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गुस्ताख़ी माफ़ 4.5.2025
अच्छी-खासी चल रही, अपनी अगर दुकान।
काके को अब दें बिठा, गल्ले पर श्रीमान।
गल्ले पर श्रीमान, सियासत धंधा चोखा।
कमा करोड़ों रहे, लगाते थे जो खोखा।
कह साहिल कविराय, नहीं यह बात ज़रा-सी।
अपनी और दुकान, चलेगी अच्छी-खासी।
प्रस्तुति — डॉ. राजेन्द्र साहिल