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21 दिन बाद भी एसआईटी नहीं ले सकी एक्शन, चर्चाा – सिर्फ आईवॉश को बनाई गई जांच कमेटी

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नगर निगम के ओएंडएम सेल में आठ करोड़ का घोटाला होने का मामला

लुधियाना 30 जनवरी। नगर निगम लुधियाना के सीवरेज एंड वाटर सप्लाई विभाग के ओएंडएम (ऑपरेशन एंड मेंटेनेंस) सेल के अधिकारियों पर एमरजेंसी फंड के नाम पर जाली बिलों के आधार पर करीब आठ करोड़ रुपए का घोटाला करने के आरोप लगे हैं। इस मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित की गई थी। इस एसआईटी द्वारा सात दिन में रिपोर्ट तैयार की जानी थी। लेकिन 21 दिन बीतने के बाद भी टीम द्वारा न तो कोई रिपोर्ट सबमिट की है और न ही उच्च अधिकारियों द्वारा इस मामले में कोई एक्शन लिया गया है। जिसे देख लगता है कि शायद सिर्फ आईवॉश के लिए यह कमेटी गठित की गई थी। चर्चा है कि इस मामले को लगातार दबाने का प्रयास किया जा रहा है। जिसके चलते इस आठ करोड़ी घोटाले को उजागर नहीं होने दिया जा रहा। अब देखना होगा कि मामले में सच्चाई सामने आ सकेगी या एसआईटी के नाम पर हमेशा की तरह मामले को दबा दिया जाएगा। चर्चा है कि इस घोटाले के समय डीसीएफए पंकज गर्ग थे। जिसके चलते उन पर भी मामले की गाज गिर सकती है।

एसआईटी में शामिल कई अफसरों को नोटीफिकेशन ही नहीं मिली
इस मामले की जांच के लिए एसआईटी बनाई गई। कमेटी में ज्वाइंट कमिश्नर अंकुर महेंद्रु को चेयरमैन, ज्वाइंट कमिश्नर चेतन बांगर, कार्यकारी इंजीनियर जतिंद्रपाल सिंह और डीसीएफए नीरज रहेजा को मेंबर नियुक्त किया गया। चर्चा है कि जिन अधिकारियों को एसआईटी में रखा गया, उन्हें एसआईटी बनाने संबंधी नोटीफिकेशन ही कई दिन तक मिली ही नहीं। उन्हें पता ही नहीं था कि वह कमेटी का हिस्सा है। ऐसे में यह बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं।

विधायक का नजदीकी ठेकेदार बना सबसे ज्यादा बेनिफिशरी
चर्चा है कि ओएंडएम सेल में हुए इस स्कैम में सबसे ज्यादा फायदा शहर के नामी बिल्डर और निगम के ठेकेदार को मिला है। जबकि निगम के ज्यादातर ठेके अब उसी की कंपनी के नाम पर अलॉट गोते हैं। चर्चा है कि सबसे ज्यादा बेनिफिशरी रहा यह ठेकेदार एक विधायक का करीबी है। विधायक की छत्रछाया में ही उसे सबसे ज्यादा ठेके अलॉट होते हैं और इसी लिए घोटाले में भी फायदा उसे ज्यादा पहुंचा।

फर्जी कंपनियों के नाम पर काटे बिल
चर्चा है कि इस स्कैम में शामिल अफसरों को 70 प्रतिशत और ठेकेदार को 30 प्रतिशत हिस्सा मिला है। जबकि जिन बिलों के आधार पर एमरजेंसी फंड निकाला गया है, ज्यादातर वह बिल जारी है। जबकि जिन कंपनियों के नाम पर यह बिल बनाए गए, वह कंपनियां भी फर्जी है। हैरानी की बात तो यह है कि निगम के अफसर पैसा कमाने के चक्कर में अपने ही विभाग को चुना लगाने में लगे हुए हैं।

निगम कमिश्नर पर भी उठे सवाल
जानकारी के अनुसार नगर निगम कमिश्नर आदित्य डेचलवाल भी इस मामले में शांत हैं। उनकी तरफ से भी अभी तक मामले में कोई एक्शन नहीं लिया गया है। हालांकि शहर में उनकी ईमानदार छवि की चर्चाएं अक्सर सुनने को मिलती है। लेकिन चर्चा है कि कही न कही नीचे सत्र के अधिकारी ही मामले को घुमाने में लगे हैं।

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