एक राष्ट्र : एक चुनाव ‘ की गुपचुप तैयारी

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भारत की सरकार में यदि बहुत कुछ पारदर्शी है तो बहुत कुछ ऐसा भी है जिसे आप गोपनीय कह सकते हैं। सरकार के कामकाज के बारे में केवल चार कानों को ही पता रहता है छठे कान को नहीं । लेकिन आजकल खबरें रिसकर आ रहीं हैं कि सरकार देश में जातीय जनगणना के साथ ही एक राष्ट्र,एक चुनाव के मुद्दे पर भी गोपनीय ढंग से काम कर रही है और किसी माकूल वक्त पर इसकी घोषणा कर सकती है। लेकिन इसके पहले सरकार अपने सभी सहयोगी दलों को भी भरोसे में लेना चाहती है ताकि जातीय जनगणना जैसे विवादास्पद मुद्दे को लेकर अड़चनें पेश न आएं।

एक राष्ट्र,एक चुनाव का विचार नया नहीं है। बल्कि वर्ष 1983 में चुनाव आयोग ने पहली बार इसे प्रस्तावित किया था। हालाँकि वर्ष 1967 तक एक साथ चुनाव भारत में प्रतिमान थे।आपको याद होगा कि लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के पहले आम चुनाव वर्ष 1951-52 में एक साथ हुए थे।इसके बाद वर्ष 1957, वर्ष 1962 और वर्ष 1967 में हुए तीन आम चुनावों में भी यह प्रथा जारी रही। लेकिन वर्ष 1968 और वर्ष 1969 में कुछ विधान सभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण यह चक्र बाधित हो गया। वर्ष 1970 में लोकसभा को समय से पहले ही भंग कर दिया गया था और वर्ष 1971 में पुनः नए चुनाव हुए थे। इस प्रकार पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा ने पूरे 5 वर्ष के कार्यकाल पूर्ण किये थे।लोकसभा और विभिन्न राज्य विधानसभाओं दोनों के समय से पहले विघटन और कार्यकाल के विस्तार के परिणामस्वरूप लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं के अलग-अलग चुनाव हुए हैं और एक साथ चुनाव का चक्र बाधित हो गया।’

भाजपा सरकार इस पुराने मुद्दे को एक बार फिर गर्म कर रही है और इसके पक्ष में उसने तमाम तर्क भी खोज रखे है। इस समय देश में प्रत्येक वर्ष कम-से-कम एक चुनाव होता है; दरअसल प्रत्येक राज्य में प्रत्येक वर्ष चुनाव भी होते हैं। भाजपा सरकार में गठित नीति आयोग ने तर्क दिया कि इन चुनावों के चलते विभिन्न प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नुकसान होते हैं।बताया जाता है कि बिहार जैसे बड़े आकार के राज्य के लिये चुनाव से संबंधित सीधे बजट की लागत लगभग 300 करोड़ रुपए है। हालाँकि

प्रत्येक चुनाव के दौरान सरकारी तंत्र चुनाव ड्यूटी और संबंधित कार्यों के कारण अपने नियमित कर्तव्यों से चूक जाता है। चुनावी बजट में चुनाव के दौरान उपयोग किये जाने वाले इन लाखों मानव-घंटे की लागत की गणना नहीं की जाती है।एक तर्क ये भी है की चुनावों कि दौरान लागूकी जाने वाली आदर्श आचार संहिता सरकार कि कामकाज को भी प्रभावित करती है, क्योंकि चुनावों की घोषणा के बाद न तो किसी नई महत्त्वपूर्ण नीति की घोषणा की जा सकती है और न ही क्रियान्वयन। सुरक्षा बलों को तैनात करने तथा बार-बार उनके परिवहन पर भी भारी और दृश्यमान लागत आती है। संवेदनशील क्षेत्रों से इन बलों को हटाने और देश भर में जगह बार-बार तैनाती के कारण होने वाली थकान तथा बीमारियों के संदर्भ में राष्ट्र द्वारा एक बड़ी अदृश्य लागत का भुगतान किया जाता है ।

भाजपा को पता है कि एक देश ,एक चुनाव को लागू करना आसान नहीं है लेकिन पार्टी और सरकार इस विषय को लेकर दूसरे ज्वलंत मुद्दों को पीछे ले जाना चाहती है । आमतौर पर सभी दल इस मुद्दे पर एक राय नहीं होते। अनेक दलों का मानना है कि एक साथ चुनावों को लागू करना लगभग असंभव है क्योंकि इसके लिये मौजूदा विधानसभाओं के कार्यकाल में मनमाने ढंग से कटौती करनी पड़ेगी या उनकी चुनाव तिथियों को देश के बाकी भागों हेतु नियत तारीख के अनुरूप लाने के लिये उनके कार्यकाल में वृद्धि करनी पड़ेगी।कुछ दल मानते हैं कि

ऐसा कदम लोकतंत्र और संघवाद को कमज़ोर करेगा।

‘ एक राष्ट्। एक चुनाव के आलोचकों का कहना है कि एक साथ चुनाव कराने के लिये मजबूर करना लोकतंत्र के विरुद्ध है क्योंकि चुनावों के कृत्रिम चक्र को थोपने की कोशिश करना और मतदाताओं की पसंद को सीमित करना उचित नहीं है। ऐसा माना जाता है कि एक साथ चुनाव से क्षेत्रीय दलों को नुकसान पहुँचेगा क्योंकि एक साथ होने वाले चुनावों में मतदाताओं द्वारा मुख्य रूप से एक ही तरफ वोट देने की संभावना अधिक होती है जिससे केंद्र में प्रमुख पार्टी को लाभ होता है। प्रत्येक 5 वर्ष में एक से अधिक बार मतदाताओं के समक्ष आने से राजनेताओं की जवाबदेहिता बढ़ती है।

भाजपा सरकार के लिए एक राष्ट्र,एक चुनाव लागू करना उतना आसान नहीं होगा जितना की पूर्व में जम्मू-कश्मीर से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाना आसान बन गया था । अब संसद में भाजपा की ताकत 2014 और 2019 के मुकाबले 2024 में बहुत कम है और इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि जेडीयू और टीडीपी जैसे दल इस मुद्दे पर आसानी से मान जायेंगे। एक साथ चुनाव की अवधारणा को लागू करने के लिये संविधान और अन्य कानूनों में संशोधन की आवश्यकता होगी। लेकिन यह बहुत आसान काम नहीं है। एक बात और ये भी है कि ‘ एक राष्ट्र,एक चुनाव इस बात की कोई गारंटी नहीं देते की देश में फिर मध्यावधि चुनाव नहीं होंगे । इस समय जिस तरह की गठबंधन सरकारें बनाई जा रहीं हैं उनमें किसी भी सरकार के पूरे पांच साल चलने की कोई गारंटी नहीं है। कभी भी कोई भी राजनीतिक दल अपने विरोधी दल की सरकार को अपदस्थ करने के लिए ऑपरेशन लोटस या दलबदल का सहारा ले सकता है। संविधान में किसी भी सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाने का विकल्प है सो अलग।

एक राष्ट्र ,एक चुनाव के सन्दर्भ में विधि आयोग का सुझाव भी काबिले गौर है ,जिसके अनुसार अगले आम चुनाव से निकटता के आधार पर राज्यों को वर्गीकृत किया चाहिये और अगले लोकसभा चुनाव के साथ राज्य विधानसभा चुनाव का एक दौर तथा शेष राज्यों के लिये दूसरा दौर 30 महीने बाद होना चाहिये। लेकिन यह इस बात की गारंटी नहीं देता है कि इन सबके बावजूद भी मध्यावधि चुनाव की आवश्यकता नहीं होगी। बहरहाल जो भी है सके बारे में हरियाणा और जम्मो-कश्मीर विधानसभा के चुनाव परिणाम आने के बाद ही कोई बात आगे बढ़ेगी । अभी तो ये मुद्दा एक सुर्रे से ज्यादा कुछ नहीं है ,

@ राकेश अचल

हरजोत सिंह बैंस और दीपक बाली द्वारा बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों को श्री गुरु त़ेग बहादुर जी के 350वें शहीदी दिवस से संबंधित समागमों के लिए निमंत्रण चंडीगढ़, 8 नवंबर पंजाब के शिक्षा मंत्री श्री हरजोत सिंह बैंस और पर्यटन व सांस्कृतिक मामलों के विभाग के सलाहकार श्री दीपक बाली ने आज राधा स्वामी सत्संग डेरा ब्यास के प्रमुख बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों को श्री गुरु त़ेग बहादुर साहिब जी के 350वें शहीदी दिवस को समर्पित श्री आनंदपुर साहिब में आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। इस दौरान श्री बैंस ने बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों से 23 नवंबर को श्री आनंदपुर साहिब में होने वाले “सर्व धर्म सम्मेलन” में शामिल होने की अपील भी की। यह सम्मेलन श्री गुरु त़ेग बहादुर जी की धर्म (हक-सच) की रक्षा के लिए दी गई शहादत और आपसी भाईचारे के संदेश के व्यापक प्रसार के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है। श्री हरजोत सिंह बैंस ने कहा कि श्री गुरु त़ेग बहादुर साहिब जी की विरासत को पूर्ण श्रद्धा और सच्चे दिल से नमन करने के लिए इस समागम में विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक हस्तियों की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है। बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों ने श्री गुरु त़ेग बहादुर साहिब जी की अनुपम शहादत और अमर विरासत को नमन करते हुए विनम्रता से पंजाब सरकार के निमंत्रण को स्वीकार किया। —

हरजोत सिंह बैंस और दीपक बाली द्वारा बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों को श्री गुरु त़ेग बहादुर जी के 350वें शहीदी दिवस से संबंधित समागमों के लिए निमंत्रण चंडीगढ़, 8 नवंबर पंजाब के शिक्षा मंत्री श्री हरजोत सिंह बैंस और पर्यटन व सांस्कृतिक मामलों के विभाग के सलाहकार श्री दीपक बाली ने आज राधा स्वामी सत्संग डेरा ब्यास के प्रमुख बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों को श्री गुरु त़ेग बहादुर साहिब जी के 350वें शहीदी दिवस को समर्पित श्री आनंदपुर साहिब में आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। इस दौरान श्री बैंस ने बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों से 23 नवंबर को श्री आनंदपुर साहिब में होने वाले “सर्व धर्म सम्मेलन” में शामिल होने की अपील भी की। यह सम्मेलन श्री गुरु त़ेग बहादुर जी की धर्म (हक-सच) की रक्षा के लिए दी गई शहादत और आपसी भाईचारे के संदेश के व्यापक प्रसार के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है। श्री हरजोत सिंह बैंस ने कहा कि श्री गुरु त़ेग बहादुर साहिब जी की विरासत को पूर्ण श्रद्धा और सच्चे दिल से नमन करने के लिए इस समागम में विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक हस्तियों की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है। बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों ने श्री गुरु त़ेग बहादुर साहिब जी की अनुपम शहादत और अमर विरासत को नमन करते हुए विनम्रता से पंजाब सरकार के निमंत्रण को स्वीकार किया। —