पूरे विश्व में गुरु गोविंद सिंह का प्रकाश पर्व हर्षोल्लास के साथ प्रभात फेरी शोभायात्रा निकालकर मनाया जा रहा है
गुरु नानक देव व गुरु गोविंद सिंह का प्रकाश पर्व आज भी उनके हर अनुयाई के हृदय में जोश व आत्मविश्वास का संचार करता है-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर सारी दुनियाँ में जहां भी बाबा गुरु नानक देव जी के अनुयाई विशेष रूप से सिख, सिंधी या अन्य भाषी भारतीय मूल के लोग निवास करते हैं,वहां गुरु नानक देव व गुरु गोविंद सिंह जी के प्रकाश पर्व को जरूर मनाया जाता है, जो इस वर्ष सोमवार दिनांक 6 जनवरी 2025 को मनाया जा रहा है, अनेक शहरों में यह पर्व 3 दिवसीय हो रहा है जिसमें प्रभात फ़ेरी शोभायात्रा के रूप में बाबा जी की सवारी निकाली जा रही है, जैसे पटना में जो गुरु गोविंद सिंह का जन्म स्थल है वहां पर 4 से 6 जनवरी 2025 को प्रकाशपर्व शुरू हो गया है, जहाँ पूरे भारत क़े अनेक अनुयाई प्रकाशपर्व उत्सव में भाग लेते हैं, जहां रांची से अनेक भागों में 350 यात्रियों का जत्था भी पटना आ रहा हैं। वैसे ही पूरे देश व विदेशों से भी श्रद्धालु शामिल होते हैं।हमारी गोंदिया राइस सिटी में भी दिनांक 4 जनवरी 2025 को प्रकाशपर्व उत्सव के उपलक्ष में एक भव्य शोभायात्रा यात्रा निकाली गई जिसमें मैं प्रत्यक्ष रूप सेउपस्थित था, जिसमें बड़ी संख्या में सिख व सिंधी भाई शामिल थे, एक रथ में गुरु ग्रंथ साहिब विराजमान थे व माताएं बहने भजन गा रही थी, अन्य भाई पारंपरिक वेशभूषा में कमाल के करिश्में दिखाते हुए झूम रहे थे पूरे पथों पर गुरु ग्रंथ साहिब के रथ के नीचे फूलों की चादर सी बिछाई जा रही थी,पथ पर जल छिड़कक़र पवित्र किया जा रहा था। हर चौक पर प्रसाद वितरण हो रहा था मुझे बहुत आनंद आया व ऐसी ही यात्रा करीब-करीब दुनियाँ के हर देश व शहर में निकालकर गुरु गुरु गोविंद सिंह साहब जी का प्रकाशपर्व मनाया जा रहा है,जिसमें 6 जनवरी 2025 को गुरुद्वारों में विशेष कार्यक्रम हो रहे हैं। पूरे देश-विदेश के शहरों में जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल, वाहे गुरु जी दा खालसा वाहे गुरु जी दी फतेह, चिड़िया नाल ते बाज लड़ावां, तां गोबिंद सिंह नाम धरावां आदि गुरुजी के जयकारे गूंज रहे थे। नगर कीर्तन में शामिल श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखकर पूरा वातावरण गुरुमय हो गया था। चूँकि गुरु नानक देव गुरु गोविंद सिंह का प्रकाश पर्व आज भी उनके हर अनुयाई के हृदय में जोश व आत्मविश्वास का संचार करता है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, गुरु गोविंद सिंह प्रकाश पर्व विशेष 6 जनवरी 2025, वाहेगुरु जी दा खालसा वाहेगुरु जी दी फतेह, इस आर्टिकल में दिए तथ्य मीडिया से लिए गए हैं जिनकी सटीकता का प्रमाण नहीं है, परंतु शोभायात्रा में मैं खुद उपस्थित था।
साथियों बात अगर हम गुरु गोविंद सिंह के प्रकाश पर्व व इस त्यौहार की तिथि व महत्व की करें तो,प्रकाश पर्व सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है,जिसे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। सिख धर्म में कुल दस गुरु हुए हैं और इनमें से दो प्रमुख गुरुओं, गुरु नानक देव जी और गुरु गोबिंद सिंह जी के जन्मदिवस को विशेष रूप से प्रकाश पर्व या प्रकाश उत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व न केवल सिख समुदाय के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है। साल 2025 में गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाश पर्व 6 जनवरी, सोमवार को मनाया जा रहा है। गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना, बिहार में हुआ था। उन्होंने मात्र दस वर्ष की आयु में गुरु की गद्दी संभाली और सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु बनें।उनका जन्म पौष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। नानकशाही कैलेंडर के अनुसार, यह तिथि हर साल बदलती रहती है, लेकिन इस अवसर को पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाया जाता है। प्रकाश पर्व का अर्थ है- अंधकार को दूर कर सत्य, ईमानदारी, और सेवा का प्रकाश फैलाना। गुरु नानक देव जी और गुरु गोबिंद सिंह जी ने समाज में ज्ञान, सत्य, और न्याय का प्रकाश फैलाया। उन्होंने लोगों को यह सिखाया कि जीवन में सत्य और धर्म का पालन करना ही सच्चा प्रकाश है। इस दिन गुरुद्वारों को भव्य तरीके से सजाया जाता है, नगर कीर्तन निकाले जाते हैं, और श्रद्धालु अरदास, भजन-कीर्तन, तथा प्रभात फेरी में शामिल होकर गुरु जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
साथियों बात अगर हम गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की करें तो,उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना बैसाखी के दिन की थी। यह एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसने सिख धर्म को एक नई दिशा और पहचान दी। खालसा पंथ का मुख्य उद्देश्य अन्याय, अत्याचार और अंधकार को समाप्त करना था।उन्होंने मुगलों और उनके अत्याचारियों के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़ीं। उन्होंने कभी अन्याय के आगे सिर नहीं झुकाया और न ही अपने अनुयायियों को झुकने दिया। उन्होंने सिखों को आत्मसम्मान और निडरता का पाठ पढ़ाया।उनकी प्रसिद्ध वाणी वाहेगुरु जी दा खालसा, वाहेगुरु जी दी फतेहआज भी हर सिख के हृदय में जोश और आत्मविश्वास का संचार करती है। गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती को प्रकाश पर्व इसीलिए कहते हैं क्योंकि प्रकाश पर्व या प्रकाश उत्सव का अर्थ है मन से बुराइयों को दूर करते उसे सत्य, ईमानदारी, और सेवाभाव से प्रकाशित करना गुरु नानक देव और गुरु गोबिंद सिंह ने समाज में ज्ञान का प्रकाश फैलाया था, इसीलिए इस दिन को इस नाम से जाना जाता है।
साथियों बात अगर हम गुरु गोविंद सिंह के जीवन को जानने की करें तो ऐसा, इतिहास पुरूष कभी भी राजसत्ता प्राप्ति, जमीन-जायदाद, धन सम्पदा या यश प्राप्ति के लिए लड़ाईयां नहीं लड़ते। श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ऐसे इतिहास पुरूष थे, जिन्होनें ताउम्र अन्याय , अधर्म अत्याचार और दमन के खिलाफ तलवार उठाई और लड़ाईयां लड़ी। गुरू जी की तीन पीढ़ियों ने देश धर्म की रक्षा के लिए महान बलिदान दिया। आज देश अपनी स्वतंत्रता की 75वी वर्षगांठ आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है, ऐसे में पूरे देश में स्वतंत्रता सेनानियों, शहीदों, बलिदानियों को याद किया जा रहा है। सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी को उनकी जयंती पर नमन कर प्रत्येक भारतवासी गर्व महसूस कर रहा है। वे नौवें सिख गुरु, श्री गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी के इकलौते बेटे थे, जिनका बचपन का नाम गोबिंद राय था। सन् 1699 ई0 में बैसाखी के दिन गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना कर पांच व्यक्तियों को अमृत चखा का पांच प्यारे बना दिए। इन पांच प्यारों में सभी वर्गो के व्यक्ति थे। इस प्रकार से उन्होंने जात-पात मिटाने के उद्देश्य से अमृत चखाया । बाद में उन्होंने स्वयं भी अमृत चखा और गोबिंद राय से गोबिंद सिंह बन गए।गुरु गोबिंद सिंह ने एक खालसा वाणी वाहे गुरुजी का खालसा, वाहे गुरुजी की फतेह स्थापित की। साथ ही उन्होंने आदर्शात्मक जीवन जीने और स्वयं पर नियंत्रण के लिए खालसा के पांच मूल सिद्धांतों की भी स्थापना की। जिनमें केस, कंघा, कड़ा, कछ, किरपाण शामिल है।ये सिद्धान्त चरित्र निर्माण के मार्ग थे। उनका मानना था कि व्यक्ति चरित्रवान होकर ही विपरित परिस्थितियों व अत्याचारों के खिलाफ लड़ सकता है। गुरू गोबिन्द सिंह जी की वीरता और लोकप्रियता से आस पास के पहाड़ी राजा द्वेष करने लगे यहां तक बिलासपुर के राजा भीमचन्द सहित गढ़वाल, कांगड़ा के राजाओं ने मुगल शासक औरंगजेब के पास जाकर गुरु गोबिंद सिंह के खिलाफ लड़ने के लिए सैनिक सहायता मांगी और कहा कि इसके बदले में वे वार्षिक लगान देंगें। इसी प्रकार जब औरंगजेब की सेना का जनरल सैयद खान युद्ध के लिए आनंदपुर साहिब जाने लगा तो रास्ते में साधुरा नामक स्थान पर उनकी बहन नसरीना से मिले। उनकी बहन ने सैयद खान को गुरू गोबिन्द सिंह के खिलाफ युद्व करने से रोका और कहा कि वे पहले से ही गुरु जी की अनुयायी हैं और गुरु गोबिंद सिंह एक धार्मिक व आध्यात्मिक संत हैं। गुरु गोबिंद सिंह जी के चारपुत्र थे, जिनका नाम साहिबजादे अजीत सिंह, साहिबजादे जुझार सिंह, साहिबजादे फतेह सिंह, साहिबजादे जोरावर सिंह था। उन्होंने अपने चारों पुत्र धर्म की रक्षा के लिए कुर्बान किए। मुगल शासक द्वारा दो पुत्र जोरावर सिंह और फतेह सिंह को सरहिंद में दीवार में चुनवा दिया गया । दो पुत्र अजीत सिंह और जुझार सिंह युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए । गुरु गोबिंद सिंह ने अपने पुत्रों की शहादत में कहा था-
सब पुत्रन के कारन वार दिए पुत चार ।
चार मुुए तो क्या हुआ, जीवित कई हजार ।।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन में आनंदपुर, भंगानी, नंदौन, गुलेर, निर्मोहगढ, बसोली, चमकोर, सरसा व मुक्तसर सहित 14 युद्ध किए। सितम्बर 1708 में गुरू जी दक्षिण में नांदेड़ चले गए और बैरागी लक्ष्मणदास को अमृत छका और युद्व कौशल से पारंगत कर बंदा सिंह बहादुर बनाया और उन्हें खालसा सेना का कमाण्डर बनाकर संघर्ष के लिए पंजाब भेज दिया। पंजाब पहुंच कर बन्दा सिंह बहादुर ने चप्पा चीड़ी की जंग जीती।
अक्तूबर 1708 में महाराष्ट्र के नांदेड़ साहिब में गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी आखिरी सांस ली। इस प्रकार से पहले पिता गुरु तेग बहादुर सिंह, फिर चारों पुत्रों ने और बाद में श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने स्वयं बलिदान देकर धर्म की रक्षा की।स्वामी विवेकानंद जी ने गुरू गोबिंद सिंह जी को एक महान दार्शनिक, संत, आत्मबलिदानी, तपस्वी और स्वानुशासित बताकर उनकी बहादुरी की प्रशंसा की थी। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था मुगल काल में जब हिन्दु और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के लोगों का उत्पीड़न हो रहा था तब श्री गुरू गोबिंद जी ने अन्याय, अधर्म और अत्याचारों के खिलाफ और उत्पीड़ित जनता की भलाई के लिए बलिदान दिया था जो एक महान बलिदान है। इस प्रकार से गुरू गोबिंद सिंह जी महानों में महान थे।गीता में कहा है कि कर्म करो, फल की चिन्ता न करो। ठीक इसी प्रकार गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा है देह शिवा बर मोहे इहै, शुभ करमन ते कबहूं न टरूं’ यानि हम अच्छे कर्मो से कभी पीछे न हटें, परिणाम भले चाहे जो हो। उनके इन विचारों व वाणियों से पता चलता है कि गुरु गोबिंद सिंह जी ने कर्म, सिद्धान्त, समभाव, समानता, निडरता, स्वतंत्रता का संदेश देकर समाज को एक सूत्र में पिरोने का काम किया। उन्होंने कभी भी मानवीय व नैतिक मूल्यों से समझौता नहीं किया। आज फिर जरूरत है कि उनके बताए मार्ग पर चल हम सभी धर्म, समाज व भाईचारे को मजबूत कर एक भारत-श्रेष्ठ भारत के लिए कार्य करें।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि गुरु गोविंद सिंह जी का प्रकाश पर्व 6 जनवरी 2025- वाहेगुरु जी दा खालसा वाहेगुरु जी दी फ़तेह।पूरे विश्व में गुरु गोविंद सिंह का प्रकाश पर्व हर्षोल्लास के साथ प्रभात फेरी,शोभायात्रा निकालकर मनाया जा रहा है।गुरु नानक देव व गुरु गोविंद सिंह का प्रकाश पर्व आज भी उनके हर अनुयाई के हृदय में जोश व आत्मविश्वास का संचार करता है।
*-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र*