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करों नमन हैं 15 अगस्त.
संग्राम में सब हो गए राम-राम
न जाने कितनों की जानें गई,
मजबूरी में कितने हुए गुलाम.
कितने लटके फाँसी पर,
सीने पर गोलियाँ जिसने खाई.
वतन को आज़ाद कराने में,
लुटा गए सब अपनी पाई-पाई.
इस तिरंगे की शान में यारों
किस-किसका लहू बहाँ,
तब लाशों के खूब ढेर पड़े,
जलियावाला बाग ने भी सहा.
कितने गाँधी, कितने सुभाष
क्या लाल, क्या बाल,
निगल गया सबको ये काल.
वो आज़ाद, ये सुखदेव, राजगुरु
सब के सब थे इनके भगत
याद करों आज फिर इन्हें,
करों नमन हैं 15 अगस्त.
संजय एम. तराणेकर
(कवि, लेखक व समीक्षक)