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पंजाब में केजरीवाल के दूसरे चुनावी दौरे से नए सियासी-संकेत, वाया जालंधर लुधियाना पहुंच यहीं डट गए

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मोदी के लुधियाना को ‘बाइपास’ करने और आप सुप्रीमो के यहीं पर फोकस बढ़ाने से मची हलचल

नदीम अंसारी

लुधियाना 28 मई। राष्ट्रीय दल का दर्जा हासिल होने के बाद उसे कायम रखने के लिए भी आम आदमी पार्टी गंभीर लग रही है। आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल सोची-समझी रणनीति के तहत इस लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में जैसे पूरी ताकत झोंक रहे है, उससे यही संकेत मिल रहे हैं। जेल से जमानत पर बाहर आते ही पहले दिल्ली रहने के बाद वह फिर पंजाब आ गए थे।

यहां गौरतलब है कि आप सुप्रीमो केजरीवाल तब सीधे गुरु-नगरी पहुंचे थे। दरअसल अमृतसर लोकसभा सीट पर भाजपा ने पूर्व आईएफएस अफसर तरणजीत सिंह संधू को प्रत्याशी बनाया है। जबकि कांग्रेस से पिछली बार जीते सांसद गुरजीत सिंह औजला तो शिरोमणि अकाली दल-बादल से अनिल जोशी चुनाव मैदान में हैं। सियासी-जानकारों की नजर में आप सुप्रीमो की रणनीति कुछ अलग लगती है। इंडिया-गठबंधन में होने की वजह से कांग्रेस के प्रति उनका लहजा नरम है। जबकि एनडीए-पीएम नरेंद्र मोदी के चलते भाजपा प्रत्याशी संधू उनके सीधे निशाने पर हैं। इसलिए पहले फेज में वह दो दिन सिर्फ गुरु-नगरी में डटे थे। फिर दिल्ली जाकर अब दूसरे चरण में लौटे तो सीधे जालंधर पर फोकस करते नजर आए।

कमोबेश अमृतसर की तरह ही जालंधर और लुधियाना सीटों पर आप की रणनीति साफ है। जालंधर में आप के सांसद सुशील रिंकू को भाजपा ने पाला-बदल करा अपना प्रत्याशी बनाया। जबकि डैमेज-कंट्रोल के लिए आप ने सीनियर अकाली नेता पवन कुमार टीनू को अपने पाले में लाकर उम्मीदवार बनाया। जबकि शिअद ने सेंधमारी कर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मोहिंदर केपी को अपना प्रत्याशी बनाया। कांग्रेस से पूर्व सीएम चरणजीत चन्नी उम्मीदवार हैं, जिनका बाहरी होने के नाते सबसे ज्यादा कांग्रेसी ही विरोध कर रहे हैं। ऐसे में आप को उम्मीद बंधी है कि इस सीट पर मेहनत करने से जीत भले ही हासिल न हो, लेकिन वोट-प्रतिशत में बढ़ोत्तरी जरुर हो सकती है।

यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि इस लोस चुनाव में बीजेपी-अकाली गठबंधन नहीं है। लिहाजा शिअद को और कमजोर मान केजरीवाल ने भाजपा को ही निशाने पर लिया है। इसी फार्मूले के तहत जालंधर चंद घंटे लगाने के बाद केजरीवाल और सीएम भगवंत मान की जोड़ी सीधे लुधियाना पहुंची। यहां दो दिन लगा दोनों ने रोड-शो के अलावा कारोबारियों से मीटिंग और वर्करों से मिलनी जैसी गतिविधियों को अंजाम दिया। गौर करें कि भले ही यहां आप उम्मीदवार अशोक पराशर पप्पी लोकल हैं, लेकिन वह जीते विधायक भर हैं। जबकि बीजेपी प्रत्याशी रवनीत सिंह बिट्‌टू लगातार तीन बार सांसद हैं, लेकिन स्थानीय निवासी नहीं हैं। इसी तरह, बिट्‌टू के पलटी मारने से हड़बड़ाई कांग्रेस ने गिद्दड़बाहा से विधायक व पार्टी प्रदेश प्रधान अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग को यहां से उम्मीदवार बनाया। उन पर बाहरी होने का टैग लगा है, कांग्रेस में भी इसी

मुद्दे पर अंदरखाने असंतोष बना है। ऐसे में कुल मिलाकर केजरीवाल का टारगेट बीजेपी है। ताकि तीन बार जीते सांसद बिट्‌टू व केंद्र में सत्ताधारी भाजपा की धार कुंद की जा सके। केजरीवाल की मान के साथ इस सीट पर की गई मेहनत भले ही जीत न दिलाए, लेकिन रनर भी रहे तो वोट-प्रतिशत में इजाफा होना लाजिमी है।

इतनी सियासी-कसरत का राज : पंजाब में सत्तारुढ़ आप के पास भले ही बहुमत है, लेकिन उसे लोकसभा में फिर से उपस्थिति दर्ज करानी है। फिलहाल उसके राज्य

सभा में पंजाब से सदस्य तो हैं, लेकिन मान के सीएम बनने के बाद उनकी संगरुर सीट उप चुनाव में आप गंवा चुकी है। इस लोस चुनाव में अगर आप का प्रदर्शन खराब रहा तो उसका परंपरागत वोट-बैंक बिखरने का खतरा बढ़ सकता है।

 

 

 

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