मुद्दे की बात : टाटा ट्रस्ट में बड़ी दरार ! चार ट्रस्टियों पर गंभीर आरोप

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चारों ट्रस्टी ने खुद को ‘सुपर बोर्ड’ के रुप में कर लिया स्थापित, 10 अक्टूबर को ट्रस्ट की मीटिंग

एक्सपोर्टरों को होगा नुकसानभारत के सबसे बड़े औद्योगिक समूहों में से एक टाटा समूह, कथित तौर पर एक प्रशासनिक संकट का सामना कर रहा है। दरअसल टाटा संस में बहुसंख्यक शेयरधारक टाटा ट्रस्ट्स के भीतर आंतरिक मतभेद इतने बढ़ गए हैं कि सरकारी हस्तक्षेप की नौबत आ गई है।

सूत्रों के हवाले से कई मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि सरकार घटनाक्रम पर नज़र रख रही है। आशंका है कि यह विवाद टाटा संस और व्यापक समूह के कामकाज पर भी असर डाल सकता है। टाटा संस और समूह की सैकड़ों कंपनियों, जिनमें ऑटोमोबाइल, स्टील, उपभोक्ता वस्तुएं, आईटी सेवाएं आदि शामिल हैं। टाटा ट्रस्ट इन सबके प्रबंधन की देखरेख करता है। ट्रस्ट स्वामित्व की निगरानी करता है तो टाटा संस परिचालन कार्यान्वयन का प्रबंधन करता है। यह संतुलन तनाव में है।

वर्तमान संकट टाटा ट्रस्ट के भीतर सत्ता संघर्ष से उत्पन्न हुआ है, जो एक परोपकारी शाखा है और टाटा संस में नियंत्रणकारी हिस्सेदारी रखती है। जो टाटा समूह के प्रबंधन का संचालन करने वाली होल्डिंग कंपनी है। सूत्रों के अनुसार चार ट्रस्टियों डेरियस खंबाटा, एचसी. जहांगीर, प्रमित झावेरी और मेहली मिस्त्री पर गंभीर आरोप है। उन्होंने अपनी पारंपरिक निगरानी भूमिका से परे जाकर काम किया। खुद को एक ‘सुपर बोर्ड’ के रूप में स्थापित कर लिया। जो टाटा संस के प्रमुख निर्णयों को प्रभावित करने की कोशिश करता है। कथित तौर पर इन ट्रस्टियों ने टाटा संस की बोर्ड बैठकों के कार्यवृत्त की जांच करने और कंपनी की नामांकन एवं पारिश्रमिक समिति द्वारा चुने स्वतंत्र निदेशकों को मंजूरी देने की मांग की थी। यह कार्य आमतौर पर टाटा संस के प्रबंधन के लिए आरक्षित होता है।

सूत्रों ने कहा कि इस तरह के कदम टाटा ट्रस्ट के अध्यक्ष नोएल टाटा के अधिकार को सीधी चुनौती दे सकते हैं। जिससे गंभीर कॉर्पोरेट प्रशासन संबंधी चिंताएं पैदा हो सकती हैं। इन कार्रवाइयों ने वास्तव में बड़े फैसलों को धीमा या अवरुद्ध किया है, यह स्पष्ट नहीं है। यहां शीर्ष स्तर पर परिचालन संबंधी टकराव की संभावना वास्तविक है। टाटा संस के पूर्व अध्यक्ष रतन टाटा के अक्टूबर, 2024 में निधन के बाद से टाटा ट्रस्ट के भीतर तनाव बढ़ रहा है। हाल के महीनों में यह और भी स्पष्ट हो गया। इस गतिरोध ने शीर्ष स्तर पर एक प्रशासनिक शून्यता पैदा कर दी है। जिससे यह चिंता पैदा हो गई है कि अगर यह मतभेद जारी रहा तो टाटा समूह की सैकड़ों कंपनियों, टाटा स्टील और टाटा मोटर्स से लेकर टीसीएस और टाइटन तक के रणनीतिक फैसलों और दिन-प्रतिदिन के कामकाज में देरी या जटिलताएं आ सकती हैं।

कथित तौर पर सरकार ने इस मामले पर कड़ा रुख अपनाया है। गृह मंत्री अमित शाह के आवास पर लगभग एक घंटे चली बैठक में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने टाटा ट्रस्ट के अध्यक्ष नोएल टाटा, उपाध्यक्ष वेणु श्रीनिवासन, टाटा संस के अध्यक्ष एन चंद्रशेखरन और ट्रस्टी डेरियस खंबाटा को बताया कि आंतरिक मतभेदों से टाटा संस को अस्थिर नहीं होना चाहिए। मंत्रियों ने नेतृत्व से किसी भी आवश्यक तरीके से स्थिरता बहाल करने का आग्रह किया। यहां तक कि यह संकेत भी दिया कि अस्थिर करने वाले ट्रस्टियों को हटाने सहित निर्णायक कार्रवाई हो सकती है। अधिकारियों ने कथित तौर पर टाटा नेतृत्व को याद दिलाया कि ट्रस्ट की बहुलांश हिस्सेदारी एक सार्वजनिक जिम्मेदारी है। भारत की अर्थव्यवस्था और कॉर्पोरेट प्रशासन मानकों पर समूह का प्रभाव है। यह ध्यान देने योग्य है कि टाटा ट्रस्ट की बोर्ड बैठक 10 अक्टूबर को निर्धारित है और इस पर ना केवल समूह, बल्कि सरकार और निवेशकों की भी कड़ी नज़र रहेगी।

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