खबर जरा हटकर : भारत की राजधानी दिल्ली सबसे ज़्यादा गालियां देने में भी ‘राजधानी’ और पंजाब नंबर दो पर

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चंडीगढ़, 25 जुलाई। गाली-गलौज बुरी बात है, लेकिन दिल्ली और पंजाब में यह आम बात ही नहीं, लगभग स्वीकार्य भी है। पुरुष गाली-गलौज करते हैं और महिलाएं भी इस मामले में पीछे नहीं हैं।

जानकारी के मुताबिक, यह गाली बंद घर अभियान की एक नई रिपोर्ट का निष्कर्ष है। जो सामाजिक कार्यकर्ता और प्रोफ़ेसर सुनील जगलान द्वारा संचालित एक दशक से चल रहा अभियान है। इसमें शहरी और ग्रामीण भारत के 70,000 से ज़्यादा प्रतिभागियों का सर्वेक्षण किया गया। जिनमें ऑटोवालों से लेकर आंटियों, छात्रों से लेकर सफ़ाई कर्मचारियों तक शामिल थे। इसका उद्देश्य यह समझना था कि भारत में गालियों का इस्तेमाल कितनी सहजता से और खासकर परिवारों में होता है।

भारत में गालियों का मतलब हिंसक संवाद, हास्य-व्यंग्य का हिस्सा और वाक्य बनाने में सहायक क्रिया भी हो सकता है। सर्वे के मुताबिक इसमें दिल्ली पहले स्थान पर है, उसके बाद उत्तर भारत के अन्य राज्य हैं। जहां पुरुषों की बोलबाणी सबसे तेज़ आवाज़ में हो सकती है। वहीं 30% महिलाओं ने भी माना कि वे नियमित रूप से गाली-गलौज करती हैं या बर्दाश्त करती हैं। नई पीढ़ी ने तो अपनी रंगीन शब्दावली के लिए ओटीटी, वीडियो गेम और सोशल मीडिया को भी ज़िम्मेदार ठहराया। वैसे गालियां काफ़ी समय से रोज़मर्रा के कामकाज का हिस्सा और वाक्य संरचना का हिस्सा रही हैं। इसे सहायक क्रिया के रूप में इस्तेमाल करना भी कहा जाता है।

गालियों-अपशब्दों में सबसे आगे कौन :

दिल्लीवाले अपनी गालियों में पूरी रफ़्तार से जुट जाते हैं। सड़क पर ट्रैफिक लाइटों से लेकर राशन लाइन में उनका गुस्सा और लय दोनों बराबर रहते हैं।

इस मामले में पंजाब दूसरे नंबर पर है। जहां बोल्ड दिलों और मक्खनी पराठों वाले इस सूबे में गालियां अक्सर गर्मागर्म परोसी जाती हैं, हालांकि वो कभी-कभी प्यार से भी होती है। इसमें कोई शक नहीं कि ये गालियां ही होती हैं।

तीसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश में राजनीतिक रैलियों से लेकर खेल के मैदानों में होने वाले झगड़ों तक ‘टशन’ होता है। जो अकसर ऐसी भाषा से भरा होता है, जिसमें संसदीय भाषा कम होती है।

चौथे नंबर पर बिहार में सड़क पर चलने वाली चतुराई और तीखे यथार्थवाद का मेल होता है। बिहारी शब्दों या भावनाओं को व्यर्थ नहीं जाने देते और बड़े सटीक लहजे में गालियों का इस्तेमाल करते हैं।

पांचवे नंबर पर राजस्थान में रेगिस्तानी तूफ़ान सिर्फ़ मौसम तक सीमित नहीं होते हैं। स्थानीय बोलचाल में, एक हल्का सा धक्का भी एक-दो तीखे मुहावरे गढ़ सकता है।

छठे नंबर पर हरियाणा में ग्रामीण जड़ों का सीधा संवाद से मिलन होता है यानि सीधा बोल, बिंदास बोल। यहां अकसर विराम चिह्नों के लिए गाली का इस्तेमाल होता है।

सातवें नंबर पर महाराष्ट्र, खासकर मुंबई से लेकर नागपुर की गलियों तक, बोलचाल से भरपूर मराठी नुक्कड़-बातचीत इस सूची में अपना अलग ही स्वाद जोड़ती है।

वहीं, 8वें नंबर पर गुजरात में आम तौर पर लोग विनम्र हैं, लेकिन जब फ़िल्टर टूटता है तो टूट जाता है। खासकर सोशल मीडिया पर युवा वर्ग के बीच तो गाली-संवाद आम है।

इसी तरह, 9वें नंबर पर मध्य प्रदेश में लोगों का लोगों का बातचीत का लहजा हल्का है, लेकिन धोखा मत खाइए। मध्य प्रदेश की भाषा में ज़मीनी बोलियों के साथ बेबाक भावनाओं का मिश्रण होने के साथ गालियां आम बात हैं।

दूसरी तरफ शांत पहाड़ियों वाले सूबे उत्तराखंड में बढ़ते तनाव और पलायन के चलते ज़ुबानी मसाला शामिल होता है। लिहाजा वे गालियों का इस्तेमाल भी करते हैं। हालांकि जम्मू-कश्मीर वाले देश में सबसे धीमी आवाज़ में बोलने वाले होते हैं। इसके बावजूद उनकी बातचीत में भी थोड़ा-बहुत गाली का इस्तेमाल होता है। दूसरी तरफ, पूर्वोत्तर के राज्यों में अपेक्षाकृत गालियों का कम इस्तेमाल होता है। हालांकि बढ़ता डिजिटल प्रभाव युवाओं के बीच बातचीत के तौर-तरीके बदल रहा है।

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