लुधियाना 16 मार्च : मृत्यु सत्य है और शरीर नश्वर है, यह जानते हुए भी अपनों के बिछड़ने का दुःख असहनीय होता है। फिर भी कुछ विलक्ष्ण व्यक्तित्व के व्यक्ति दिलों में इस तरह से उतर जाते हैं कि इस संसार से चले जाने के पश्चात भी अमर बनना। हमेशा मुस्कुराना, हंसाना और सब कुछ मार्गदर्शक करने वाले धर्मपाल शर्मा (91) का जीवन भी ऐसा ही था। हसंमुख, समाज सेवक, कर्त्तव्यपरायण, कर्मयोगी, दयालु, विनम्र और बहुत ही मिलनसार व्यक्तित्व के स्वामी स्व. धर्मपाल शर्मा जी की छवि उनको जानने एवं मिलने वालों के मन में कभी भी फीकी नहीं पड़ सकती। श्री धर्मपाल शर्मा का जन्म 1933 में पंजाब के गिल में हुआ था गांव में पंडित आत्मा राम तथा बसंती देवी के पांचवें पुत्र के रूप में हुआ। अपने सभी भाई-बहनों की भांति शुरू से ही परिश्रम करने वाले रहे हैं। दसवीं कक्षा उतीर्ण करने पश्चात किशोरावस्था में ही धर्मपाल जी ने विभिन्न प्रकार के परिश्रम के कार्य करते हुए जीविका कमानी आरम्भ कर दी थी। सन् 1954 में इन्हें भारतीय रेल में सरकारी नौकरी प्राप्त हो गई। लग्न, परिश्रम तथा इमानदारी से अपनी जिम्मेदारी को निभाते हुए ये जल्दी ही रेल विभाग में एक साधारण कर्माचारी से पदोन्नत होते-होते उच्च कोटि के ड्राईवर पद पर आसीन हो गए। धर्मपाल शर्मा ने डीजल इंजन वाली रेलगाड़ियां भी चलाई हैं, परंतु डीजल इंजन के आने से पहले बहुत वर्षों तक स्टीम इंजन वाली रेलगाड़ियां भी चलाई हैं, जिनको चलाने के लिए अति शारीरिक कष्ट झेलना पड़ता था। आजकल की युवा पीढ़ी के लिए ग्रीष्म ऋतु में ईंधन डालते हुए स्टीम इंजन चलाना एक असंभव-सा कार्य है। धर्मपाल शर्मा को उनके द्वारा हमेशा सतर्क रहकर अपने कठिन कर्त्तव्य को पूर्ण निष्ठा से निभाने के लिए भारतीय रेल विभाग द्वारा चार बार विशेष रूप से पुरस्कृत एवं सम्मानित किया गया। धर्मपाल शर्मा को कई बार स्वास्थ चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इसलिए सन् 1989 में धर्मपाल शर्मा स्वेच्छा से सेवा निवृत हो गए, परन्तु हठयोगी एवं कर्मयोगी धर्मपाल शर्मा सेवा निवृति के ततपश्चात् भी अपने जीवन के अंत तक रेलवे यूनियन के सदस्य रहे तथा समाज सेवा का कार्य भी निरंतर करते रहे। सन् 1955 में धर्मपाल शर्मा का विवाह मला रानी के साथ हुआ। अपनी दो पुत्रियों विजय लक्ष्मी (रानी), प्रवीन (पिंकी) तथा पुत्र विनोद शर्मा का पालन-पोषण बढ़िया ढंग से करते हुए अलंकृत किया। अपने पीछे एक भरा पूरा परिवार छोड़कर गए हैं, जिनमें बेटा-बहु, बेटियां-दामाद, पौत्र-पौत्री, नातिन है, जो छवि बनकर समाज में परिवार का मान-सम्मान बढ़ा रहे हैं। श्याम नगर बस स्टैंड नजदीक रेलवे कालोनी के लिए शिव मन्दिर की स्थापना धर्मपाल शर्मा ने की थी तथा इस मंदिर के लिए प्रत्येक प्रकार से सेवा का योगदान प्रधान के तौर पर निरंतर करते रहे हैं तथा अपने प्रधान के पद से त्यागपत्र अपने निधन से चार-पांच दिन पहले ही दिया। इसके अतिरिक्त धर्मपाल शर्मा परशुराम सभा, ब्रह्मण सभा तथा राष्ट्रीय सेवा संघ के सक्रिय सदस्य 90 वर्ष की आयु तक रहे। इन सभी सभाओं में इनका हर प्रकार का योगदान रहा है तथा हमेशा सभी सदस्यों का मार्गदर्शन किया है। बी.आर.एस. के बी-ब्लॉक के फ्लावर डेल पार्क की कार्यकारिणी सभा के सदस्य के तौर पर जीवन के अंतिम समय तक भूमिका निभाई है। इतना ही नहीं अपितु 90 वर्ष की आयु तक धर्मपाल शर्मा हर कार्य क्षेत्र में स्वाबलम्बी रहते हुए स्वयं स्कूटर चलाकर हर कार्य को कर्त्तव्य को सम्पन्न करते रहे हैं। वृन्दावन में टोपी कुंज में शर्मा जी ने गुरु धारण किए तथा हर वर्ष वहां दर्शन के लिए जाते रहे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी धर्मपाल शर्मा ने अपने विनम्र एवं हंसमुख स्वभाव के कारण प्रत्येक मिलने वाले के दिलों में विशेष स्थान बनाया तथा सभी के प्रेरणास्त्रोत रहे। स्व. श्री धर्मपाल शर्मा की रस्म पगड़ी 17 मार्च दोपहर 1 से 2 बजे तक नवदुर्गा मंदिर, सराभा नगर, लुधियाना में होगी।
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