गुस्ताख़ी माफ़
गुस्ताख़ी माफ 20.4.2024 चाहे बारिश या हवा, चाहे हो तूफान। भर दूंगा नुक़सान सब, मान रहे हैं मान। मान रहे हैं मान, फ़िक्र मत करना यारो। आप मज़े से बैठ, सड़क पर धरना मारो। कह साहिल कविराय, लगा देना तुम फाहे। खुलकर मांगों यार, ख़राबा जितना चाहे। प्रस्तुति — डॉ. राजेन्द्र साहिल