दल-बदलुओं और मुद्दाविहीन चुनाव के लिए
सभी पार्टियां बराबर की जिम्मेदार, बोले पांडे
नदीम अंसारी
लुधियाना/10 अप्रैल। कई दशक से पंजाब की राजनीति में सक्रिय वरिष्ठ कांग्रेसी नेता तमाम चुनाव लड़कर पांच बार विधायक रहे। दो बार राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बने। उनकी निजी और सियासी जिंदगी में ‘ना किसी से दोस्ती, ना ही किसी से बैर’ वाली कहावत सटीक बैठती है। इसी बेबाकी वाले नजरिए की वजह से उनकी राजनीति में अलग पहचान रही है। मौजूदा लोकसभा चुनाव को लेकर ‘यूटर्न टाइम’ ने उनसे खास बातचीत की। बेबाकी के चलते ही उन्होंने कई संजीदा मुद्दों पर अपनी कांग्रेस पार्टी की खिंचाई करने से भी परहेज नहीं किया। बिना लाग-लपेट यानि टकसाली कांग्रेसी होकर भी संजीदा सवालों पर सिर्फ अपनी पार्टी का बचाव करने की बजाए कई सवालों पर निष्पक्ष नजरिया रखा। पेश हैं उसी बातचीत के कुछ खास हिस्से :
पंजाब में इन दिनों दल-बदलने की सियासी-बीमारी के नासूर बनने पर लंबा राजनीतिक अनुभव रखने वाले पांडे बेबाकी से दो-टूक बोले, सारे प्रमुख दल दोषी हैं। यह ‘आया राम, गया राम’ की बीमारी किसी एक पार्टी की देन नहीं कह सकते, कोई अकेली पार्टी मुख्य दोषी नहीं है। ये खेल है तो बहुत गलत, लेकिन पंजाब में बैठकर हमें लगता है कि ऐसा सिर्फ यहां हो रहा, वैसे पूरे देश में यही सब चल रहा है। सारी पार्टियां चिंतित है कि अपने यहां बढ़ते इस नासूर पर कैसे काबू पाएं।
बिट्टू का पाला बदलना उनकी निजी सोच कहने वाले पांडे ने तंज कसा कि अगर पार्टी में रहकर 15 साल तक जनता का भला नहीं कर पाए। अब जालंधर के आप सांसद की तरह बीजेपी में जाकर जादू से जनता के काम करा लेने का बेबुनियाद दावा कर रहे हैं। उनको कांग्रेस ने तो बहुत कुछ दिया था। वह अपनी कमजोरियां छिपाने को कांग्रेस छोड़ गए। मैं नहीं समझता कि वह दूसरी पार्टी में जाकर भी कुछ कर पाएंगे।
इस बार चौकोना मुकाबला होगा, इस सवाल पर सीधे हां बोलते टकसाली कांग्रेसी होने के बावजूद पांडे ने इत्तेफाक जताया कि अभी तक ऐसे ही हालात बने हैं। यह बात ठीक पहले मुकाबला तीन कोनों में, तीन की बजाए भी कांग्रेस और अकालियों में होता था। अब चौकोना मुकाबला है तो ऐसे में किसी के भाग्य से छींका टूट सकता है ? इस कंट्रोवर्शियल-प्रीडिक्शन वाले सवाल को हंसकर टालने वाले लहजे में सटीक जवाब दिया कि यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। बात संभालते बोले, अभी लोगों का ध्यान पूरी तरह इस तरफ नहीं है, यहां चुनाव में काफी टाइम है।
अभी तक मुद्दे गायब हैं, इस पर साफ बोले कि बेशक, जहां कैंडिडेट तक घोषित हो गए, उनके प्रचार में भी मुद्दों की बात नहीं हो रही है। यह अलग बात है कि शायद आने वाले वक्त में जनता के बीच से उठी आवाज पर ही कुछ मुद्दे तैयार हो जाएं।
आप नेता डॉ.संदीप पाठक की प्रतिक्रिया कांग्रेस-आप के गठजोड़ से फायदा नहीं होना था, इस पर माइल्ड-तरीके से जवाब दिया कि कांग्रेस तो हमेशा से जनता की पसंद रही है। लिहाजा नफा-नुकसान किसका होगा, सबको पता है। दल-बदलुओं से परेशान अकाली और आप वाले डैमेज-कंट्रोल में जुटे हैं, मगर कांग्रेस मूकदर्शक क्यों, इस पर पांडे ने काउंटर किया कि यहां से जो गए उनके पास कुछ नहीं था, जनता से मुंह चुराकर पाला बदल गए। लिहाजा कांग्रेस नहीं, बल्कि उनका ही नुकसान हुआ है।
चलते-चलते एक निजी सवाल पर पांडे संजीदगी से बोले कि लोकसभा के टिकट के लिए उनकी दावेदारी रही। पार्टी से अपना हक मांगना कोई गलत नहीं था। हालांकि अपनी बेबाक इमेज के चलते दावेदारी उम्मीदवारी में तब्दील न होने की बात को उन्होंने खारिज किया। साथ ही संतोष जताते बोले कि हमारे परिवार को कांग्रेस ने बहुत कुछ दिया। मेरे पिता जोगिंदर पाल पांडे को लोस चुनाव लड़ने को कहा। यह अलग बात है कि काले दौर के चलते उनकी शहादत हो गई।
——–