मुद्दे की बात : कोल्ड्रिफ संकट, भारत के औषधि सुरक्षा तंत्र के लिए एक चेतावनी

एक्सपोर्टरों को होगा नुकसान

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

Listen to this article

देर आयद-दुरुस्त : पंजाब ने इस कफ सिरप पर बैन लगा सराहनीय पहल की

आखिरकार, पंजाब को भी इसका एहसास हो गया है। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में हाल ही में संदिग्ध गुर्दे की विफलता के कारण 17 बच्चों की मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस त्रासदी के पंजाब में कोल्ड्रिफ कफ सिरप बैन पर लगा दिया गया। सूबे के सेहत मंत्री डॉ.बलबीर सिंह ने इसका अधिकारिक ऐलान किया।
यहां काबिलेजिक्र है कि कोल्ड्रिफ एक कफ सिरप है, जो अब डायथिलीन ग्लाइकॉल से दूषित पाया गया है। जो एक विषैला औद्योगिक विलायक है। इस मामले जैसे-जैसे जाच गहरी होती जा रही है। पंजाब के साथ ही हिमाचल प्रदेश ने भी कोल्ड्रिफ पर प्रतिबंध लगाना सरकार की त्वरित प्रतिक्रिया, स्थिति की गंभीरता को रेखांकित करती है। हालांकि यह भारत में दवा निर्माण की सुरक्षा और नियामक निगरानी को लेकर तत्काल और असहज प्रश्न भी उठाता है।
मध्य प्रदेश की औषधि परीक्षण प्रयोगशाला से प्राप्त सरकारी वविश्लेषक की रिपोर्ट के अनुसार तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में श्रीसन फार्मास्युटिकल मैन्युफैक्चरर द्वारा निर्मित कोल्ड्रिफ सिरप में 46.28% डायथिलीन ग्लाइकॉल पाया गया था। यह स्तर न केवल दवा सुरक्षा मानकों के अनुरूप नहीं है, बल्कि पूरी तरह से जानलेवा भी है। जाच के दायरे में आया बैच, SR-13, जिसका निर्माण मई 2025 में हुआ था और जिसकी समाप्ति तिथि अप्रैल 2027 है, अब सीधे तौर पर कई बच्चों की मौतों से जुड़ा हुआ है। पंजाब द्वारा सभी स्वास्थ्य सेवा संस्थानों, फार्मेसियों और चिकित्सकों के माध्यम से कोल्ड्रिफ की बिक्री, वितरण और उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का तत्काल निर्णय सराहनीय है। ऐसा करके राज्य ने लापरवाही के बजाय एहतियात को प्राथमिकता दी है। एक ऐसे देश में यह एक आवश्यक कदम है, जहाँ दवा सुरक्षा अक्सर निवारक के बजाय प्रतिक्रियात्मक रही है। पंजाब के खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने एक कदम आगे बढ़कर जनता से किसी भी प्रचलित स्टॉक की सूचना देने का आग्रह किया है, जो सामुदायिक सतर्कता पर सराहनीय ज़ोर दर्शाता है।
हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब भारत को डायथिलीन ग्लाइकॉल से संबंधित मौतों का सामना करना पड़ा है। पहले भी ऐसे ही मामले सामने आ चुके हैं। सबसे कुख्यात 1998 में दिल्ली में, और हाल ही में गाम्बिया और उज़्बेकिस्तान में, जहां भारत में निर्मित कफ सिरपों को इसमें शामिल पाया गया था। इन त्रासदियों के बावजूद, दवा निर्माण और निगरानी प्रक्रियाओं में व्यवस्थागत सुधार धीमा और असंगत बना हुआ है। यह ताज़ा घटना राष्ट्रीय स्तर पर एक चेतावनी होनी चाहिए। बाल चिकित्सा दवाओं में औद्योगिक-ग्रेड सॉल्वैंट्स की मौजूदगी गुणवत्ता नियंत्रण में गंभीर खामियों की ओर इशारा करती है। यह दवा आपूर्ति श्रृंखला की अखंडता, निरीक्षणों की प्रभावशीलता और निर्माताओं व राज्य नियामकों की जवाबदेही को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा करती है। इतने खतरनाक संदूषण वाले बैच ने आंतरिक गुणवत्ता जांच कैसे पास कर ली ? क्या कोई तृतीय-पक्ष परीक्षण किया गया था ? किन खामियों के कारण इतनी खराब गुणवत्ता वाले उत्पाद को राज्यों में वितरित किया जा सका ?
केंद्र सरकार और भारतीय औषधि महानियंत्रक को सख्त अनुपालन प्रोटोकॉल लागू करने, उच्च जोखिम वाली दवाओं के लिए रीयल-टाइम परीक्षण और ट्रैकिंग सिस्टम लागू करने और छोटे निर्माताओं के लिए लाइसेंसिंग तंत्र पर पुनर्विचार करने के लिए तेज़ी से कदम उठाने चाहिए। इसके अलावा, समय पर अलर्ट, रिकॉल और निगरानी सुनिश्चित करने के लिए औषधि नियंत्रकों के बीच अंतर-राज्यीय समन्वय में सुधार किया जाना चाहिए। ऐसे में अधिक पारदर्शिता और संचार की भी सख़्त ज़रूरत है। स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में जनता का विश्वास कमज़ोर है, और ऐसे संकटों का ईमानदारी और स्पष्टता से समाधान करने में किसी भी तरह की देरी से अविश्वास ही बढ़ता है।
इस त्रासदी के केंद्र में बच्चे हैं, कमज़ोर, बेज़ुबान और अपनी सुरक्षा के लिए बनी व्यवस्थाओं पर निर्भर। मध्य प्रदेश में हुई मौतें सिर्फ़ दूषित दवाओं का नतीजा नहीं, बल्कि संस्थागत विफलता का भी नतीजा हैं। अपने अकल्पनीय नुकसान का शोक मना रहे परिवारों के लिए, न्याय सिर्फ़ प्रतिबंध तक सीमित नहीं रह सकता। इसमें जवाबदेही, सुधार और यह आश्वासन शामिल होना चाहिए कि ऐसा दोबारा नहीं होगा। भारत दुनिया की फार्मेसी बनने की आकांक्षा रखता है, लेकिन यह उपाधि ईमानदारी, सतर्कता और सुरक्षा मानकों से समझौता ना करके अर्जित की जानी चाहिए। कोल्ड्रिफ त्रासदी को टाले जा सकने वाली आपदाओं की सूची में सिर्फ़ एक और प्रविष्टि नहीं होना चाहिए। यह हमारे औषधि विनियमन ढांचे में लंबे समय से लंबित आमूल-चूल परिवर्तन का उत्प्रेरक होना चाहिए।

हरियाणा और जापान की कंपनी मित्सुई किन्ज़ोकू ने ग्रीन हाइड्रोजन क्षेत्र में शोध एवं विकास के लिए एमओयू पर किए हस्ताक्षर ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में नवाचार, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास को मिलेगी गति, रोजगार के अवसर होंगी सृजित

‘युद्ध नाशियां विरुद्ध’: 220वें दिन पंजाब पुलिस ने 505 ग्राम हेरोइन और 8840 रुपये की ड्रग मनी के साथ 80 ड्रग तस्करों को पकड़ा ‘नशा मुक्ति’ अभियान के तहत, पंजाब पुलिस ने 29 लोगों को नशा मुक्ति उपचार के लिए राजी किया

हरियाणा और जापान की कंपनी मित्सुई किन्ज़ोकू ने ग्रीन हाइड्रोजन क्षेत्र में शोध एवं विकास के लिए एमओयू पर किए हस्ताक्षर ग्रीन एनर्जी के क्षेत्र में नवाचार, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास को मिलेगी गति, रोजगार के अवसर होंगी सृजित

‘युद्ध नाशियां विरुद्ध’: 220वें दिन पंजाब पुलिस ने 505 ग्राम हेरोइन और 8840 रुपये की ड्रग मनी के साथ 80 ड्रग तस्करों को पकड़ा ‘नशा मुक्ति’ अभियान के तहत, पंजाब पुलिस ने 29 लोगों को नशा मुक्ति उपचार के लिए राजी किया