चंडीगढ़ 23 अक्टूबर। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त है। बुधवार को इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है। शीर्ष अदालत ने इस मामले में दोनों सरकार को फटकार लगाई है। साथ ही कहा कि इस मामले में जमीनी स्तर पर काम नहीं हुआ है। कानून के मुताबिक दोनों सरकारें काम करने में फेल साबित हुई है। इस मामले को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत में गलत बयानबाजी की जा रही है। ऐसे में हम अवमानना नोटिस जारी करेंगे, अन्यथा हमें सही जानकारी दी जाए। वहीं, उत्तर भारत में पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए सख्त नियम बनाने में विफल रहने पर केंद्र की आलोचना भी अदालत ने की है। साथ कहा कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम ‘शक्तिहीन’ हो गया है। वहीं अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह पंजाब राज्य द्वारा अतिरिक्त धनराशि जारी करने के प्रस्ताव पर तुरंत विचार करे। ताकि 10 हेक्टेयर से कम भूमि वाले किसानों को ट्रैक्टर चालक और डीजल उपलब्ध कराने का प्रावधान किया जा सके। राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव पर 2 सप्ताह के भीतर उचित निर्णय ले।
2 हफ्ते में सरकार करेगी कार्रवाई
जहां तक सीएक्यूएम अधिनियम की धारा 15 के तहत पर्यावरण मुआवजे का सवाल है, भारत संघ को नियम में संशोधन करके उचित दरों पर मुआवजे का प्रावधान करना होगा। हम उम्मीद करते हैं कि सरकार आज से 2 सप्ताह के भीतर कार्रवाई करेगी। मामले की अगली सुनवाई चार नवंबर तय हुई है। इस दौरान दोनों सरकारों के चीफ सेक्रेटरी पेश हुए थे। गत सुनवाई पर अदालत ने कहा था कि इस मामले में राजनीति नहीं होनी चाहिए। अगर उनके आदेशों का पालन नहीं किया तो अवमानना का केस दर्ज किया जाएगा। अदालत दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण भी सख्त है।
600 लोगाों को सीधे क्यों छोड़ा गया
शीर्ष अदालत ने पंजाब और हरियाणा सरकार द्वारा पराली जलाने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने पर कड़ी आपत्ति जताई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर ये सरकारें वाकई कानून लागू करने में दिलचस्पी रखती हैं तो कम से कम एक मुकदमा तो होना ही चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के मुख्य सचिव से कहा कि करीब 1080 उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई, लेकिन आपने सिर्फ 473 लोगों से मामूली जुर्माना वसूला है। आप 600 या उससे ज्यादा लोगों को छोड़ रहे हैं। हम आपको साफ-साफ बता दें कि आप उल्लंघनकर्ताओं को यह संकेत दे रहे हैं कि उनके खिलाफ कुछ नहीं किया जाएगा। यह पिछले तीन सालों से हो रहा है।