वह सावन…..और यह सावन !
*वह सावन…..और यह सावन!* वे झूले… पंछी, वह कच्चा आंगन! अब… कंकरीट के जंगल हैं.. खो गई महक वह.. मनभावन! *विनीता जॉर्ज* *मरवाही छत्तीसगढ़* सावन आ गया है और बरस भी रहा है, जैसे बरसता आया है…पर वह त्योहारी शिद्द्त… वह रिश्तों की हरियाली…बरगद, नीम की वह डाली और झूले पर वह … Read more