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2011 से राजनेताओं द्वारा निगम हाउस में मते डालकर की कब्जाने की कोशिश, हाईकोर्ट के ऑर्डरों के उल्ट लिए फैसले

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गुरदेव नगर में पार्क की करोड़ों की जमीन पर जबरन कंस्ट्रक्शन करने का मामला

लुधियाना 9 नवंबर। गुरदेव नगर में पानी वाली टंकी के नजदीक नगर निगम की पार्क के लिए छोड़ी जमीन पर एक व्यक्ति द्वारा जबरन कंस्ट्रक्शन करने का मामला लगातार गर्माता जा रहा है। 1600 गज की यह जमीन की कीमत कई करोड़ रुपए है। इस जमीन पर हो रही कंस्ट्रक्शन को इलाके के लोगों द्वारा अवैध बताया जा रहा है। हालांकि इस मामले से जुड़े कई दस्तावेज भी सामने आए हैं। चर्चा है कि इन दस्तावेजों के मुताबिक 2011 से लेकर 2024 यानि कि पिछले 13 सालों से उक्त सरकारी जमीन को कब्जाने के लिए कई कोशिशें हो चुकी है। जिसके लिए नगर निगम में पूर्व मेयरों द्वारा कई कमेटियां गठित की गई। यहां तक कि हाउस में अलग अलग पार्टियों के कई राजनेताओं द्वारा मते डालकर मामले घूमाते हुए पार्क पर कब्जा करने का भी प्रयास किया गया। लेकिन सफल न हो सके। जिसके बाद अब उक्त जमीन का निगम अफसरों के साथ सेटिंग कर नक्शा पास करवाकर कंस्ट्रक्शन शुरु कर दी गई है। लोगों में चर्चा है कि शायद पुरानी राजनीतिक पार्टियों की तरह अब भी कुछ राजनेता इस मामले में शामिल होंगे, जिसके चलते अब दोबारा से जमीन कब्जाते हुए निर्माण कार्य शुरु कर दिया गया।

कॉलोनी में थे कई पार्क, निगम को हैंडओवर करते ही बदला नक्शा
इलाके के लोगों के मुताबिक गुरदेव नगर कॉलोनी एक प्राइवेट व्यक्ति द्वारा काटी गई थी। कॉलोनी में कई पार्क भी छोड़े गए थे। लेकिन जब इसे निगम को हैंडओवर कर दिया गया तो उसके बाद पार्क ही गायब हो गए। कई लोगों द्वारा पार्कों की जगह अपने खसरों में डालकर कब्जे कर लिए। इसी का नतीजा है कि अब इस 1600 गज की जमीन पर एक व्यक्ति द्वारा अपना हक जमाया जा रहा है, जबकि निगम का कहना है कि यह पार्क है।

टीपी स्कीम पॉर्ट-2 में किया जाना था बदलाव
जानकारी के अनुसार टीपी स्कीम पॉर्ट-2 में गुरदेव नगर की यह जगह पार्क है। नगर निगम में 2011 को स्कीम में संशोधन करने के लिए 28-11-2011 को एक मता पेश किया गया। जिस पर एक कमेटी बनी। जिसमें चेयरमैन पूर्व मेयर स्वर्गीय हाकम सिंह ग्यासपुरा, मेंबर हरभजन सिंह डंर, सिरमनजीत सिंह बैंस, गुरदीप सिंह नीटू, जसपाल सिंह संधू, इंद्रजीत सिंह गिल और भारत भूषण आशु शामिल थे। इस दौरान कमेटी मेंबर भारत भूषण आशु ने 12-3-2012 को सुझाव दिया कि मंजूरशुदा, ड्राफ्ट व टीपी स्कीमों के पार्कों को इनटेकट रखना जरुरी है। अगर स्कीमों को पूरी तरह से ड्राप किया गया, तो पार्कों का रकबा खत्म हो जाएगा।

अपनी ही जमीन में से पार्क छोड़ने का किया दावा
निगम हाउस में मता डालते हुए यह फाइनल किया गया कि जमीन का खुद को असली मालिक बताने वाला सुखदर्शन कुमार द्वारा निगम को उक्त पार्क की जगह पर इलाके में एक और पार्क की जगह दी जाएगी। जिसके बाद उसे उक्त जमीन वापिस मिल जाएगी। जबकि उस समय एटीपी रहे अफसर को हिदायतें दी गई कि पार्क ऐसी जगह हो, जो लोगों के लिए खिंचाव का केंद्र बने और पार्क लोगों की सहुलियत मुताबिक हो। जिसके बाद सुखदर्शन कुमार द्वारा अपनी ही जमीन में से पार्क छोड़ने का दावा किया गया था। लेकिन फिर डायरेक्टर टाउन प्लेनिंग द्वारा आदेश देते हुए कहा कि जब तक पार्क के आसपास की सड़कों का फैसला नहीं होता, तब तक स्पलीमेंटरी स्कीम तैयार नहीं होगी।

100 मीटर के एरिया में दी जमीन, लेकिन है कहां पता नहीं
2012 में चुनाव होने के बाद दोबारा सरकार बनी और नए लीडर चुने गए। जिसके बाद फिर दोबारा से 2013 में मता डालकर नई कमेटी गठित हुई। जिसमें ममता आशु चेयरमैन और मेंबर ओम प्रकाश रतड़ा, सरबजीत सिंह लाडी, हरविंदरपाल सिंह,  दिलराज सिंह थे, जबकि एटीपी सुरिंदर सिंह बिंद्रा मेंबर सेक्रेटरी थे। कमेटी ने मता डाला गया। जिसमें दावा किया गया कि उक्त जमीन के मालिक सुखदर्शन कुमार द्वारा पार्क की 1600 गज से 100 मीटर दूर ही उतनी जमीन का पार्क छोड़ा जा रहा है। इस मते में लोकेशन की बात भी हुई, लेकिन आज तक यहीं पता नहीं चल सका कि आखिर पार्क कितने गज का है और उसकी लोकेशन क्या है।

हाईकोर्ट के आदेशों का नेता कर रहे उल्लंघन
इन मतो में यह भी बताया गया कि पार्क की आसपास की सड़कों पर कई लोगों द्वारा कब्जे कर लिए गए हैं। जिन्हें हटाने की जगह मते में उनसे क्लेक्टर रेट पर पेमेंट वसुलने की बात कही गई है। लेकिन बता दें कि हाईकोर्ट में एक सिविल पटीशन 2004 में दायर हुई थी। जिसमें मान्नीय कोर्ट के आदेशों पर निगम द्वारा लुधियाना में सर्वे कर 6355 अवैध कब्जों की लिस्ट बनाई। कोर्ट ने फैसला किया था कि किसी भी सरकारी कब्जे को रेगुलर नहीं किया जा सकेगा। हैरानी की बात तो यह है कि फिर राजनेताओं द्वारा कैसे मते डालकर सरकारी जमीनों पर किए कब्जे हटाने की जगह उनसे कलेक्टर रेट पर वसुली की बात कही जा रही है।

राजनेताओं को मिलनी थी हिस्सेदारी
चर्चा है कि इस पार्क को व्यक्ति की जमीन बताकर उसे दिला दी जानी थी। जबकि व्यक्ति द्वारा निगम को जमीन देने के दावे को बाद में खुर्द बुर्द कर दिया जाना था। इसी लिए यह खेल खेला जा रहा है। हालांकि चर्चा यह भी है कि कई राजनेताओं को इस जमीन में हिस्सा मिलना था। इसी लिए उनकी और से पीछे रहकर सारा खेल किया जा रहा था। लेकिन 2020 के बाद कोरोना आ गया। जिसके बाद समय निकल गया और फिर सरकार बदल गई। जिसके चलते नेताओं की यह स्कीमें बीच ही रह गई।

अगर पार्क की जमीन है, तो वहां पार्क ही बनेगा
वहीं इस संबंध में विधायक गुरप्रीत गोगी से बात की गई। उन्होंने कहा कि निगम में छुट्‌टी के चलते वह अभी रिकॉर्ड नहीं चैक कर सके हैं। लेकिन अगर उक्त जमीन पर रिकॉर्ड में पार्क है तो वहां पार्क ही बनेगा। किसी को अवैध कब्जा नहीं करने दिया जाएगा। हालांकि इस संबंधी निगम इंस्पेक्टर कमलजीत का कहना है कि उक्त जमीन किसी की रिहायशी जमीन है। जिसका बकायदा नक्शा पास है। वहीं बिल्डिंग मालिक का दावा है कि उन्होंने सरकार से जमीन एक्सचेंज की है। जिसके बाद ही लीगल तरीके से कंस्ट्रक्शन की जा रही है।

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