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ऐसा नहीं हैं कि
रक्षा सूत्र बाँधने से ही
राखी की इतिश्री हो जाती.
रखना होता है,
एक-दूसरे का खयाल,
पूछना होता है हाल-चाल.
सुख में कम और
दुःख में ज्यादा
इस स्नेह बंधन की,
होती मजबूत पहचान.
परिस्थितियाँ ही लेती हैं
इस रिश्ते की परीक्षा,
तू अमीर, मैं गरीब का
ये सामाजिक आवरण,
आपसी प्रेम ही करता
इसका आंकलन, वरण.
सिर्फ़ भाई से ही रक्षा का
वचन न लेना बहना.
अब तो इस नवयुग में,
बहन भी हो गईं है सक्षम.
रख लेना उसका भी ध्यान,
यदि हो वह भाई अक्षम.
होगा तभी सार्थक,
राखी और रक्षाबंधन.
संजय एम. तराणेकर
(कवि, लेखक व समीक्षक)