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गुस्ताख़ी माफ़

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गुस्ताख़ी माफ़ 30.5.2024

 

जो भी आकर द्वार पर, वोट रहा है मांग।

घर की छत पर है दिया, झंडा उसका टांग।

झंडा उसका टांग, भेद ना मन का खोला।

वोटें देंगे तुम्हें, सभी से यह ही बोला।

कह साहिल कविराय, सभी के हम हैं चाकर।

कर देते ख़ुश उसे, मांगता जो भी आकर।

 

प्रस्तुति — डॉ. राजेन्द्र साहिल

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