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आधुनिकता की अंधी दौड़ में टूटते रिश्ते

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वैदेही कोठारी

 

हमारा समाज रिश्तों का ताना-बाना है। अर्थात रिश्तों का जाल है। हर जगह हम रिश्ते बना लेते हैं। जैसे ट्रेन, बस, मार्केट या सामान्य जगहों पर हम किसी से बात करते हैं तो काका-काकी या मामा-मामी या दीदी-भैया करके सम्बोधित करने लगते हैं, फिर चाहे वह हमारा रिश्तेदार हो या न हो। यही संस्कार हमें बचपन से हमारे बुजुर्गों द्वारा दिये जाते हैं। सामान्यत: दूसरों को भी हम इसी अपनेपन से सम्बोधित करते हैं। कुछ रिश्ते बहुत प्यारे व हंसी मजाक के होते हैं। जैसे-दोस्त यार, सहेलियां, भाई-भाई, भाई-बहन, हमारे कजि़न, जीजा-साली। कुछ रिश्ते आदर व सम्मान के होते हैं। इन्हीं मीठे व प्यारे रिश्तों से हमारा समाज बना है। लेकिन हर रिश्ते-नातों की कुछ मर्यादाएं होती हैं। अगर यह मर्यादाएं (लक्ष्मण रेखा)न रहें तो रिश्तों में खटास आ जाती है। कई बार आपसी दुश्मनी भी हो जाती है। फिर वह कितना भी करीबी क्यों न हो।

 

आजकल हमारा समाज आधुनिकता की अंधी दौड़ में दौड़ रहा है। फिर वह दौड़ सही है या गलत, वह नहीं जानता। फिल्मों में हम अक्सर देखते हैं जीजा-साली का मजाक, देवर-भाभी की ठिठौली, लड़का-लड़की की दोस्ती जो अक्सर मर्यादाहीन दिखाई जाती है। सामान्यत: असल जिंदगी में भी लोग यह करने लगते हैं, लेकिन ऐसा करना असल जिंदगी में कई लोगों की जिंदगी खराब कर देता है। छोटी सी अव्यवहारिक मर्यादाहीन मजाक कब अपना असर दिखा देगी, यह कोई नहीं जानता है। अक्सर महिलाएं व पुरुष अपने आप को आधुनिक बनाने के चक्कर में कई अमर्यादित व अव्यवहारिक बातें या हरकतें कर देते है, जिससे उन्हें पल भर की खुशी तो मिलती है किंतु आगे चलकर वही दुख का कारण बन जाती है, जिससे वे खुद भी दुखी होते हैं और समाज में अपना सम्मान भी खो देते हैं। जीजा-साली- कहते हैं साली आधी घर वाली होती है। जीजा-साली का रिश्ता काफी मजाकिया व प्यारा रिश्ता होता है। हल्की-फुल्की मजाक से यह रिश्ता सराबोर रहता है। बहन भी काफी खुश रहती है। जीजा-साली का मजाक तब तक ही अच्छा लगता है, जब तक कोई मर्यादा न लांघे, लेकिन ऐसा नहीं होता है। आधी घरवाली के चक्कर में कई अश्लील-फूहड़ मजाक भी शामिल हो जाते हैं। यही अश्लील मजाक कब अनैतिक रिश्तों में बदल जाते हैं, पता ही नहीं चलता। कई बार ये अनैतिकता आपराधिक घटनाओं तक पहुंच जाती है। कई लोगों की जिंदगी खराब हो जाती है। घर बर्बाद हो जाते हैं। कई बच्चों को अपनी जिंदगी बिना मां-बाप के गुजारनी पड़ती है। कई लोगों की धारणा होती है कि साली आधी घर वाली होती है, जिससे वे साली से कुछ ज्यादा ही नज़दीकियां बना लेते हैं।जब यह नज़दीकिया ज्यादा हो जाती है तो कई जिंदगियां दांव पर लग जाती हैं। दोस्ती- दोस्त, सखा,सहेली,बहुत ही प्यारा रिश्ता होता है, जो हम स्वयं बनाते हैं। शायद ही कोई ऐसा होगा, जिसका कोई दोस्त न हो। जिंदगी जीने में मजा ही तब आता है, जब कोई हमारा दोस्त होता है। दोस्त वही होता है, जिससे हम सभी तरह के दुख-सुख की बातें सांझा कर सकते हैं।

 

लड़के-लड़कियों की दोस्ती आजकल आम बात हो गई है, लेकिन दोस्ती के इस रिश्ते में मर्यादा होना बहुत आवश्यक है। फिल्मों में दिखाए जाने वाले दृश्यों से नई उम्र के युवा लडके-लड़कियां प्रेरणा लेते हैं और फिल्मी तर्ज पर ही दोस्तियां कर लेते हैं, लेकिन दोस्ती की आड़ में कई लड़कियां शोषण का शिकार हो जाती हैं। आधुनिकता के इस युग में दोस्ती के नाम पर लड़कियों का शारीरिक शोषण आम बात है। आधुनिकता के सांचे में ढलीं युवतियां अपने पुरुष मित्र को कभी भी भाई का सम्बोधन नहीं करतीं। पुरुष मित्र दोस्ती की आड़ में धीरे-धीरे युवतियों से नजदीकी बढ़ाते हैं और आखिरकार लड़की शोषण का शिकार हो जाती हैं। पुरुष मित्र को अपना मतलब पूरा हो जाने के बाद इस तथाकथित मित्रता से कोई मतलब नहीं होता।

 

देवर-भाभी का रिश्ता बहुत ही प्रेम वाला होता है। जिस तरह भाई-बहन का प्रेम होता है, लेकिन कई जगह आजकल यह रिश्ता भी तार-तार हो रहा है।

 

पारिवारिक समूह में हर रिश्ते की अहमियत होती है। इस बदलते आधुनिक समाज में रिश्तों की अहमियत कम होती जा रही है। हर रिश्ते की एक मर्यादा व लक्ष्मण रेखा होती है। इस रेखा को पार करते ही रिश्तों में दरार आने लगती है। अगर हमें अपनी पारिवारिक दुनिया व समाज में अपना मान-सम्मान बनाकर रखना है तो अपनी मर्यादा कभी न लांघें। अपने सभी रिश्तों को प्यार से सहेजकर रखें। (विनायक फीचर्स)

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