एहतियात ना बरती तो और बढ़ेगा भारतीय घाटा
रूस से ज्यादा तेल खरीदने की वजह से भारत का कारोबारी घाटा वर्ष 2023-24 में 57 अरब डॉलर तक यानि काफी बढ़ गया है। ऐसे में भारत को इस बात की आशंका है कि वर्ष 2030 तक, जब 100 अरब डॉलर के द्विपक्षीय कारोबार का लक्ष्य हासिल किया जाए तो कहीं कारोबार घाटा और भी ज्यादा ना हो जाए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक देश की अर्थव्यवस्था के नजरिए से यह चिंताजनक पहलू सामने आया है।
लिहाजा भारत-रूस के बीच व्यापार, आर्थिक, प्रौद्योगिक, विज्ञान व संस्कृति पर अंतर सरकारी आयोग की 25वीं बैठक में भारत की तरफ से रूस के साथ बढ़ते व्यापारिक घाटे और द्विपक्षीय कारोबार के भुगतान स्थानीय मुद्रा में करने जैसे मुद्दे को प्रमुखता से उठा रहा है। दैनिक जागरण ने भी इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। जिसके मुताबिक गत दिवस विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने भारत-रूस बिजनेस फोरम की बैठक में कहा कि मौजूदा परिवेश में भारत-रूस के बीच कारोबार का सेटलमेंट स्थानीय मुद्रा (रुपये व रूबल) में करना बहुत महत्वपूर्ण है। जयशंकर ने जब यह बात कही तो रूस के फर्स्ट डिप्टी विदेश मंत्री डेनिस मंटुरोव भी उपस्थित थे।
जयशंकर ने भारत और रूस के बीच सहयोग की अपार संभावनाएं बताते हुए कहा कि रूस ने वर्ष 2022 के बाद से एशिया पर ज्यादा ध्यान दिया है। जिससे सहयोग के कई आयाम खुल रहे हैं। दोनों देशों के बीच पुरानी गहरी दोस्ती है। भारत जो लंबे समय तक आठ फीसद की विकास दर हासिल करने की राह पर है और रूस जो प्राकृतिक संसाधनों का एक बड़ा आपूर्तिकर्ता है, यह सहयोग इन दोनों के साथ ही पूरी दुनिया के लिए सही होगा।
हालांकि इसके बाद विदेश मंत्री ने आगाह करते कहा कि दोनों देशों के बीच बढते कारोबारी घाटे को कम करने पर तत्काल ध्यान देना होगा। अभी यह पूरी तरह से एकतरफा है। इसे दूर करने के लिए गैर-शुल्कीय बाधाओं और नियमन संबंधी अड़चनों को दूर करने पर सबसे ज्यादा ध्यान देना होगा। जयशंकर ने भारत व रूस के कारोबारी रिश्तों के संदर्भ में दस तथ्यों का जिक्र किया, जिस पर दोनों देशों की सरकारों को आने वाले दिनों में ध्यान देना होगा। इसमें पहला है द्विपक्षीय कारोबार, जो अभी 66 अरब डॉलर का है, जिसे वर्ष 2030 बढ़ाकर 100 अरब डॉलर करने का लक्ष्य रखा गया है।
दूसरे के तौर पर उन्होंने बढ़ते कारोबारी घाटे का जिक्र किया। इसके अलावा भारत और यूरेशिया इकोनोमिक जोन के बीच व्यापार समझौते के लिए शुरू हुई बातचीत को तेजी से आगे बढ़ाने, भारत व रूस के बीच द्विपक्षीय निवेश संधि को लेकर शुरू की गई वार्ता को पूरी करने, स्थानीय मुद्रा में कारोबार को सेटलमेंट करने जैसी बातें भी शामिल हैं। यहां एक अहम ध्यान देने योग्य पहलू है कि भारत और रूस की सरकारों व केंद्रीय बैंक के बीच विमर्श होने के बावजूद द्विपक्षीय कारोबार का सेटलमेंट रुपये या रूबल में करने में कोई ज्यादा सफलता नहीं मिली है। वैसे कुछ रूस की कंपनियों को रुपये में भुगतान किया गया है, जिसे उन्होंने वोस्ट्रो खाते में जमा कर रखा है। चूंकि भारत से रूस का आयात बहुत ही कम है, इसलिए इसका उपयोग नहीं हो पा रहा। यह एक बड़ी वजह है कि रूस की दूसरी कंपनियां भी रुपये में कारोबार करने से हिचक रही हैं। कुल मिलाकर विदेश मामलों के जानकारों का मानना है कि रुस के साथ कारोबार के मामले में भारत को भविष्य में संभलकर कदम उठाने की जरुरत है।
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