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इन आंकड़ों पै कौन न मर जाये अय खुदा

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इस देश में अब सब कुछ चौंकाने वाला हो रहा है । चुनाव पूर्व सर्वे हों या मतदान के बाद के सर्वे। सब चौंकाने वाले होते है । सर्वे गलत हों या सही ,लेकिन कोई इसके लिए जिम्मेदार नहीं होता । सर्वे का काम लोगों को भरमाना और अपने प्रायोजक का नफा-नुक्सान देखना भर होता है ।सर्वेक्षणों के झूठ-सच पर निगाह रखने के लिए देश में कोई नियामक आयोग नहीं है। अब एक नया सर्वे आया है पीरियोडिक लेबर फ़ोर्स के इस सर्वे के मुताबिक हमारा प्यारा मध्यप्रदेश अकेला ऐसा प्रदेश हैं जहां बेरोजगारी न के बराबर है यानि मात्र 1 फीसदी।

नेशनल सेंपल सर्वे ऑफिस द्वारा जुलाई 2023 से जून 2024 के लिए जारी पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) की सालाना रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (एलएफपीआर) 2023-24 के दौरान सात साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई ह। ये सर्वे किसी गोदी मीडिया का नहीं है बल्कि सरकार का है इसलिए इसके ऊपर ऊँगली उठाने में भी संकोच होता है ,लेकिन इस सर्वे के नतीजे हकीकत और अफ़साने जैसे हैं ,इसलिए उँगलियाँ अपने आप उठाई जाती हैं।

दरअसल इस सर्वे की रिपोर्ट जारी करने के समय को लेकर ही पहला सवाल उठाया जा सकता है कि ये सर्वे हरियाणा विधानसभा के चुनावों के ठीक ११ दिन पहले आया है। सर्वे का दावा है की देश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी हरियाणा में घटी है,अर्थात सबसे ज्यादा रोजगार हरियाणा ने दिए हैं। रिपोर्ट कहती हैकि 2023 -2024 में हरियाणा में बेरोजगारी दर ३ दशमलव 4 फीसदी है जो बीते साल 6 प्रतिशत से ज्यादा थी। जाहिर है की ये रिपोर्ट साबित करना चाहती है कि हरियाणा की डबल इंजिन की सरकार ने बीते साल में हरियाणा में सबसे जयादा रोजगार मुहैया कराये हैं।

सर्वे रिपोर्ट पर आप यकीन करें या न करें ये अलग बात है लेकिन सरकार तो अपना काम कर रही है ,सर्वे के मुताबिक एक साल में इसमें 2.7 फीसदी की गिरावट आई है। हरियाणा से ज्यादा गोवा 9.7 फीसदी के बाद देश में सबसे ज्यादा थी। ये गिरावट देश के किसी भी अन्य राज्य के मुकाबले सबसे ज्यादा है।साल 2023-24 में गोवा में बेरोजगारी दर देश में सबसे ज्यादा 8.5 फीसदी है। केरल में ये 7.२ फीसदी है। वहीं, देश की औसत बेरोजगारी दर 3.2 फीसदी है।

सर्वे तो कहता है कि मध्य प्रदेश देश का एकमात्र राज्य है, जहां बेरोजगारी दर 1 फीसदी से भी कम यानि (0.9%) फीसदी है।यानि मध्यप्रदेश युवाओं कि लिए रोजगार कि मामले में किसी स्वर्ग से कम नहीं है इस सूची में दूसरे नंबर पर गुजरात (1.1)फीसदी और तीसरे पर झारखंड (1.3) फीसदी है।यानि मध्य प्रदेश और गुजरात की डबल इंजिन की सरकारों ने तो रोजगार देने में कमाल ही कर दिया है। मुझे याद आता है कि मध्यप्रदेश विधानसभा में भी मप्र की सरकार ने भी कुछ-कुछ इसी तरह के आंकड़े दिए थे ।मध्य प्रदेश सरकार का दावा है कि 2023 की तुलना में मई 2024 तक 9,90,935 बेरोजगारों की संख्या कम हो गई है. सरकार दावा करती है कि पिछले साल 35 लाख 73 हजार बेरोजगार थे, जबकि इस साल मई 2024 की स्थिति में यह संख्या घटकर 25 लाख 82 हजार हो गई है. जबकि ताजा आर्थिक सर्वे में ये आंकड़ा 33 लाख से कुछ ज्यादा हैं।

अब सवाल ये है कि जनता इन आंकड़ें पर यकीन करे या जमीनी हकीकत देखे ? आंकड़े कुछ और कहते हैं और जमीनी हकीकत कुछ और है। एलएफपीआर को जनसंख्या में काम करने वाले या काम की तलाश करने वाले या काम के लिए उपलब्ध लोगों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया जाता है. पीएलएफएस की सालाना रिपोर्ट, जो ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों को कवर करती है, ने दिखाया कि महिलाओं के लिए एलएफपीआर 2023-24 में बढ़कर 41.7 फीसदी हो गया, जो पिछले साल 37 फीसदी था.

सरकारी आंकड़े धोखा देते हैं या हकीकत बयान करते हैं ये कहना कठिन काम है क्योंकि इन्हें झुठलाने के लिए जिन आंकड़ों की जरूरत है वे भी सरकार के ही पास होते हैं ,लेकिन जनता को पता है की आंकड़े कितने हवा -हवाई हैं और कितने असली ? देश के 25 राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों का लेबर पार्टिसिपेशन रेट राष्ट्रीय औसत से अधिक है।आप हैरान होंगे ये जानकर किसिक्किम का लेबर पार्टिसिपेशन रेट यानी राज्य की कुल आबादी में काम करने या काम खोजने वाले लोग सबसे अधिक 60.5 फीसदी हैं। यहां महिलाओं की हिस्सेदारी 55 फीसदी और पुरुषों की 65 फीसदी है। हालाँकि इस लिस्ट में डबल इंजिन की सरकार वाला बिहार 29 प्रतिशत के साथ सबसे नीचे है। इसके बाद यूपी (33.8) प्रतिशत और झारखंड (34.6) प्रतिशत का नंबर आता है। कुल आबादी में काम करने वालों की संख्या यानी वर्कर पॉपुलेशन रेश्यो देखें तो सिक्किम (58.2) प्रतिशत सबसे ऊपर है। छत्तीसगढ़ (51.3) प्रतिशत दूसरे पर है।लेबर पार्टिसिपेशन रेट के मामले में 11 प्रमुख राज्यों की सूची में छत्तीसगढ़ (52.8)प्रतिशत कि मान से शीर्ष पर है।

इस रिपोर्ट कि आंकड़े क्या हरियाणा में हांफती भाजपा को कुछ लाभ पहुंचा पाएंगे ? मुझे लगता है कि शायद नहीं ,क्योंकि इन आंकड़ों को प्रचारित कर लाभ लेने का मौक़ा हाथ से निकल चुका है । हरियाणा में मुद्दा बेरोजगारी से जायदा भाजपा का कुशासन है। मजे की बात ये है कि इस सर्वे में जम्मू-कश्मीर कि आंकड़े नजर नहीं आते जबकि वहां एक लम्बे समय से राष्ट्रपति शासन है और वहां बेरोजगारी कम करने की जिम्मेदारी सीधे-सीधे केंद्र सरकार की है। मुझे याद आता है कि केंद्र सरका ने पिछले साल माना था कि जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है।

गृह मंत्रालय ने राज्यसभा को बताया था कि जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी दर 18.3 प्रतिशत है. यह जेके प्रशासन द्वारा शुरू किए गए कई प्रयासों और पहलों के बावजूद है। गृह राज्य मंत्री ने राज्य सभा में बताया था कि “राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा आयोजित आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के परिणामों से, अप्रैल-जून 2021 की अवधि के लिए विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर में शिक्षित युवाओं के लिए बेरोजगारी दर का अनुमान उपलब्ध नहीं था। जुलाई 2020-जून 2021 के दौरान एनएसएसओ द्वारा आयोजित पीएलएफएस, जम्मू और कश्मीर के लिए 15-29 वर्ष आयु वर्ग के व्यक्तियों के बीच सामान्य स्थिति के अनुसार बेरोजगारी दर का अनुमान 18.3 प्रतिशत था। “

बहरहाल देश की जनता कि सामने आंकड़ों की इस भूल-भुलैया में भटकने कि अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है ,लेकिन मुझे लगता है की – ये पब्लिक है, ये सब जानती है। इसे झूठे-सच्चे आंकड़ों की बाजीगरी से भरमाया नहीं जा सकत। यदि ऐसा होता तो जून २४ में आया जनादेश कुछ और हो होता। मुझे यकीन हैं की ये आंकड़े सरकार और सरकारी पार्टी कि किसी काम आने वाले नहीं हैं।

@ राकेश अचल

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