विस चुनाव के मद्देनजर सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ मतदाता सूची को लेकर विपक्ष हमलावर
नई दिल्ली, 22 जुलाई। बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन सत्यापन चल रहा है। इसी बीच राज्य की राजनीति में फिर से लव-कुश और एमवाई यानि मुस्लिम-यादव वोट बैंक की चर्चा तेज है। ये दोनों जातीय गठबंधन सिर्फ वोट बैंक नहीं, बल्कि वो मजबूत आधार हैं, जिनके इर्द-गिर्द बिहार की राजनीति सालों से घूमती रही है।
विपक्ष जहां इस सत्यापन प्रक्रिया को लेकर सत्तारूढ़ गठबंधन और चुनाव आयोग पर सवाल उठा रहा है, वहीं बड़ा सवाल यह है कि क्या नवंबर में होने वाले चुनावों में फिर से लव-कुश और एमवाई फैक्टर निर्णायक भूमिका निभाएंगे ? लव-कुश समीकरण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रणनीति का हिस्सा है, जिसमें कुर्मी (लव) और कोइरी/कुशवाहा (कुश) जातियां आती हैं। ये दोनों समुदाय अन्य पिछड़ा वर्ग में आते हैं और बिहार की कुल आबादी का लगभग 7-9% हिस्सा हैं।
नीतीश खुद कुर्मी जाति से आते हैं। उन्होंने आरजेडी के मुस्लिम-यादव गठबंधन के असर को चुनौती देने के लिए लव-कुश वोट बैंक को मजबूत किया। साथ ही, उन्होंने अत्यंत पिछड़ा वर्ग, जो कि राज्य की करीब 36% आबादी है, को भी अपने साथ जोड़ा। इसी जातीय संतुलन ने नीतीश को 2005 में सत्ता दिलाई और आरजेडी के 15 साल लंबे शासन को खत्म किया। नीतीश को इसी वजह से ‘सुशासन बाबू’ की छवि मिली यानि एक ऐसा नेता, जो जातियों को जोड़ते हुए विकास और कानून व्यवस्था की बात करता है। कोइरी जाति, जो पहले कांग्रेस या वामपंथी दलों के करीब थी, नीतीश की राजनीति से प्रभावित होकर जेडीयू की ओर आई। नीतीश ने बीजेपी और आरजेडी दोनों के साथ समय-समय पर गठबंधन किया, लेकिन लव-कुश वोट बैंक को कभी नहीं छोड़ा।
एमवाई गठबंधन राष्ट्रीय जनता दल की ताकत रहा है। इसे लालू प्रसाद यादव ने 1990 के दशक में बनाया था। बिहार की यादव आबादी लगभग 14% और मुस्लिम आबादी करीब 17% है। यानि दोनों मिलकर लगभग 31% वोटर बनाते हैं, जो किसी भी चुनाव को पलट सकते हैं। लालू ने पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को एक मंच पर लाकर उच्च जातियों के वर्चस्व को चुनौती दी। उस समय उनका नारा था ‘भूरा बाल साफ करो’ यानि जिसमें भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत और बनिया जातियों को निशाना बनाया गया था। इसने मंडल आयोग और सामाजिक न्याय की राजनीति को बढ़ावा दिया।
अब उनके बेटे तेजस्वी यादव इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। अब चुनाव से पहले मतदाता सूची के सत्यापन को लेकर विपक्ष ने आरोप लगाए हैं कि यादव बहुल इलाकों से लाखों वोटरों के नाम हटाए जा रहे हैं। दूसरी तरफ एआईएमआईएम मुस्लिम वोटरों को खींचने में लगी है तो कांग्रेस दलित और पिछड़े समुदायों को जोड़ने की कोशिश कर रही है। ऐसे में साफ है कि 2025 का चुनाव भी जातीय समीकरणों और सामाजिक गठबंधनों की बुनियाद पर लड़ा जाएगा।