लोग सोशल मीडिया व मोबाइल के एडिक्ट, अमेरिका की डॉक्टर के खुलासे
(राजदीप सिंह सैनी)
लुधियाना 7 जुलाई। इंडिया और पंजाब में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक महिलाएं व पुरुष सोशल मीडिया व गेम्स के बुरी तरह से एडिक्ट होते जा रहे हैं। इस संबंध में अमेरिका में रहती लुधियाना मूल्य निवासी डॉ. गुरप्रीत कौर सैनी के साथ खास बातचीत की गई। डॉ. गुरप्रीत सैनी अमेरिका के मैरीलैंड एनापोलिस मेडस्टार मेडिकल ग्रुप में फैसिलिटी मेडिकल डायरेक्टर हैं। सोशल मीडिया संबंधी डॉ. सैनी द्वारा बड़े खुलासे किए गए हैं। उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया एक आर्टीफिशियल दुनिया है। जिसकी लत नशे से भी बुरी है। इसका अहम कारण माता पिता तो है ही, इसके अलावा स्कूल, एजुकेशन सिस्टम व सरकारें भी है। अगर देखा जाए तो भारत हो या पंजाब लेकिन यहां पर सबसे ज्यादा सोशल मीडिया व मोबाइल का इस्तेमाल किया जा रहा है। डॉ. गुरप्रीत सैनी ने यह भी खुलासा किया कि भारत व पंजाब में गेम्स व मोबाइल के पीछे लोग अपनी जान गंवा बैठते हैं, ऐसे मामले विदेशों में देखने को कभी नहीं मिलते।
सोशल मीडिया से बच्चों में बढ़ रहा स्ट्रेस लेवल
डॉ. गुरप्रीत कौर सैनी अनुसार सोशल मीडिया व मोबाइल एक सुविधा के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए बना था। लेकिन भारत ने इसे आदत बना लिया। यह बच्चों के लिए एक नंगी तलवार जैसा है। बच्चे इंटरेस्टेड होकर गीत सुनते, गेम्स खेलते व सोशल मीडिया यूज करते हैं। लेकिन वह उसी आर्टीफिशियल लाइफ को अपनी असली जिंदगी में लाने की कोशिश करते हैं, जो नहीं हो पाता। जिससे स्ट्रेस लेवल बढ़ता है और दिमागी संतुलन बिगड़ जाता है। इसी कारण वह खुदकुशी तक कर लेते हैं। इसी कारण कई बच्चे ऑनलाइन चल रही गैंबलिग में भी शामिल हो रहे हैं।
दिमाग के रिवॉर्ड सिस्टम पर होता है अटैक
डॉ. सैनी ने बताया कि सोशल मीडिया व गेम्स में रिवॉर्ड सिस्टम होता है। जैसे कि हमने गेम्स में एक लेवल पार किया या वीडियो पर ज्यादा व्यू आए तो और आगे लेवल पार करने व व्यू लेने के लिए और ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। दरअसल, यह चीज हमारे दिमाग के रिवॉर्ड सिस्टम पर अटैक करती है। उसी कारण हमें नशेड़ियों जैसे मोबाइल की लत लग जाती है। फिर हम पूरा दिन-देर रात तक मोबाइल चलाते हैं। जिससे स्लीपिंग डिसऑर्डर की दिक्कत आती है।
विदेशों में बच्चें की सोशल मीडिया इस्तेमाल पर लिमिट तय
भारत की जनता ज्यादातर विदेशियों को देखकर अपनी आदतें रखती व बदलती हैं। लेकिन विदेशों के बच्चें सोशल मीडिया व मोबाइल से दूर रहते हैं। डॉ. गुरप्रीत सैनी अनुसार पेरेंट्स ने बच्चों की पूरे दिन में मात्र 25-30 मिनट के लिए मोबाइल इस्तेमाल करने की लिमिट तय कर रखी है। जिसके बाद उन्हें साइकलिंग करने, फुटबॉल व अन्य स्पोर्ट्स एक्टिविटी में लगाया जाता है। विदेशों में समय की कीमत है और लोग फिजिकल फिटनेस पर ध्यान देते हैं।
मां बच्चों को थमाती हैं मोबाइल, खत्म हो रही ममता
डॉ. गुरप्रीत सैनी अनुसार 20 साल पहले बच्चा रोने पर मां गोद में उठाकर खेलती थी। लेकिन अब बच्चे को रोने से पहले ही मोबाइल थमा दिया जाता है, ताकि मां को उसे उठाना व खेलाना न पड़े। मां और बच्चे का टच पवित्र माना जाता है, जो खत्म हो रहा है। बच्चे को गोद में उठाने और प्यार न देने के कारण बच्चे का भी लगाव इन चीजों से खत्म हो जाता है। बच्चे मोबाइल को अपने माता पिता व रिश्तेदार समझने लगते हैं।
स्कूल व एजुकेशन बोर्ड भी बच्चों की कर रहे आदतें खराब
भारत में स्कूलों व एजुकेशन बोर्ड द्वारा ऑनलाइन क्लासें लगाने व होम वर्क देने का नया ट्रेंड चलाया है। डॉ. सैनी ने कहा कि अमेरिका में आज भी होमवर्क डायरी में लिखा जाता है और ऑनलाइन क्लासें नहीं लगती। लेकिन भारत व पंजाब में ऑनलाइन क्लासें लगाने और टीचरों द्वारा अपना काम कम करने के लिए व्हाट्सएप पर होम वर्क भेजकर स्टूडेंट्स की आदतें खराब की जा रही है। इसी कारण बच्चे स्कूलों से ही मोबाइल की आदत का शिकार हो जाता है। जबकि एजुकेशन बोर्ड को इस पर ध्यान देना चाहिए। सरकारों को हर चीज की लिमिट तय करनी चाहिए।
व्लॉगर कर रहे मानसिक संतुलन खराब
डॉ. गुरप्रीत सैनी ने कहा कि लोग व्लॉग बनाकर सोशल मीडिया पर डाल देते हैं। जिससे दूसरे लोग भी नौकरियां तक छोड़कर व्लॉग बनाने लग गए हैं। यह एक ऑनलाइन फोमो सिस्टम है, कि दूसरे के पास ज्यादा फेम है और मेरे पास कम है। इसे देख लोग मानसिक संतुलन तक खो बैठते हैं। जिससे कई लोग अपनी जान तक गंवा चुके हैं। भारत सरकार को व्लॉग व सोशल मीडिया की एक लिमिट तय करनी चाहिए, ताकि युवा पीढ़ी खराब न हो। लोग सस्ती शोहरत और बिना काम किए पैसा कमाने के चक्कर में सोशल मीडिया पर आते हैं।