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गुस्ताख़ी माफ़ 3.11.2024
सोचा था लेंगे बचा, हमें केजरीवाल।
पहले यदि होता पता, ले आते तिरपाल।
ले आते तिरपाल, पास में ही थी दिल्ली।
बौछारें वो पड़ीं, बन गए भीगी बिल्ली।
कह साहिल कविराय, हो गया हम से लोचा।
चंडीगढ़ जो हुआ, कभी भी ना था सोचा।
प्रस्तुति — डॉ. राजेन्द्र साहिल