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*दीदी माँ को समर्पित*
“ऋतम्भरा ओज” पाकर पद्म जैसा खिल गया,
पद्म भूषण सम्मान को “सम्मान” मिल गया।
उनके वात्सल्य सरोवर में कमल ही खिलते,
चलो, अच्छा है कि एक और खिल गया।
धर्म, करुणा और प्रेम का संदेश दिया,
संस्कृति के दीप को फिर से प्रज्वलित किया।
हर हृदय में उन्होंने उम्मीद जगाई,
मानवता के लिए नई राह दिखाई।
वात्सल्य ग्राम में बसी ममता की छवि,
जहाँ हर ओर दिखती है सेवा की लहर।
दीदी माँ की ये साधना अनमोल है,
उनका जीवन स्वयं में एक अनूठा रोल है।
*सम्मानित हुईं तो देश गौरवान्वित हुआ,
उनके कार्यों से समाज आलोकित हुआ।
हर कदम पर प्रेरणा की ज्योत जलाएँगी,
सद्भाव, प्रेम का संसार सजाएँगी।
*यह कविता दीदी माँ के अद्भुत योगदान और उनके पद्म भूषण सम्मान पर सजीव श्रद्धांजलि है।*