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गुस्ताख़ी माफ़

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गुस्ताख़ी माफ़ 18.5.2024

 

गर्मी ज्यों-ज्यों बढ़ रही, चढ़ा जा रहा ताप।

उबल रहे लीडर सभी, लगी निकलने भाप।

लगी निकलने भाप, मारते सब फुफकारे।

मुख से झड़ती आग, बने भाषण अंगारे।

कह साहिल कविराय, सूखती जाती नर्मी।

अगले पंद्रह रोज़, बढ़ेगी यूं ही गर्मी।

 

प्रस्तुति —- डॉ. राजेन्द्र साहिल

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