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सियासत में शेखचिल्ली की शिनाख्त

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चुनाव का पूरा मौसम निकला जा रहा था और श्रीमती मेनका गांधी गुड़ खाकर बैठीं थीं । वे अपने बेटे वरुण गांधी का टिकिट काटने पर भी मिमियाकर रह गयीं थीं ,लेकिन खुदा का शुक्र है कि वे अपने बेटे को तो नहीं पहचान पायीं लेकिन उन्होंने अपने रक्त संबंधी भतीजे राहुल गांधी को ठीक-ठीक पहचान लिया। बकौल मेनका जी राहुल गांधी शेखचिल्ली हैं। हम तो उन्हें पंडित राहुल गांधी मानते थे लेकिन वे भी शेख हैं ये अब पता चला।

भारत की राजनीति शेखचिल्लियों से भरी पड़ी है ,लेकिन उन्हें पहचानने का जोखिम मेनका जी की तरह हर कोई नहीं लेता। जाहिर है कि यदि राहुल गांधी शेखचिल्ली हैं तो मेनका जी भी उसी परिवार की बहू हैं जिस परिवार के चश्मों-चिराग को मेनका जी के सबसे बड़े नेता शाहजादा कहते हैं। जब राहुल शेखचिल्ली हैं तो बिलासुबा उनके चचेरे भाई यानि मेनका जी के पुत्र वरुण गांधी भी पैदायशी शेखचिल्ली हुए। उनके पिता भी जाहिर है शेखचिल्ली ही रहे होंगे। जैसे खग ही खग की भाषा जानता है वैसे ही रक्त संबंधी ही अपने रक्त संबंधी को पहचान लेता है।

शेखचिल्ली होना कोई बुरी बात नहीं है । शेखचिल्ली को गाली या अपशब्द मानने वाले बुरे हैं। शेखचिल्ली एक ऐसा किरदार है जो हंसी-मजाक करते हुए भी बड़ी से बड़ी गुत्थी को सुलझा देता है । शेख चिल्ली का रिश्ता दुर्भाग्य से गुजरात से नहीं बल्कि हमारे उस हरियाणा से बताया जाता है जहाँ से हमारे मित्र अरुण जैमिनी आते हैं। हरियाणा के डीएनए में शेखचिल्लीपना भरा पड़ा है । एक हरियाणवीं ही अपने आप पर हंस सकता है। लेकिन यदि शेखचिल्ली यूपी से है तो भी उसे हंसना -रोना खूब आता है। आप उसे गंगा किनारे रोते देख सकते हैं ,क्रूज पर इंटरव्यू देते देख सकते हैं , या रायबरेली में हँसते हुए भी।

भारत की सियासत में यदि शेखचिल्ली न हों तो सियासत बेरौनक हो जाये। शायद इसीलिए हर दशक की सियासत में एक न एक शेखचिल्ली हमेशा मौजूद रहता है। देश को आपातकाल का स्वाद चखाने वाली प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के जमाने में ठेठ समाजवादी राजनारायण को लोग शेखचिल्ली कहते थे ,लेकिन उन्हीं राजनारायण ने इंदिरा जी का तख्ते ताउस [मयूर सिंहासन ] पलट दिया था। राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी भी अपने जमाने के रंगरेज शेखचिल्ली वीपी सिंह के शिकार बने थे। और तो और 2014 में महान अर्थशास्त्री डॉ मन मोहन सिंह को एक गुजराती शेखचिल्ली ने चारों खाने चित कर दिया था।नेहरू जी के जमाने में प्रख्यात समाजवादी चिंतक राम मनोहर लोहिया को शेखचिल्ली कहा जाता था।

मुझे लगता है कि मेनका जी अपने भतीजे की शिनाख्त करने में शायद इसीलिए अब तक भय खा रहीं थीं कि कहीं भाजपा वाले उनका शेखचिल्ली डीएनए देखकर टिकिट न काट दें। दरअसल भाजपा ने मेनका जी को तो टिकिट नारीशक्ति वंदन क़ानून का सम्मान करते हुए दिया है। उनके बेटे का टिकट तो काट ही दिया ,क्योंकि वे शेखचिल्ली परिवार से जो आते हैं।मेनका जी का शुक्रिया अदा करना चाहिए राहुल गांधी को, लेकिन वे खामोश है। परिवार कि रिवायतें होतीं है। मेनका जी भले उनके साथ नहीं रहतीं,दूसरे दल में हैं ,लेकिन हैं तो सगी चाची। राहुल के लिए मेनका के लिए शायद उतना ही सम्मान होगा जितना कि अपनी माँ श्रीमती सोनिया गाँधी के लिए है। इसलिए शायद राहुल गाँधी पलटकर जबाब नहीं देंगे। देना भी नहीं चाहिए।

सोनिया इटली से आतीं हैं लेकिन भारतीय माँ के सारे गुण जानतीं हैं। उन्होंने शायद एक बार भी अपनी देवरानी या भतीजे के लिए किसी हल्के शब्द का इस्तेमाल नहीं किया । कम से कम वरुण गांधी को तो शेखचिल्ली नहीं कहा ,लेकिन मेनका जी ने एक भारतीय माँ होते हुए भी अपनी मर्यादा तोड़ दी। मुमकिन है कि वे मजबूर हों। उनसे जबरन ये सब कहलाया गया हों । मुमकिन है कि उनके मन में राहुल को लेकर कोई कुंठा हो ? लेकिन यदि वे ये सब न भी कहतीं तो उन्हें भारतरत्न नहीं मिलने वाला था। वे भाजपा के लिए एक अतिथि कलाकार से ज्यादा न कल थीं और न आज हैं और न कल रहेंगीं।

भारत के लोग बहुत शिष्ट होते है। काने को को काना नहीं कहते । वे सम्मान से उसे ‘एक नयन ‘ कहते है। ‘ सूरदास ‘ कहते हैं। इस समय देश के सबसे बड़े शेखचिल्ली को भी किसी ने आजतक शेखचिल्ली नहीं कहा । कांग्रेस ने भी नहीं कहा। ये शिष्टाचार के खिलाफ है। जनता सब जानती है कि कौन शेखचिल्ली है और कौन नहीं ? मेनका जी ने खामखां ये जहमत उठाई और देश को बताया कि उनका भतीजा यानि जेठानी का लड़का शेखचिल्ली है। अब है तो है । इसका खंडन कोई नहीं कर सकता। इसका खंडन देश कि जनता कर सकती है । देश को 4 जून को ही पता चल पायेगा कि शेखचिल्ली किस दल का बड़ा है ? इस बार के चुनाव लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के साथ ही श्रेष्ठ शेखचिल्ली के चयन के लिए भी हो रहे हैं।

चूंकि आज का मुद्दा शेखचिल्ली हैं इसलिए अपने पाठकों को बताता चलूँ कि असली शेखचिल्ली मुगल शहजादे दारा शिकोह के गुरु थे। शाहजहां खुद उनका बहुत सम्मान करते थे। मुग़ल बादशाह शाहजहां का बेटा दारा शिकोह शेख चिल्ली का बड़ा प्रशंसक था। उसने उनसे कई महत्त्वपूर्ण बातें सीखी। शेखचिल्ली को अब्दउर्र रहीम, अलैस अब्द उइ करीम, अलैस अब्द उर्र रज्जाक के नाम से भी जाना जाता था। सत्रहवीं सदी के लोग शेखचिल्ली को महान दरवेश मानते थे। शेखचिल्ली का मकबरा हरियाणा के कुरुक्षेत्र के थानेश्वर में है।

धारणा है कि शेख चिल्ली का जन्म बलूचिस्तान के खानाबदोश कबीले में हुआ था। वो लगातार घुमक्कड़ी करते थे। यही घुमक्कड़ी उन्हें भारत ले आई। वैसे शेखचिल्ली ऐसी कहानियों के नायक हैं, जो आम लोक-जीवन के संघर्षों से बार-बार उबारता है. बार-बार उन्हीं संघर्षों में जुट जाता है। उसमें ईमानदारी है, निष्ठा है, मर्यादा है, परिस्थितिजन्य विवेक है। सबसे बड़ी बात ये भी कि कि वो वर्तमान में जीता है आज के शेखचिल्ली राहुल गांधी की तरह।

@ राकेश अचल

achalrakesh1959@gmail.com

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