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तपस्वी जीवन का प्रेरक प्रकाश: स्वामी पूर्ण बन जी महाराज

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6 जनवरी पुण्यतिथि पर विशेष

मोहित सिंगला-तपा द्वारा

स्वामी पूर्ण बन जी महाराज का जीवन त्याग, सेवा और आध्यात्मिकता का अनुपम उदाहरण है। कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में जन्मे स्वामी जी ने बचपन में ही अपने माता-पिता को खो दिया। इन गहन दुखद घटनाओं ने उनके जीवन को नई दिशा दी और उन्हें तपस्वी संत बनने की प्रेरणा दी। उनका संपूर्ण जीवन मानवता की सेवा, अध्यात्म की साधना और समाज कल्याण के लिए समर्पित रहा।

स्वामी जी का जन्म एक कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में हुआ। छोटी आयु में ही उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया, जो उनके जीवन का सबसे बड़ा आघात बना। अपने पिताजी की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करने के बाद जब वे घर लौटे, तो पाया कि उनकी माता भी इस संसार को छोड़ चुकी थीं। इन हृदय विदारक घटनाओं ने स्वामी जी के जीवन को पूरी तरह बदल दिया। सांसारिक मोह-माया से विमुक्त होकर उन्होंने आध्यात्मिक साधना का मार्ग चुना।

स्वामी पूर्ण बन जी ने ज्वालामुखी धाम में स्वामी जगन्नाथ बन जी महाराज से दीक्षा ली। उनके मार्गदर्शन में उन्होंने आत्मसाक्षात्कार और सेवा का वह मार्ग अपनाया, जिसने समाज में उन्हें एक महान संत के रूप में स्थापित किया। उनके तप और साधना ने उन्हें आध्यात्मिक शक्ति और श्रद्धालुओं का अनमोल आशीर्वाद प्रदान किया।

स्वामी पूर्ण बन जी ने अपने तपस्वी जीवन में जो कार्य किए, वे आज भी समाज को प्रेरणा देते हैं।

• स्वामी जी ने ज्वालामुखी में गीता भवन का निर्माण करवाया। यहां पर हजारों श्रद्धालुओं के ठहरने की व्यवस्था भी है ।यह स्थान आज अध्यात्म और धर्म का प्रमुख केंद्र है, जहाँ हजारों श्रद्धालु उनकी शिक्षाओं से प्रेरणा प्राप्त करते हैं।

 

• उन्होंने शिक्षा को जीवन का आधार मानते हुए हजारों बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने में मदद की। उन्होंने अपने शिष्यों के माध्यम से छात्रों की पढ़ाई और उनकी उन्नति की व्यवस्था की।

 

• स्वामी जी का जीवन सेवा को समर्पित था। उन्होंने समाज के पीड़ित और वंचित वर्गों की सहायता के लिए अनेक कार्य किए।

• स्वामी जी ने असंख्य श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक मार्गदर्शन दिया। उनके उपदेश और शिक्षाएँ जीवन की कठिनाइयों से लड़ने का साहस प्रदान करती हैं।

स्वामी पूर्ण बन जी का तपस्वी जीवन समाज के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने सिखाया कि जीवन के आघात और कठिनाइयाँ हमें आत्मिक ऊँचाई तक पहुँचने का अवसर प्रदान करती हैं। उनका त्याग और सेवा भाव इस सत्य को प्रमाणित करता है कि सच्चा सुख सेवा और आत्मज्ञान में निहित है।

 

5 और 6 जनवरी 1987 की मध्यरात्रि, स्वामी पूर्ण बन जी महाराज इस नश्वर संसार को छोड़कर अपने परलोक गमन को प्राप्त हुए। उनकी समाधि उनकी तपोभूमि शिववाड़ी, ज्वालामुखी में स्थित है। यह स्थान आज भी उनके भक्तों के लिए श्रद्धा और प्रेरणा का केंद्र है। हर वर्ष 6 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि शिववाड़ी में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है।

स्वामी पूर्ण बन जी महाराज का जीवन त्याग, तपस्या और सेवा का ऐसा दीपक है, जो युगों तक समाज को आलोकित करता रहेगा। उनकी शिक्षाएँ और कार्य हमें यह सिखाते हैं कि सच्ची सफलता केवल आत्मसाक्षात्कार और सेवा से ही प्राप्त हो सकती है। उनका तपस्वी जीवन हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा।

“स्वामी पूर्ण बन जी महाराज की शिक्षाएँ और तपस्वी जीवन आज भी समाज को मानवता और धर्म का सही मार्ग दिखाते हैं।”

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मोहित सिंगला, तपा मंडी |जिला बरनाला (पंजाब)।

 

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