.4.2024   जारी होते जा रहे, सभी घोषणा-पत्र। जाल बिछाने में जुटे, नेता-गण सर्वत्र। नेता-गण सर्वत्र, बताते ख़ुद को माली। सब्ज़ बाग़ में नई, खिला देंगे हरियाली। कह साहिल कविराय, वायदे भारी-भारी। वोटर कैसे पटे, कंपटीशन है ज़ारी।   प्रस्तुति —- डॉ. राजेन्द्र साहिल

गुस्ताख़ी माफ़

गुस्ताख़ी माफ 7.4.2024 हर बाबा के पास है, भक्तों की भरमार। थोड़ी भी यदि हो कृपा, बेड़ा लगता पार। बेड़ा लगता पार, लगा देते जब धक्का। जहां-जहां हैं भक्त, जीतना बिल्कुल पक्का। कह साहिल कविराय, किये बिन शोर-शराबा। गुपचुप झटकें कृपा, खड़ा उत्सुक हर बाबा। प्रस्तुति — डॉ. राजेन्द्र साहिल

गुस्ताख़ी माफ़

गुस्ताख़ी माफ़ 7.4.2024   हर बाबा के पास है, भक्तों की भरमार। थोड़ी भी यदि हो कृपा, बेड़ा लगता पार। बेड़ा लगता पार, लगा देते जब धक्का। जहां-जहां हैं भक्त, जीतना बिल्कुल पक्का। कह साहिल कविराय, किये बिन शोर-शराबा। गुपचुप झटकें कृपा, खड़ा उत्सुक हर बाबा।   प्रस्तुति — डॉ. राजेन्द्र साहिल