अमेरिका से डिपोर्ट पंजाबियों की कहानी उनके परिवारों के जुबानी
पंजाब 6 फरवरी। दो दिन पहले अमेरिका से डिपोर्ट किए गए 104 भारतीयों में अमृतसर के सलेमपुर गांव के दलेर सिंह भी शामिल थे। इस दौरान वापिस लौटे पंजाबियों ने अपना दर्द बया किया। किसी ने जमीन तो किसी ने गहने बेचे। कई कर्ज उठाकर अमेरिका गए थे। उन्होंने बताया कि 50-50 लाख रुपए लगााकर डंकी लगाई और कुछ दिन बाद ही वापिस भेज दिए गए। वहीं उन्होंने कहा कि पंजाब में रोजगार न मिलने के चलते वह डंकी लगाकर गए थे। अगर पंजाब सरकार रोजगार देती तो उन्हें इतना पैसा खर्च करके जाने की क्या जरुरत थी।
नमक से भी नहीं खा पाएंगे खाना
डंकी रूट से अमेरिका गए डेराबस्सी के गांव जड़ौत के प्रदीप की मां नरिंदर कौर ने कहा कि डंकी में 41 लाख रुपए लगे। एक एकड़ जमीन बेची, कर्ज लिया। 15 दिन पहले वह अमेरिका पहुंचा। एजेंट ने कहा था, सब लीगल है। प्रदीप कहता था- घर बना लेंगे, बड़ी गाड़ी लेंगे। अब अचानक उसे वापस भेज दिया। हालत अब ऐसी हो गई कि नमक से भी खाना नहीं खा पाएंगे।
एजेंट नहीं उठा रहा फोन
होशियारपुर के हरविंदर सिंह गांव में खेती करते थे। जमीन थोड़ी थी। हरविंदर ने डंकी रूट से अमेरिका जाने की राह चुनी। पत्नी कुलविंदर कौर अनुसार 10 महीने पहले डंकी के जरिए अमेरिका के लिए निकले। 42 लाख कर्ज लिया। अमेरिका पहुंचने तक रोज फोन करते थे। रास्ते का वीडियो शेयर करते थे। 15 जनवरी से संपर्क में नहीं थे। कभी सोचा तक नहीं था कि ऐसे वापस भेज दिया जाएगा। एजेंट अब फोन नहीं उठा रहे।
किस्मत बदलने की सोच भेजा विदेश
फतेहगढ़ चूड़ियां का जसपाल सिंह 6 महीने पहले डंकी रूट से अमेरिका के लिए निकला था। 13 दिन पहले ही वह अमेरिका में दाखिल हुआ था। परिवार ने उसे अमेरिका तक पहुंचाने के लिए लाखों रुपए खर्च किए। उम्मीद थी कि उसके वहां पर जाते ही किस्मत बदलेगी। मगर, परिवार पर अब मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। घर में पत्नी और 2 छोटे बच्चे हैं। जसपाल के पिता का कुछ समय पहले ही निधन हो चुका है।
यूके से एजेंट ने भेजा अमेरिका
लुधियाना के जगराओं की मुस्कान भी डिपोर्ट होकर लौट आई है। पिता जगदीश कुमार पुरानी सब्जी मंडी रोड पर ढाबा चलाते हैं। जगदीश बताते हैं कि उनकी 4 बेटियों में मुस्कान सबसे बड़ी है। उसे पढ़ाई के लिए स्टडी वीजा पर यूके भेजा था। वहां कुछ महीने रहने के बाद एजेंट के जरिए वह अमेरिका पहुंच गई। अभी वहां एक महीना ही हुआ लेकिन वापस भेज दी गई। उसे भेजने के लिए बैंक से लोन लिया। रिश्तेदारों से पैसे उधार लिए। पिछले महीने ही बेटी से बात हुई थी।
घर गिरवी रखकर भेजा विदेश
कपूरथला जिले के गांव तरफ बहबल बहादुर का रहने वाला गुरप्रीत सिंह भी शामिल है। वह देर रात करीब ढाई-तीन बजे अपने घर पहुंचा। गुरप्रीत के पिता तरसेम सिंह ने बताया कि वह मजदूरी करते हैं। उन्होंने अपना घर गिरवी रखकर और रिश्तेदारों से उधार लेकर 45 लाख रुपए जुटाए थे। महज 6 महीने पहले बेटे को विदेश भेजा था। गुरप्रीत 22 दिन पहले ही अमेरिका के बेस कैंप में पहुंचा था।