लुधियाना 6 मार्च। ताजपुर रोड पर सेंट्रल जेल के पास मौजूद 600 करोड़ की बेशकीमती 32 एकड़ जमीन के असली मालिक को लेकर सस्पेंस बरकरार है। आखिर इस जमीन का असली मालिक कौन है, इसके बारे में 15 दिन बाद भी पता नहीं चल सका है। जहां एक तरफ दो पक्षों द्वारा खूनी खेल खेलते हुए खुद को इस जमीन का मालिक बताया जाता है। वहीं यह जमीन सरकारी यानि कि नगर निगम की बताई जा रही है। यहां तक कि निगम पहले खुद इस जमीन पर कब्जा भी ले चुका है। लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि अभी भी जमीन के असली मालिक नहीं मिल पा रहे। चौंकाने वाली बात तो यह है कि पुराने सरकारों में रहे मंत्रियों व विधायकों द्वारा सरेआम बताया जा रहा है कि यह जमीन निगम की है। लेकिन फिर भी निगम आखिर कब्जा लेने से क्यों कतरा रहा है। वहीं दूसरी तरफ जिले के ही मंत्री हरदीप सिंह मुड़ियां इस मामले में अभी तक चुपी साधे बैठे हैं। जबकि वह पंजाब के मंत्री है और ताजपुर रोड एरिया उनके घर के नजदीक है। लेकिन फिर भी उनके शांत रहने के पीछे बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं। दूसरी तरफ हलका विधायक दलजीत सिंह ग्रेवाल भोला द्वारा भी मामले संबंधी अभी तक कोई बयान नहीं दि
या गया है, जबकि आप सरकार द्वारा सरकारी जमीनों पर किए कब्जे पहल के आधार पर हटाने के दावे किए जाते हैं, फिर आखिर यह कब्जे क्यों नहीं हट पा रहे। जबकि विधायक खुद जाकर इन प्रॉपर्टियों के आईएमपी रजिस्टर की चैकिंग क्यों नहीं कर रहे।
आखिर क्यों जमीन के दावेदार बन रहे लोग
जानकारी के अनुसार यह बेशकीमती जमीन सेंट्रल जेल के एकदम साथ लगती रोड पर पड़ती है। वैसे तो जमीन 32 एकड़ में होने के चलते ही लोग इस पर कब्जा करने में जुटे हैं। वहीं दूसरी और अगर इस जमीन पर कॉलोनी काटी जाए तो कई सो करोड़ रुपए कमाई हो सकती है। क्योंकि यह जमीन कई सड़कों को अटैच होती है। आम आदमी के लिए जहां 600 करोड़ की जमीन एक सपना है, वहीं दूसरे लोगों के लिए यह सोना नहीं बल्कि डायमंड बनी हुई है। जिसके चलते लोग इस जमीन को दावेदार बना खूनी खेल खेलने लगे हुए हैं।
आखिर प्रशासन आईएमपी रजिस्टर क्यों नहीं कर रहा चैक
जानकारी के अनुसार इस जमीन की असली मलकियत ढूंढने के लिए आखिर प्रशासन द्वारा आईएमपी रजिस्टर क्यों चैक नहीं किया जा रहा। बता दें कि यह 32 एकड़ जमीन पहले ग्राम पंचायत की थी। लेकिन 1978 में नगर निगम बनने पर सारी जमीन उन्हें ट्रांसफर हुई। यह जमीनें शहर में आने के चलते ऑटोमेटिक ही निगम के अधीन आ गई। उस समय लुधियाना के डीसी अरूण गोयल और नगर निगम कमिश्नर मिस्टर संधू की देखरेख में सभी प्रॉपर्टी ट्रांसफर की गई। इस दौरान रिकॉर्ड रखने के लिए एक आईएमपी रजिस्टर रखा गया। जिसमें सारी अचल संपत्ति का डाला रखा गया था। इन्हीं सभी प्रॉपर्टियों का रिकॉर्ड रेवेन्यू रिकॉर्ड में रखा गया था।
जनता को पता कहा पड़ा रजिस्टर, फिर सरकार को क्यों नहीं
जानकारी के अनुसार जिस जमीन के पीछे दो पक्ष आपस में झगड़ा कर रहे हैं, दरअसल, नगर निगम खुद इसका ऑन रिकॉर्ड कब्जा ले चुकी है। यह कब्जा 1978 से लेकर 1980 तक निगम द्वारा लिया गया था। तब इसका रिकॉर्ड रजिस्टर यानि की आईएमपी रजिस्टर जोन-बी द्वारा बनाया गया था, लेकिन अब यह रजिस्टर जोन-सी में पड़ा है। हैरानी की बात तो यह है कि आम जनता को उक्त रजिस्टर का पता है तो फिर सरकार व प्रशासनिक अधिकारियों को इसका क्यों पता नहीं लग पा रहा।
आरटीआई एक्टिविस्ट भी चुपी साधे बैठे
वहीं दूसरी तरफ शहर में अवैध कब्जों को हटाने के दावे करने वाले बड़े बड़े आरटीआई एक्टिविस्ट भी चुपी साधे बैठे हैं। हैरानी की बात तो यह है कि सभी आरटीआई एक्टिविस्ट द्वारा दावे किए जाते हैं कि वह शहर में अवैध कब्जे नहीं करने देंगे, फिर इस मामले में उनकी तरफ से कोई एक्शन क्यों नहीं लिया जा रहा। यह सवाल भी शहर में चर्चा का विषय बना हुआ है।
क्या सरकार तंत्र व राजनेता करवा रहे कब्जे
चर्चा है कि शहर का सरकारी तंत्र और कुछ तथाकथित राजनेताओं द्वारा ही इस सरकारी जमीन पर कब्जा करवाया जा रहा है। जिसके लिए उन्हें बड़े मुनाफा भी देने का आश्वासन दिया गया है। चर्चा है कि इसी के चलते सरकारी तंत्र व राजनेता खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं।