सर्व सौभाग्यदायिनी माँ विंध्यवासिनी

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रमाकांत पंत

 

माँ विंध्यवासिनी सर्व सौभाग्य को प्रदान करने वाली परम कल्याणकारी सौभाग्यस्वरुपा देवी के रुप में पूजनीय है इनकी आराधना का फल अतुलनीय माना गया है। माँ विंध्यवासिनी का अलौकिक दरबार परम जाग्रत शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है कि मातेश्वरी विंध्यवासिनी के इस दरबार में जो भी श्रद्धालु श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक मां के दर्शन करता है,वह मां कल्याणी देवी विंध्यवासिनी की कृपा से परम कल्याण का भागी बन कर दुर्लभ मुक्ति को प्राप्त करता है। इस कलिकाल में इनकी आराधना हर एक के लिए अनिवार्य बताई गई है। साधक जनों का मानना है कि किसी भी साधना को शुरू करने से पूर्व यदि मां विंध्यवासिनी की आराधना भक्ति व उनका आशीर्वाद प्राप्त नहीं किया तो उसका पूर्णरूपेण फल प्राप्त नहीं होता है। यही कारण है कि किसी भी देवी व देवता की कृपा प्राप्त करने से पूर्व इनकी कृपा व आशीर्वाद प्राप्त करना सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। शक्तिपीठों में शिरोमणि मां का यह दरबार ऊंचे स्थान पर लाल ध्वजा फहराता बड़ा ही मनोहारी व भव्य है। विंध्याचल में यह देवी तीनों रूपों में विराजमान है यहां देवी के तीन प्रमुख मंदिर हैं पहला विंध्यवासिनी जिन्हें भक्तजन कौशिकी देवी के नाम से भी पुकारते हैं, दूसरा मंदिर मातेश्वरी महाकाली और तीसरा अष्टभुजा मंदिर है अर्थात यहां देवी के तीन रूपों के दर्शन का सौभाग्य भक्तों को प्राप्त होता है।

अनेक पुराणों में विंध्य क्षेत्र का सुन्दर शब्दों में वर्णन किया गया है। देश के प्रमुख 108 शक्तिपीठों में इस पीठ की गणना होती है। जगत का कल्याण करने वाले भगवान विन्ध्येश्वर महादेव का मंदिर भी विंध्याचल क्षेत्र में ही है ।विंध्याचल की पहाड़ियों में कल कल धुन में नृत्य करती माँ गंगा के पवित्र पावन सानिध्य में यह स्थान जगत माता की ओर से भक्तजनों को अद्धितीय भेंट है। यहां का सौंदर्य बरबस ही आगंतुकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। त्रिकोण यंत्र पर स्थित विंध्याचल निवासिनी देवी की तीन रूपों महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती के रुप में पूजा होती है। त्रिकोण यात्रा के रूप में विंध्य पर्वत की यात्रा समस्त मनोरथ को पूर्ण करनेवाली यात्रा कहीं गई है। यहाँ पर स्थित विंध्यवासिनी माता मधु तथा कैटभ नामक महादैत्यों का नाश करने वाली देवी के रूप में भी पूजित है। कहा जाता है कि जो मनुष्य इस स्थान पर तपस्या करता है, उसे उसकी तपस्या का फल शीघ्र प्राप्त होता है। यही कारण है कि विभिन्न देवी-देवताओं के साधक, उपासक सबसे पहले माँ विंध्यवासिनी की ही साधना करते हैं। मां का यह दरबार आदि अनादि से रहित माना गया है। अर्थात इस क्षेत्र का अस्तित्व सदैव जागृत रहता है। इनका स्मरण समस्त संकल्पों की सिद्धि का सुंदर स्वरूप प्रदान करने वाला कहा गया है। ब्रह्म जी इनकी शक्ति से ही सृष्टि उत्पन्न करते हैं, विष्णु जी पालन, और शंकर जी संहार। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, कि यहां तीन किलोमीटर के दायरे में तीन प्रमुख देवियां विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि तीनों देवियों के दर्शन किए बिना विंध्याचल की यात्रा अधूरी मानी जाती है। तीनों के केन्द्र में मां विंध्यवासिनी का वास है। गंगा नदी के पावन तट पर स्थित मां विंध्यवासिनी का दरबार पुरातन काल से परम पूजनीय है यह मंदिर बस्ती के मध्य एक ऊंचे सुनहरे स्थान पर है। मंदिर में मां भगवती सुन्दर स्वरूप में विराजमान है मन्दिर के पश्चिम भाग में एक सुनहरा आंगन है, जिसके समीप मां की एक सुंदर मूर्ति है। समीप ही दूसरे मंडप में खपरेश्वर महादेव विराजमान है।

यहीं दक्षिण दिशा में माता महाकाली की मूर्ति है, और उत्तर दिशा में धर्म ध्वजा देवी विराजमान है। विंध्याचल क्षेत्र में ही माता सीता के चरण चिन्ह के दर्शन होते है। यहाँ के काली खोह नामक स्थान पर माँ काली के परम भक्त भैरव बाबा का मन्दिर है। कुछ ही दूरी पर अष्टभुजा देवी के दर्शन होते हैं, खासतौर से अष्टभुजा देवी की पूजा भक्तजन माता सरस्वती के रूप में करते हैं। विंध्यवासिनी माता की महिमा अपरंपार है। कहा जाता है, द्वापर युग में जब देवकी और वासुदेव की कन्या को कंस ने पत्थर पर पटका तो यह देवी अदृश्य होकर आकाश में अष्टभुजा के रूप में प्रकट हुई तथा उसके बाद विंध्याचल पर्वत पर विराजमान होकर पूजित हुई। योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की बहिन अर्थात् कृष्णानुजा कही जाने वाली इस देवी की कृपा जिस पर हो जाए वह सहज में ही योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की कृपा का पात्र बन जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी द्वारा स्थापित माता मंगला देवी का मंदिर भी इसी क्षेत्र में है। हनुमान मंदिर, शीतला मंदिर, सतसागर सहित अनेक महातीर्थ यहां की पावन भूमि पर स्थित है।

माँ पीताम्बरी के परम उपासक सत्य साधक श्री विजेंद्र पांडे गुरु कहते हैं, कि इनकी आराधना के बिना कोई भी साधना सफल नहीं होती है। इसलिए किसी भी देवी या देवता को अपना ईष्ट मानने से पूर्व या उसके बाद सर्वप्रथम माँ विंध्यवासिनी की 31 दिन तक उनके पावन मंत्रों से साधना करनी चाहिए इनकी साधना के बाद साधक का जीवन अपने इष्ट के प्रति अचल निष्ठा को प्राप्त होता है। शुम्भ और निशुम्भ दैत्यों का वध करनें वाली माता विन्ध्यवासिनी का पूजन, स्मरण, चरित्र श्रवण, सर्वसौभाग्य को प्रदान करने वाला कहा गया है।

 

श्रीमद्देवी भागवत महापुराण के दशम स्कंध में माता विंध्यवासिनी का बड़ा ही सुंदर वर्णन आता है। योगेश्वर भगवान श्री नारायण ने अपने श्री मुख से श्री नारद जी को विंध्यवासिनी देवी के चरित्र का वर्णन सुनाया। पापों का शमन करने वाली माँ विंध्यवासिनी मनु की आराध्या देवी भी कही गई हैं। इन्ही की कृपा से मनु ने अपने राज्य को निष्कटंक चलाकर दुर्लभ मुक्ति को प्राप्त किया। माँ विंध्यवासिनी के साथ-साथ विंध्याचल पर्वत का भी देवी भागवत में वर्णन आता है। कहा जाता है कि एक बार विंध्य पर्वत के मन में यह अहंकार उत्पन्न हो गया था, कि वह सुमेर गिरी के प्रताप को अपने बल से धूमिल कर देगा। क्योंकि सूर्य सभी ग्रह नक्षत्र समूहों से युक्त होकर सुमेरु पर्वत की सदा परिक्रमा करते रहते हैं, सुमेरु के कारण मेरा प्रताप फीका पड़ गया है, अहंकार में चूर विंध्य पर्वत ने अपने शिखरों को बढ़ाकर सूर्य का मार्ग अवरुद्ध कर दिया इससे तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। सभी देवगण भगवान शिव की शरण में पहुंचे। भगवान शिव ने इस समस्या के निदान के लिए सभी देवताओं को विष्णु की शरण में भेजा और देवताओं द्वारा भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की सुंदर स्तुति की। महायज्ञस्वरूपधारी, मत्सयरुपधारी, कूर्मरुषधारी, वराहरूपधारी, नृसिंहरूपधारी, वामनरूपधारी, परशुरामरूपधारी, श्रीरामरूपधारी, श्रीकृष्णरूपधारी, बौद्ररूपधारी, कल्किरूपधारी सहित प्रभु के अनेक स्वरूपों की देवताओं द्वारा श्रद्धा व भक्ति के साथ स्तुति की गई। स्तुति से प्रसन्न भगवान विष्णु ने देवताओं को अगस्त्य ऋषि की शरण में भेजा तथा कहा कि महर्षि अगस्त्य ही विंध्य पर्वत के अहंकार को नष्ट करके समस्त विघ्नों को दूर करेंगे। इस प्रकार अगस्त जी के पास पहुंचकर देवताओं ने श्रद्धापूर्वक उनसे प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर अगस्त्य ऋषि ने विंध्य पर्वत का अहम और वहम दूर किया। सूर्य भगवान का मार्ग प्रशस्त हुआ। पर्वत की वृद्धि को रोककर स्वयं अगस्त्य ऋषि ने अपनी तपस्या पुनः आरम्भ की। देवी ने अपने अनेक स्वरूपों के साथ इस पर्वत पर अपना बसेरा किया मनु ने इस देवी की आराधना की और जगत में विंध्य पर्वत पर स्थित यह देवी मां विंध्यवासिनी के नाम से प्रसिद्ध हुई। इनका स्मरण, चिंतन एवं इनका दर्शन समस्त सिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है। (विभूति फीचर्स)

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