नकारात्मक राजनीति पर उठी ‘राज्यसभा’ से आवाज
लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में प्रचार मुहिम में जुटे तमाम राजनेता एक-दूसरे की लंगोट खींचने पर उतारु हैं। कोई भी राजनीतिक-दल पूरी ईमानदारी से जनहित के मुद्दों पर बात करने को राजी नहीं है। सभी यह इलजाम एक-दूसरे पर लगा रहे हैं कि उसने मुझे अपशब्द बोले तो मुझे जवाब देना ही पड़ा। खैर, इनके आरोपों-प्रत्यारोपों का जवाब तो जनता जनार्दन ने ही देना है, जिसका खुलासा चार जून को ही हो पाएगा।
फिलहाल पंजाब की आर्थिक-राजधानी लुधियाना से इसी नकारात्मक-राजनीति के खिलाफ एक चिंगारी फूटी है। इस मुद्दे पर यह आवाज किसी आम आदमी की नहीं, बल्कि देश की संसद के हिस्से राज्यसभा के सदस्य संजीव अरोड़ा ने उठाई है। शायद वह भी इस निजी-हमलों वाली राजनीति को देखकर आक्रोशित हो गए। अफसोस, इस गैर-मर्यादित राजनीति में खुद देश के सबसे गरिमापूर्ण पद पर बैठे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक शामिल हैं। जो विपक्ष पर अजीबो-गरीब आरोप लगाने के बाद बिना झिझके यह भी स्वीकार कर लेते हैं कि बतौर प्रधानमंत्री उनको ऐसे सवाल नैतिक-तौर पर नहीं उठाने चाहिएं। इसे बच्चों वाली उस लड़ाई से भी जोड़कर देख सकते हैं, जहां एक बच्चा दूसरे को गाली देकर यह भी सफाई देता है कि मैं तुम्हे ऐसा भी बोल सकता हूं।
राज्यसभा सदस्य अरोड़ा की इस मुद्दे पर गंभीर टिप्पणी गौर करने लायक है। उनके मुताबिक चुनाव तो चार दिन में निपट जाएंगे, लेकिन इतने निचले स्तर की राजनीति नहीं होनी चाहिए कि कल एक-दूसरे से नजर मिलाने में शर्म आए। संयोग से आमजन के मन की बात भी यही है। मतदाता लोकतंत्र के इस महापर्व में खुद को ठगा महसूस कर रहा है। दरअसल नीचे से लेकर ऊपर तक कोई भी उसे हकों की बात इस चुनाव में करता नजर नहीं आया। हद ये कि प्रधानमंत्री ने भी हिंदू-मुस्लमान, मंगलसूत्र, मंदिर-मस्जिद, शहजादे वगैराह, ऐसे ही दोयम दर्जे के जुमले चुनावी-सभाओं में उछाले। लिहाजा आमजन तो अलग रहे, राज्यसभा सदस्य की उठाई आवाज को लोकसभा और विधानसभाओं के सदस्य भी आने वाले वक्त में बुलंद कर सकते हैं। राजनीतिक-स्वार्थ से ऊपर उठकर राज्यसभा सदस्य ने निष्पक्ष तरीके से जो जन के मन की बात की है, उसको भविष्य में भरपूर नैतिक-समर्थन मिलने की उम्मीद है। भारत में लोकतंत्र की मजबूती का सबसे सकारात्मक-पहलू भी यही है।
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