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मौकापरस्ती की भेंट चढ़े प्रमुख दलों के संगठन, लोस चुनाव से हफ्ते पहले भी संगठनात्मक विस्तार

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रेडीमेड-ऑर्गेनाइजेशन तैयार करने की दौड़ में बीजेपी, आप, कांग्रेस, शिअद कोई नहीं है पीछे

नदीम अंसारी

लुधियाना 23 मई। बदलते दौर में राजनीतिक दलों की संगठनात्मक-कार्यशैली भी पूरी तरह बदल चुकी है। कभी राजनेता यह दावे पूरे भरोसे से करते थे कि उनका पार्टी संगठन बहुत मजबूत है, लिहाजा चुनाव में उसके बलबूते ही उनकी जीत पक्की है। मौजूदा वक्त हालात इसके एकदम उलट हैं। पंजाब की ही मिसाल लें तो यहां लोकसभा चुनाव के लिए हफ्तेभर में मतदान होने वाला है। जबकि अभी तक प्रमुख राजनीतिक दल यहां अपने संगठनात्मक ढांचे को कील-कांटे ठोंककर मजबूत करने में जुटे हैं। यानि सीधेतौर पर कहें तो अब संगठन के बल चुनाव नहीं जीते जा रहे, बल्कि चुनाव जीतने की खुशफहमी पालकर रेडिमेड-ऑर्गेनाइजेश की डम्मी तैयार की जा रही हैं। दिलचस्प पहलू है कि संगठन मजबूत करने के नाम पर टकसाली वर्करों को ओहदे देने की बजाए आज-कल में दल बदलकर आए मौकापरस्तों को भी एडजस्ट किया जा रहा है। दशकों तक किसी दूसरी पार्टी में रहे ऐसे लोग किसी दूसरी पार्टी के संगठन में कैसे झटपट जान फूंक देंगे, यह समझ से परे है। ऐसे हालात में हर प्रमुख पार्टी के वो टकसाली वर्कर खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं, जिनका हक दूसरी पार्टी से आए नेताओं ने मार लिया।

आप ने बना डाले बंपर 2500 ओहदेदार :   

लोकसभा चुनाव सिर पर है और आम आदमी पार्टी को अचानक संगठन मजबूत करने का ख्याल आ गया। जानकारी के मुताबिक तकरीबन 2500 से ज्यादा लोगों को संगठन में जगह दे दी गई। यहां काबिलेजिक्र है कि कुछ दिन पहले ही पार्टी जॉइन करने वाले नेताओं को भी संगठन में बड़ी जिम्मेदारियां दे दी गईं। मसलन, गुरदासपुर में भाजपा छोड़ आप में आए स्वर्ण सलारिया को सीधे पार्टी का वाइस प्रेसिडेंट बना दिया। वहीं डॉ. केडी सिंह और राजिंदर रीहल को स्टेट जॉइंट सेक्रेटरी बनाया। जबकि फतेहगढ़ साहिब लोस हल्के से कैप्टन हरजीत सिंह वाइस प्रेसिडेंट बनाए गए।

भाजपा ने सौंपी थी जाखड़ को प्रधानगी :

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजनीतिक संगठन के तौर पर भाजपा कभी चाल, चरित्र, चेहरा जैसा नारा बुलंद करती थी। बीजेपी में कभी लेफ्ट पार्टियों की तरह ही लंबे समय तक सक्रिय रहने के बाद ही क्रमवार शहर, जिले, राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर पद मिलते थे। अब तो भाजपा में मौकापरस्तों को शामिल करने की होड़ के बीच सारे संगठनात्मक-सिद्धांत भी ध्वस्त हो चुके हैं। कई दशक कांग्रेस में रहे सुनील जाखड़ जब बीजेपी में शामिल हुए तो उनको सीधे प्रदेश प्रधान बना पार्टी ने अपने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को हैरान कर दिया था।

कांग्रेसी और अकाली भी पीछे नहीं :

इसी लोकसभा चुनाव के दौरान पंजाब में भी जोरदार तरीके से दल-बदलू सक्रिय रहे। जो सुबह किसी पार्टी में थे, शाम से पहले उसे छोड़ दूसरी में चले गए। ऐसे कई नेताओं ने कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल-बादल का भी दामन थामा। उनमें से कई दल-बदलू नेताओं को टिकट मिला तो उनकी बल्ले-बल्ले हो गई। जबकि बाकी से कई नई पार्टी के संगठन में एडजस्ट कर लिए गए।

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