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तो चौकीदार नहीं हमारी ईवीएम चोर है

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  • तीन कम नब्बे के डॉ फारुख अब्दुल्ला यदि झूठ बोलें तो उन्हें कौआ काटे। फारुख साहब का कहना है कि दरअसल चोर तो हमारी ईवीएम है, इसलिए आम चुनाव में जब वोट डालें तो ईवीएम को ठोक – बजाकर देख जरूर लें।पर्चियों का मिलान कर लें ,अपने वोट की रक्षा कारण क्योंकि वोट है आपका । खानदानी नेता डॉ फारुख अब्दुल्ला तजुर्बेकार नेता भी हैं। रंगीन तबियत के हंसमुख नेता हैं। प्रगतिशील हैं, धर्मनिष्ठ और धर्मनिरपेक्ष नेता हैं। मुझे निजी तौर पर पसंद हैं। मोदी जी से ज्यादा, फारुख साहब पसंद हैं, अलवत्ता वे प्रधानमंत्री नहीं हैं। राष्ट्रपति नहीं है। अब होंगे भी नहीं। वैसे उन्होंने प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब तो जरूर देखा होगा। भले ही वे प्रधानमंत्री नहीं बने लेकिन वे देश के किसी भी प्रधानमंत्री से ज्यादा चर्चित और लोकप्रिय नेता हैं। सलीकेदार हैं। किसी को अछूत नहीं मानते।

ईवीएम को चोर कहना उतना ही बड़ा दुस्साहस है जितना कि किसी चौकीदार को चोर कहना है। हमारे यहां मिस्टर क्लीन की छवि के एक प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भी इस देश में चोर कहा गया। हालांकि राजीव गांधी को चोर कहने वाले लोग इलेक्टोरल बांड के जरिए 60 अरब की चोरी करते रंगे हाथों पकड़े गए, लेकिन दुर्भाग्य न चोरी का पैसा राजसात किया गया और न किसी को इस असंवैधानिक और आपराधिक मामले में जेलों में भेजा गया। हमारे यहां किसी को जेल भेजना या तो बेहद आसान काम है या बेहद कठिन।

देश में ईवीएम की विश्वसनीयता पहले दिन से संदिग्ध रही है। भाजपा के 10 साल के शासनकाल में ये अविश्वास कम होने के बजाय बढ़ा है।2019 के आमचुनाव भी उसी संदिग्ध ईवीएम से कराए गए थे जिससे कि 2024 के चुनाव कराए जा रहे हैं।आपको याद होगा की 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इसी ईवीएम मशीन के जरिये चुनाव लड़ते हुए विपक्ष का सूपड़ा साफ़ कर दिया था और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे तमाम अजेय नेताओं को पराजित कर प्रचंड बहुमत हासिल किया था। अकेले भाजपा को 303 सीटें और 37 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे।

चुनावों में सूपड़ा साफ़ करना एक तकनीक नहीं है । इसके लिए या तो ‘अंडर करेंट ‘ की जरूरत पड़ती है या किसी चमत्कार की। जिस लक्ष्य को भाजपा ने 2019 में पार किया था उसे कांग्रेस 1952 ,57 ,62 ,71 और ,80 में पहले ही पार कर चुकी है । भाजपा के 2024 के निर्धारित लक्ष्य 400 को भी कांग्रेस ने 1984 में बिना गठबंधन के अकेली दम पर 404 सीटें जीतकर हासिल कर दिखाया था। इसके लिए कांग्रेस को किसी अवतार की जरूरत नहीं पड़ी थी । तब ईवीएम नहीं बल्कि कागज की पर्चियां थीं। कांग्रेस की दुर्दशा तो 2009 के बाद से होना शुरू हुई है। इस दुर्दशा में कांग्रेस का नेतृत्व और ईवीएम दोनों बड़े कारण हैं। दुर्भाग्य ये है कि ईवीएम को सरे आम चोर कहने वाले लोग अभी तक ईवीएम के खिलाफ खड़े नहीं हो पाए हैं। ईवीएम को लेकर सभी विपक्षी दलों का व्यवहार अस्पष्ट है।विपक्ष गुड़ भी खाना चाहता है और गुलगुलों से परहेज़ भी करना चाहता है।

मुझे ये लिखने में कोई संकोच नहीं है कि विपक्षी दल उन तमाम मुद्दों को लेकर देश में सरकार के विरुद्ध कोई आंदोलन अब तक खड़ा नहीं कर पाया। यानि ईवीएम चोर कही जाती है किन्तु कोई भी विपक्षी दल ईवीएम के बहिष्कार की बात नहीं कर रहा।विपक्ष न ईवीएम को मुद्दा बना पाया न इलेक्टोरल बांड को। विपक्ष अभी तक कोई निर्णायक और अपीली करने वाला मुद्दा बना ही नहीं बना सका।विपक्ष की यही कमजोर नस है। कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के मुम्बई में समापन के मौके पर डॉ फारुख अब्दुल्ला ने एक बार फिर से ईवीएम का राग अलापकर कांग्रेस ही नहीं बल्कि बाक़ी के राजनीतिक दलों की दुखती रग पर हाथ रख दिया है। डॉ अब्दुल्ला ने कहा है कि जिस दिन इंडिया गठबंधन सत्ता में आएगा उसी दिन से ईवीएम का भी अंत हो जाएगा।

फिलहाल तो डॉ अब्दुल्ला का दावा हवा -हवाई है । ‘ न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी । इंडिया गठबंधन जिस तरीके से लोकसभा चुनाव लड़ रहा है उसे देखकर नहीं लगता की डॉ फारुख अब्दुल्ला का सपना 2029 में पूरा हो पायेगा । देश से ईवीएम को विदा करना है तो पहले ईवीएम के सहारे एक दशक से जादू कर रखी भाजपा को सत्ता से हटाना होगा। ये असम्भव नहीं किन्तु कठिन काम जरूर है क्योंकि इस समय देश में किसी भी दल के पास भाजपा जैसा संगठनात्मक ढांचा, मजबूत अर्थशास्त्र और भव्य,दिव्य तथा अवतारी नेता नहीं है। भाजपा का नेतृत्व इस समय जो चाहे सो रूप धर सकता है।इस समय भाजपा कामरूप है। उसके पास धनबल,बाहुबल और छलबल इफरात में है। इस मामले में कांग्रेस समेत समूचा विपक्ष कंगाल है ,फटेहाल है।

आपको बता दूँ कि तमाम अविश्वास के बावजूद भारत में मतदाताओं की मौजूदा चुनाव प्रक्रिया में दिलचस्पी बरकरार है । देश के पहले चुनाव में जहाँ 45 फीसदी मतदाताओं ने चुनाव में हिस्सा लिया था वहीं पिछले आम चुनाव में ये भागीदारी 68 फीसदी तक पहुँच गयी था । इस बार ये प्रतिशत यदि बढ़ता है तो समझा जाएगा कि आम जनता को ईवीएम से कोई शिकायत नहीं है ,शिकायत केवल राजनीतिक दलों को है। और यदि ये भागीदारी कम होती है तो समझा जाएगा कि ईवीएम का विरोध जायज है। भारत जोड़ो न्याय यात्रा के समापन समारोह में डॉ फारुख अब्दुल्ला ही नहीं जम्मू-कश्मीर से पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती भी थीं और बिहार से तेजस्वी यादव भी ,तमिलनाडु से स्टालिन भी। सबके स्वर एक जैसे थे ,लेकिन ईवीएम के विरोध को लेकर केवल और केवल डॉ फारुख अब्दुल्ला बोले।

लोकसभा चुनाव में लड़ाई मुद्दों से हटकर चेहरों पर सिमट गयी है । चुनाव में एक ही मुद्दा है और वो है भाई नरेंद्र मोदी जी। मोदी जी हर तरह से भाई है । उनका भाईचारा पूरे देश ने देखा है ,देख रहा है। मोदी जी का मुकाबला राहुल गांधी के भाईचारे से नहीं है ,क्योंकि विपक्ष ने अब तक ‘ अबकी बार राहुल गांधी की सरकार ‘ का नारा नहीं दिया है। नारा ‘ अबकी बार इंडिया गठबंधन की सरकार ‘ का भी ढंग से नहीं गूंजा है । विपक्ष को एक स्पष्ट नारा ,एक स्पष्ट चेहरा भी मोदी जी के मुकाबले रखना चाहिए था । खैर अब देर हो चुकी है । विपक्ष को सत्तापक्ष से कैसे लड़ना है ये विपक्ष जाने । हमारा काम हम कर रहे हैं। मतदाताओं को अपना काम करना चाहि। मतदाता 60 अरब कमाने मवालों के मुकाबले केवल दो रूपये की रियायत पर ही मुतमईन रहना चाहती है तो रहे ,अन्यथा 1975 की तरह ‘ समग्र क्रांति ‘ का पर्याय तलाशे।या १९८५ की तरह ‘व्वक्त आ चुका है ‘ जैसा कोई नारा उछाले ! जय सिया राम

@ राकेश अचल

achalrakesh1959@gmail.com

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