जनता को तो उम्मीद, पंजाब भाजपा को खुद पर नहीं भरोसा

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दुनिया की सबसे पार्टी, केंद्र में तीसरी बार सत्ता, पंजाब में सियासी-बैसाखी की आस

चंडीगढ़, 2 अक्टूबर। भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व पंजाब में किसान आंदोलन के बाद से ही अपनी जड़ें फिर जमाने की कवायद कर रहा है। इसीलिए सूबे में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी मिशन-2007 चला रही है। ऐसे में एक फिर भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ता और समर्थक तो आशंवित हैं। हालांकि पार्टी के प्रांतीय नेतृत्व में आत्मविश्वास की कमी साफ नजर आ रही है। ऐसा सियासी-माहिरों का मानना है। उनके नजरिए से जमीनी हकीकत जानने को सूबे में पार्टी का सियासी-इतिहास के पन्ने पलटने होंगे।

अकालियों के सहारे सत्ता-सुख भोगा :

जानकारों की मानें तो पंजाब की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी पंथक पार्टी शिअद से भाजपा ने कई दशक पहले हाथ मिलाया था। नतीजतन उसने सत्ता-सुख तो भोगा, लेकिन एक तरह से पार्टी इस सियासी-बैसाखी का सहारा लेकर ‘सैकेंड-पोजीशन’ में रही। वक्त-हालात बदले तो शिअद सुप्रीमो व तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के निधन के बाद पार्टी का राजनीतिक-संकट बढ़ता गया। पार्टी में फूट बढ़ने के साथ शिअद प्रधान बने सुखबीर बादल ने किसान आंदोलन के चलते बीजेपी से नाता तोड़ लिया।

यहीं से आया ट्विस्ट, बीजेपी में वैचारिक-मतभेद बढ़े :

अकालियों से गठबंधन टूटने के पंजाब भाजपा से लेकर पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के बीच मतभेद बढ़े। माहिरों की मानें तो एक पक्ष अकालियों से फिर हाथ मिलाने के पक्ष में था तो दूसरा उनको सियासी-झटका देने के फेवर में था। खैर, इसी ऊहापोह की स्थिति में भाजपा के प्रांतीय नेतृत्व की सहमति के बीच हाईकमान ने झटपट कांग्रेस, शिअद और बाकी पार्टियों की नेताओं की धड़ाधड़ ‘भर्ती’ कर डाली।

 

बिट्‌टू की शिकस्त बनी बड़ा झटका :

लुधियाना, श्री आनंदपुर साहिब, फिर से लुधियाना से कांग्रेसी सांसद रहे रवनीत सिंह बिट्‌टू को बतौर ‘पॉलिटिकल-स्टार’ पार्टी में शामिल किया। कांग्रेस सरकार में सीएम रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह और पार्टी के प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़ भी बीजेपी में आ चुके थे। इसके बावजूद बिट्‌टू को पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेसी उम्मीदवार अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग शिकस्त देकर सांसद बने थे। जो पहले गिद्दड़बाह के विधायक थे। लाज बचाने को बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने बिट्‌टू को राज्यसभा में भेजकर केंद्रीय राज्यमंत्री बनाया। हालांकि माहिरों की मानें तो इससे रोष में आए वर्करों ने दबी जबान में तब इलजाम लगाए थे कि आत्मविश्वास की कमी के चलते बीजेपी के जिला और प्रांतीय नेतृत्व इस हार के लिए जिम्मेदार रहा।

और भी साइड-इफैक्ट सामने आए :

मसलन, पंजाब की हॉट-सीट लुधियाना वैस्ट के पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की जबर्दस्त लहर थी। ऐसे में पंजाब की कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री भारत भूषण आशु आप उम्मीदवार गुरप्रीत गोगी से हारे। जबकि बीजेपी के उम्मीदवार एडवोकेट बिक्रम सिद्धू ने अपनी छवि के बलबूत तीसरे नंबर पर रहने के बावजूद पार्टी का वोट-बैंक बढ़ाया। जिसका श्रेय पार्टी के जिला, प्रांतीय नेतृत्व ने लेते हुए कई मौकों पर अपनी पीठ थपथपाई। खैर, विधायक गोगी के आकस्मिक निधन के बाद लुधियाना वैस्ट में उप चुनाव हुए। सत्ताधारी पार्टी आप ने बड़ा रिस्क लेते राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा को मैदान में उतारा। कांग्रेस नेतृत्व ने भरोसा जताते पूर्व मंत्री आशु पर दांव खेला। जबकि बीजेपी नेतृत्व ने एडवोकेट सिद्धू को नजरंदाज कर कभी कोई चुनाव नहीं लड़े जीवन गुप्ता को प्रत्याशी बनाया। नतीजतन, अरोड़ा जीते, आशु दूसरे नंबर पर रहे और जीवन तीसरे पायदान तक लुढ़क गए।

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