एसजीपीसी सदस्यों की सुखबीर से मीटिंग पर उठने लगे सवाल, विरोधियों का वार-कंट्रोल की बातें सही निकली

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पंजाब/यूटर्न/5 जुलाई: शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्यों की मीटिंग लेकर सुखबीर बादल विवादों में घिर गए हैं। बागी नेता सवाल उठाने लगे हैं कि अब साफ हो गया है कि एसजीपीसी पर सुखबीर का कंट्रोल है और मनमर्जी से एसजीपीसी को चलाया जा रहा है। अकाली दल के नेता व सुखबीर बादल हमेशा कहते आए हैं कि उनकी एसजीपीसी में कोई दखलअंदाजी नहीं है। बीबी जागीर कौर भी इससे पहले कह चुकी हैं कि आखिरी मौके पर आकर लिफाफे से अध्यक्ष निकाल लिया जाता है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के 106 सदस्यों ने शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल का चंडीगढ़ में एकत्रित होकर समर्थन किया था। बैठक में 93 सदस्य उपस्थित थे, छह सदस्य देश से बाहर थे, पांच सदस्यों का स्वास्थ्य ठीक नहीं था जबकि दो सदस्य पारिवारिक मामलों में व्यस्त थे। सीएम मान भी कह चुके हैं कि एसजीपीसी के प्रधान को अकाली दल के कार्यालय में तलब करवाकर एसजीपीसी मुखिया को सिर्फ बादल परिवार के फैसले से अवगत करवाया जाता है। दरअसल, अकाली दल के प्रधान का कंट्रोल एसजीपीसी पर उस समय खुलकर सामने आया जब 2002 में कैप्टन अमरिंदर सिंह सूबे के सीएम बने थे। यह बात उठने लगी कि कैप्टन अमरिंदर सिंह एसजीपीसी प्रधान गुरचरण सिंह टोहड़ा से हाथ मिलाकर संगठन को अकाली दल से आजाद करवाना चाहते हैं। प्रकाश सिंह बादल ने एक चतुराईपूर्ण और समयानुकूल कदम उठाया और नवंबर 2002 में एसजीपीसी सदस्यों को अपने बालासर रिसॉर्ट (सिरसा, हरियाणा) में ले गए और बालासर के विभिन्न फार्म हाउसों में पांच सितारा होटलों में रखा। चुनाव के दिन बादल एसजीपीसी सदस्यों को हरियाणा से सीधे अमृतसर ले आए। बादल ने टोहड़ा को एसजीपीसी से हटा दिया और अपने निकटवर्ती सलाहकार कृपाल सिंह बडूंगर को एसजीपीसी का अध्यक्ष बनवा दिया। अकाली और सिख मामलों में बादल की सर्वोच्चता को स्थापित कर दिया। इसके बाद से लगातार सवाल खड़ा होने लगा कि बादल परिवार एसजीपीसी पर कंट्रोल कर रहा है। बाद में टोहड़ा फिर से बादल परिवार के साथ मिल गए और आखिरकार गुरचरण सिंह टोहड़ा को दोबारा बादल परिवार ने प्रधान बनाया। टोहड़ा के निधन के बाद अलविंदरपाल सिंह पखोके को 1 अप्रैल 2004 से 22 सितंबर 2004 तक थोड़े समय के लिए एसजीपीसी का अध्यक्ष बनाया गया। उसके बाद इस लिफाफा संस्कृति के तहत 23 सितंबर 2004 को जागीर कौर को एसजीपीसी का अध्यक्ष बनाया गया। वे 22 नवंबर 2005 तक अध्यक्ष रहीं। फिर अगले साल नवंबर 2005 में अवतार सिंह मक्कड़ को लिफाफा संस्कृति के जरिए एसजीपीसी का अध्यक्ष बनाया गया। मक्कड़ 4 नवंबर 2016 तक एसजीपीसी के अध्यक्ष रहे। नवंबर 2016 के चुनावों में, बादल ने चुनाव के दिन एक लिफाफा आगे बढ़ाया जिसमें कृपाल सिंह बडूंगर का नाम था। बडूंगर 16 नवंबर से 17 नवंबर तक एसजीपीसी अध्यक्ष रहे। 2017 के चुनावों में चुनाव के दिन गोबिंद सिंह लोंगोवाल के नाम का लिफाफा खोला गया। लोंगोवाल नवंबर 2017 से नवंबर 2020 तक अध्यक्ष रहे। बादल ने 2020 के चुनावों में जागीर कौर पर अपना आशीर्वाद बरसाया और उन्हें नवंबर 2020 से नवंबर 2021 तक एक और कार्यकाल के लिए अध्यक्ष बनाया गया।
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