विवाह के दो वर्ष हुए थे जब सुहानी गर्भवती होने पर अपने घर पंजाब जा रही थी। पति शहर से बाहर थे और उन्होंने एक रिश्तेदार को सुहानी को स्टेशन से ट्रेन में बिठाने के लिए कहा था। लेकिन ट्रेन के लेट होने के कारण वह रिश्तेदार उसे प्लेटफॉर्म पर सामान सहित बिठाकर चला गया।
सुहानी को ट्रेन पांचवे प्लेटफार्म से पकड़नी थी और उसे सातवां महीना चल रहा था। सामान अधिक होने के कारण उसने एक दुबले-पतले बुजुर्ग कुली से बात कर ली। उस कुली की आँखों में पेट पालने की विवशता झलक रही थी। सुहानी ने पंद्रह रुपये में तय किया और बैठकर ट्रेन का इंतजार करने लगी।
डेढ़ घंटे बाद जब ट्रेन आने की घोषणा हुई, तो बुजुर्ग कुली कहीं नजर नहीं आ रहा था और दूसरा कोई कुली भी खाली नहीं था। रात के साढ़े बारह बज चुके थे और सुहानी का मन घबराने लगा। तभी दूर से वह बुजुर्ग कुली भागता हुआ आता दिखाई दिया। उसने सुहानी को चिंता न करने को कहा और तेजी से सामान उठाने लगा। ट्रेन का प्लेटफार्म अचानक बदलकर नौ नंबर हो गया था, इसलिए पुल पार करना पड़ा।
वह बुजुर्ग कुली साँस फूलने के बावजूद धीरे-धीरे चल रहा था और सुहानी भी तेज चलने की हालत में नहीं थी। ट्रेन ने सीटी दे दी और वे भागकर स्लीपर कोच की ओर बढ़े। डिब्बा प्लेटफार्म के अंत के बाद इंजन के पास था, जहां चढ़ना बहुत मुश्किल था।
सुहानी ट्रेन में चढ़ गई और ट्रेन रेंगने लगी। कुली अभी दौड़ ही रहा था और उसने हिम्मत करके एक-एक सामान ट्रेन के पायदान के पास रख दिया। सुहानी ने हड़बड़ाते हुए दस और पांच के नोट निकाले, लेकिन तब तक कुली की हथेली दूर हो चुकी थी। ट्रेन की रफ़्तार भी तेज हो गई थी।
सुहानी ने बेबसी से कुली की दूर होती खाली हथेली और उसकी नमस्ते की मुद्रा देखी। उस बुजुर्ग की गरीबी, उसकी मेहनत और सहयोग सब सुहानी की आँखों में कौंध गए। उस घटना के बाद सुहानी ने डिलीवरी के बाद कई बार स्टेशन पर उस बुजुर्ग कुली को खोजने की कोशिश की, लेकिन वह कभी दुबारा नहीं मिला।
आज सुहानी जगह-जगह दान करती है, मगर आज तक कोई भी दान उस कर्ज को नहीं उतार पाया जो उस रात उस बुजुर्ग कुली की कर्मठ हथेली ने किया था। सच है, कुछ कर्ज कभी नहीं उतारे जा सकते।