पहाड़ों में मानसूनी-तबाही के लिए घर से डीपीआर बनाने वाले जिम्मेदार : केंद्रीय मंत्री गडकरी का बेबाक इलजाम

केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी

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मानसूनी कहर से तबाही

बोले, दुर्घटनाएं, सुरंगें के ढहने के लिए गूगल पर रिपोर्ट तैयार करने वाले कंपनियों के मालिक, रिटायर अफसर कसूरवार

चंडीगढ़,,   4 सितंबर। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी बेबाक बयानबाजी के लिए मशहूर रहे हैं। अब पहाड़ी राज्यों में मानसूनी कहर से मची तबाही को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने देशभर में महत्वपूर्ण राजमार्गों और सुरंगों के निर्माण के लिए रिपोर्ट तैयार करने वालों की कड़ी आलोचना की है। साथ ही कहा कि वे उचित प्रक्रियाओं का पालन नहीं करते, जिससे दुर्घटनाएं होने के साथ सुरंगें ढह सकती हैं।
केंद्रीय मंत्री गडकरी ने उद्योग मंडल फिक्की द्वारा आयोजित ‘टनलिंग इंडिया’ के दूसरे संस्करण को संबोधित करते यह कहा। वह बोले, मुझे इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, लेकिन अगर इसमें कोई दोषी है तो वह डीपीआर बनाने वाला ही है। मैं माफ़ी चाहता हूं, दोषी शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूं। डीपीआर बनाने वाली कंपनियों के मालिक सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी हैं। वे बिना किसी विस्तृत जांच-पड़ताल के अपने घरों से गूगल पर काम करते हैं। एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट या डीपीआर, किसी भी बड़ी परियोजना के प्रमुख तत्वों का सारांश होता है।
गडकरी ने कहा कि डीपीआर बनाने वालों के लिए उचित प्रक्रियाओं का पालन करना बहुत ज़रूरी है। इसमें बहुत सारी तकनीकी जानकारी होती है। उन्होंने कहा, कुल्लू से मनाली तक पूरे रास्ते में पहाड़ियां नीचे आ गई हैं और लोगों को बाढ़ में बह जाने वाले अपने घरों से बाहर निकलने के लिए मनाना बहुत मुश्किल है। जबकि डीपीआर बनाने वालों में से ज़्यादातर पूर्व सरकारी अधिकारी हैं, वही इसके लिए ज़िम्मेदार हैं। खासकर, हिमाचल और उत्तराखंड में, दोनों तरफ़ नाज़ुक पहाड़ियों से घिरे बेहद नाज़ुक ज़मीन के टुकड़े पर राजमार्ग के किनारों पर बेधड़क निर्माण कार्य किया गया। यह तबाही पिछले लगभग चार सालों से लगातार हर मानसून में हो रही है।
उन्होंने कहा, हमारी सरकार की व्यवस्था ऐसी है कि डीपीआर मिलने के बाद वे सिर्फ़ टेंडर जारी करने का काम करती हैं। चूंकि मंत्री तकनीकी शब्दों को समझने वाले नहीं होते, इसलिए अधिकारी तकनीकी और वित्तीय योग्यताएं भी बड़ी समझदारी से शामिल कर लेते हैं। केंद्रीय मंत्री ने आगाह किया कि कुछ कंपनियां टेंडर प्रक्रिया में हेराफेरी करती हैं, जिससे अंतिम परियोजना में त्रुटियों का जोखिम रहता है। उन्होंने कहा, मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि कुछ बड़ी कंपनियां ये वित्तीय और तकनीकी योग्यताएं अपने हिसाब से बनवा लेती हैं। निविदा प्रक्रिया में इस तरह की हेराफेरी से लागत बढ़ जाती है। उन्होंने ज़ोज़िला सुरंग के निर्माण की कुशलता का उदाहरण देते हुए कहा कि इस प्रवृत्ति से निपटने का एक तरीका स्वस्थ प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करना और व्यापक अध्ययन करना है।
मंत्री गडकरी ने कहा कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में सरकारी अधिकारियों का बड़ा प्रभाव होता है। मुझे लगता है कि हम सरकार चलाते हैं, हमारे संयुक्त सचिव, अवर सचिव मार्गदर्शक और दार्शनिक होते हैं। और वे फ़ाइल पर जो भी लिखते हैं, उस पर महानिदेशक के हस्ताक्षर होते हैं और मंत्री भी उसी तरह हस्ताक्षर करते हैं। इसी तरह हमारा ‘रामराज्य’ चलता है।

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