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बिट्‌टू बनाम वड़िंग : सोशल-वॉर में निजी हमले, चालाकी से जनता के मुद्दे हवा में उड़ाए दोनों ने

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बीजेपी प्रत्याशी जारी वीडियो में कांग्रेसी उम्मीदवार को जमकर कोसते रहे, वोटरों के हक में बोले नहीं

लुधियाना 16 मई। इस लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी रवनीत सिंह बिट्‌टू और कांग्रेसी उम्मीदवार अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग सोशल-वॉर में खूब भिड़े हैं। शायद दोनों को यह बड़ी सियासी-गलतफहमी हो गई है कि उन दोनों के बीच ही चुनावी मुकाबला है। बाकी आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली-बादल के उम्मीदवार तक किसी मुकाबले में नहीं हैं। जबकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह अभी जनता को मतदान के अधिकार से तय करना है।

ओवर-कांफिडेंस नजर आ रहे दोनों उम्मीदवार बिट्‌टू और वड़िंगे मंच से लेकर सोशल मीडिया तक सिर्फ एक-दूसरे को ही कोस रहे हैं। अब भाजपा प्रत्याशी बिट्‌टू एक वीडियो में कांग्रेसी उम्मीदवार वड़िंग पर हमलावर दिखे। वह इस लहजे में बोले कि मानों अब भी कांग्रेस पार्टी की मॉनिट्रिंग का जिम्मा उनके पास है और शायद अपनी उपलब्धियां बताने के लिए कुछ नहीं है। हालांकि लुधियाना लोस सीट में समस्याओं की भरमार है और जनता की कृपा से वह यहां से लगातार दो बार जीते। जनता की बुनियादी समस्याएं अब भी कम नहीं है, लेकिन बिट्‌टू ने उन पर एक लफ्ज तक नहीं बोला। शायद वह जनहित के मुद्दों पर बोलकर फंस जाते, दस साल का हिसाब भी देना पड़ जाता।

 

खैर, बीजेपी प्रत्याशी ने वही पुराना राग छेड़ा कि कांग्रेस उम्मीदवार के होर्डिंग-बैनरों से लोकल लीडरों की तस्वीरें गायब हैं। उनके नॉमिनेशन में भी लोकल कांग्रेसी नेता नहीं दिखे। होर्डिंग में वड़िंग ने अपना टेलिफोन नंबर इसलिए लिखा कि वह बाद में गिद्दड़बाहा लौटकर फोन पर मिला करेंगे। प्रधान होने के नाते वड़िंग ने खुद ही टिकट ले लिया, इससे लोकल सीनियर नेताओं की बेइज्जती हो गई।

हालांकि उन्होंने यहां यह नहीं बताया कि वही कांग्रेसी वर्कर दस साल उनके (एमपी बिट्‌टू) के फोन नहीं सुनने की शिकायतें करते थे। कांग्रेसी उम्मीदवार के तो विरोध का पता नहीं, लेकिन देहात इलाकों में जाने पर यहां भी बीजेपी का विरोध क्यों हो रहा है। जबकि बिट्‌टू की जबानी, वह खुद किसानों के हक में सालभर मोर्चे पर डटे रहे थे। इसका मतलब किसान उनसे नहीं, उनकी पार्टी से खफा हैं। फिर किसान विरोधी पार्टी में जाने का फैसला बिट्टू ने क्यों किया था। इससे उनकी यह भी इमेज बनती है कि लुधियाना के वोटरों की समस्याएं हल करने की बजाए किसान विरोधी सूची में शामिल होकर उन्होंने नई मुसीबत मोल ले ली।

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