मोदी-शाह की जोड़ी ही लेती है गुजरात में पार्टी के फैसले
इसे राजनीतिक-संयोग ही कहेंगे कि प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी 12 साल से ज़्यादा समय तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे थे। साल 2014 में उनके पीएम बनने के बाद गुजरात में करीब 11 साल के दौरान तीन चेहरे मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल चुके हैं। सियासी-जानकारों की मानें तो बतौर सीएम मोदी ने जितने साल काम किया, लगभग उतने ही साल में तीन नए सीएम आ गए।
अब गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने गत दिनों इस्तीफ़ा नहीं दिया, लेकिन उनके मंत्रिमंडल के सभी 16 मंत्रियों ने पद छोड़ दिए। माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल में फेरबदल कुछ वर्गों में बीजेपी के प्रति नाराज़गी को कम करने के लिए किया गया। जो लगभग तीन दशकों से गुजरात की सत्ता पर क़ाबिज़ है। हालांकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुजरात की कैबिनेट में बदलाव पर कमेंट किया कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है। अगले ही दिन शुक्रवार को नए मंत्रिमंडल का शपथ ग्रहण समारोह हुआ, लेकिन कुछ सवालों के जवाब अब तक नहीं मिले। मसलन मोदी के दिल्ली पहुंचने के बाद अचानक सीएम से लेकर पूरा मंत्रिमंडल क्यों बदल दिया जाता है ? क्या गुजरात को अब तक मोदी का विकल्प नहीं मिल पाया है ? जनवरी 2001 में गुजरात में भीषण भूकंप आया था, जिसमें हज़ारों लोग मारे गए और तबाही हुई।
तब केशुभाई पटेल गुजरात के सीएम थे। उनकी लोकप्रियता में उस वक्त गिरावट आने लगी थी। इसमें भूकंप के अलावा और भी कई फ़ैक्टर शामिल थे। इन परिस्थितियों में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने गुजरात में चेहरा बदलने का दांव खेला। मोदी उस समय तक पार्टी में एक रणनीतिकार और संगठनात्मक नेता के रूप में स्थापित हो चुके थे। हालांकि वह कभी चुनाव नहीं लड़े थे और ना ही कोई प्रशासनिक पद संभाला था। अक्टूबर, 2001 में बीजेपी ने केशुभाई को हटाकर मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री नियुक्त किया, तब मोदी विधायक तक नहीं थे। बाद में मोदी ने राजकोट विधानसभा सीट से उप-चुनाव जीतकर विधानसभा में प्रवेश किया था। कुछ ही समय बाद राज्य में सांप्रदायिक दंगे हुए, इसके बावजूद मोदी ने चार बार राज्य के सीएम पद की शपथ ली।
फिर 2014 में मोदी प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली पहुंचे और राज्य की कमान पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में आनंदीबेन पटेल को मिली। जिनके कार्यकाल में पाटीदार आंदोलन हुआ और ऊना में दलितों के साथ हिंसा हुई। अगस्त, 2016 में पटेल ने अपनी उम्र का हवाला देते हुए इस्तीफ़ा दे दिया। इसके बाद विजय रूपाणी सीएम बने, उनको नेतृत्व ऐसे समय सौंपा गया, जब विधानसभा चुनाव में डेढ़ साल से भी कम समय बचा था। उनके नेतृत्व में हुए 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिली। पांच साल के बाद सितंबर, 2021 में रूपाणी ने इस्तीफ़ा दिया। उनकी जगह पाटीदार समुदाय से भूपेंद्र पटेल सीएम बने। सियासी-माहिरों और वरिष्ठ पत्रकारों की मानें तो असल में यह भारतीय राजनीति की समस्या है, जो व्यक्ति आधारित है। गुजरात मोदी का गृह राज्य है, इसलिए उनका यहां ज़ोर ज़्यादा रहता है।
माहिरों के मुताबिक गुजरात विधानसभा चुनाव को राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी के लिए एक इम्तिहान माना जाता है। इसी ‘गुजरात मॉडल’ का उदाहरण देकर मोदी प्रधानमंत्री बने और गुजरात में उनकी सक्रियता की एक बड़ी वजह यह भी है। जैसे बरगद के पेड़ के नीचे कभी बड़ा पेड़ नहीं पनप सकता, वैसा ही हाल गुजरात का है। गुजरात से भले ही मोदी और उनके सलाहकार व केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह चले गए हों, लेकिन गुजरात की राजनीति पर आज भी उनकी पकड़ उतनी ही मज़बूत है। अंतिम निर्णय यही दोनों लेते हैं, यही कारण है कि मोदी का विकल्प नहीं मिला। दरअसल मोदी अभी भी गुजरात को दिल्ली से चलाते हैं। गुजरात में अगले साल पंचायत चुनाव हैं। इसके बाद दो साल बाद यानि 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं। पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए यह देखना दिलचस्प होगा कि इन चुनावों में सरकार में फेरबदल का कितना और कैसे असर पड़ेगा।
————