क्रिप्टो जगत में बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। चीन ने दावा किया है कि अमेरिका ने 1,27,271 बिटकॉइन अपने कब्जे में ले लिए हैं, जिनकी मौजूदा कीमत लगभग 13 से 15 बिलियन डॉलर के बीच बताई जा रही है। ये वही बिटकॉइन हैं जो 2020 में एक बड़े साइबर हैक के दौरान गायब हुए थे। चीन का आरोप है कि हैक की जांच के बहाने अमेरिका ने इन कॉइन्स को जब्त कर लिया और कंपनी की अपील को नजरअंदाज़ कर दिया। इससे यह सवाल उठ रहा है कि आखिर बिटकॉइन का असली मालिक कौन है?
2020 के हैक से शुरू हुआ विवाद
मामला 2020 में तब शुरू हुआ जब चीन की एक प्रमुख कंपनी के Lubiann Mining Pool को हैक कर लिया गया। सिस्टम में मौजूद 32-बिट प्राइवेट की की गलती का फायदा उठाते हुए हैकर्स ने 1,27,271 बिटकॉइन चुरा लिए। कंपनी ने ब्लॉकचेन पर संदेश जारी कर कॉइन्स लौटाने की अपील भी की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। वर्षों तक यह वॉलेट निष्क्रिय रहा, लेकिन 2024 में पता चला कि ये बिटकॉइन अब अमेरिकी सरकार के वॉलेट में हैं।
अमेरिका-चीन में तकरार और निवेशकों की चिंता
चीन ने इसे “चोरी पर सर्जिकल स्ट्राइक” बताया, जबकि अमेरिका का कहना है कि यह कानूनी कार्रवाई है। इस मामले ने क्रिप्टो निवेशकों के सामने तीन बड़े खतरे उजागर कर दिए—
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हैक होने पर कॉइन हमेशा के लिए खो सकता है।
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सरकारें भी क्रिप्टो जब्त कर सकती हैं।
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क्रिप्टो विवादों की कोई वैश्विक अदालत मौजूद नहीं है।
विशेषज्ञों का मानना है कि प्राइवेट की सुरक्षित रखना और एक्सचेंज पर बड़ी रकम न रखना ही सबसे बड़ा सुरक्षा उपाय है। यह विवाद साफ बताता है कि भविष्य में क्रिप्टो ‘डिजिटल जंग’ का अहम हथियार बन सकता है।





