भारत में भ्रष्टाचार आतंकवाद हत्या इत्यादि अपराधों में प्रॉसीक्यूशन द्वारा सजा दिलाने का प्रतिशत बहुत कम होना सोचनीय?
भारत में प्रॉसीक्यूशन पक्ष की सफलताओं को प्रभावित करने में राजनीतिक हस्तक्षेप,भ्रष्टाचार गवाहों का डर इत्यादि कारकों का संज्ञान लेना ज़रूरी-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर दुनियाँ में भारतीय संवैधानिक संस्थाएं जैसे निर्वाचन आयोग न्यायपालिका इत्यादि की प्रतिष्ठा बनी हुई है,परंतु कुछ की परिस्थितिजन्य स्थितियों के कारण कम है, स्वाभाविक रूप से हम जानते हैं कि अंदरखाने भ्रष्टाचार राजनीतिक हस्तक्षेप डिपार्टमेंट की आपसी जबरदस्त मिलीभगत न्यायपालिका में प्रॉसीक्यूशन को प्रभावित कर असफलता के घेरे में लाकर खड़ा कर देती है। मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र, मानता हूं कि यदि भ्रष्टाचार के केस में पटवारी या बाबू से लेकर अधिकारी तक फसता है तो मैं प्रैक्टिकल देखा हूं कि भ्रष्टाचार का आरोपी कुछ समय निलंबित रहने के बाद ड्यूटी पर वापस ज्वाइन हो जाता है फिर लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद बरी भी हो जाता है,इसमें पूरी चैनल की मिली भगत हो सकती है जो हमें प्रत्यक्ष रूप से पता नहीं चलता, परंतु इसका एक अपवाद यह भी है कि किसी हाई प्रोफाइल केस में कोई हाथ नहीं डालता, बल्कि कुछ कानूनी लीकेज का फायदा बचावपक्ष उठकर फिर प्रॉसीक्यूशन को पटकनीं दे देता है आज हम इस विषय पर चर्चा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि 21 जुलाई 2025 को माननीय बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट के ट्रायलकोर्ट से दोषी ठहराए गए 12 लोगों को आरोपों से बरी कर दिया,इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,भारत में प्रॉसीक्यूशन पक्ष की सफलताओं को प्रभावित करने में राजनीतिक हस्तक्षेप भ्रष्टाचार गवाह को डराना इत्यादि कारकों का संज्ञान लेना जरूरी है।
साथियों बात अगर हम सोमवार दिनांक 21 जुलाई 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले की करें तो,2006 में हुए मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट केस में बॉम्बे हाई कोर्ट ने आज ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सभी दोषियों को बरी कर दिया है।हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपने आरोप साबित करने में पूरी तरह नाकाम रहा और यह विश्वास करना मुश्किल है कि आरोपियों ने ही यह अपराध किया हो, इस मामले में हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की ओर से दोषी ठहराए गए 12 में से 11 आरोपियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया है, जबकि एक आरोपी की अपील लंबित रहने के दौरान मृत्यु हो गई थी।2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस:-11 जुलाई 2006:7 बम धमाके मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए, 187 लोगों की मौत, 824 घायल,जुलाई-अगस्त 2006:13 लोगों की गिरफ्तारी,30 नवंबर 2006: 30 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल, जिनमें 13 पाकिस्तानी नागरिक भी शामिल 2007: ट्रायल शुरू,सितंबर 2015:12 लोगों को दोषी ठहराया गया, 5 को फांसी, 7 को उम्रकैद,2024: हाई कोर्ट ने केस की सुनवाई शुरू की,21 जुलाई 2025: सभी 11 आरोपी बरी, हाईकोर्ट ने कहा कि यह मानना मुश्किल है कि आरोपियों ने अपराध किया है, इसलिए उन्हें बरी किया जाता है।अगर वे किसी दूसरे मामले में वांटेड नहीं हैं, तो उन्हें तुरंत जेल से रिहा किया जाए।कोर्ट के आदेश के बाद सोमवार शाम 12 में से दो आरोपियों को नागपुर सेंट्रल जेल से रिहा कर दिया गया।11जुलाई 2006 को मुंबई के वेस्टर्न सब अर्बन ट्रेनों के सात कोचों में सिलसिलेवार धमाके हुए थे। इसमें 189 पैसेंजर की मौत हो गई थी और 824 लोग घायल हो गए थे। सभी धमाके फर्स्ट क्लास कोचों में हुए थे। घटना के 19 साल बाद यह फैसला आया है।हाईकोर्ट के फैसले के बाद आगे क्या 3 पॉइंट:-(1) सुप्रीम कोर्ट के वकील आशीष पांडे बताते हैं, ‘बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।'(2)भारत के संविधान के अनुच्छेद 136 में प्रावधान है कि सुप्रीम कोर्ट में किसी भी हाईकोर्ट या अन्य कोर्ट के फैसले के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका दायर की जा सकती है।(3)याचिका मंजूर हुई तो फिर इस पर सुनवाई होगी। बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले के आधारों की जांच होगी और फिर फैसला सुनाया जाएगा। इसमें लंबा वक्त लग सकता है।
साथियों बात अगर हम स्पेशल मकोका कोर्ट के फैसले की करें तो, 2006 में 13 आरोपी पकड़े गए थे, 5 को फांसी की सजा, एक बरी हुआ।करीब 9 साल तक केस चलने के बाद स्पेशल मकोका कोर्ट ने 11 सितंबर 2015 को फैसला सुनाया था। कोर्ट ने 13 आरोपियों में से 5 दोषियों को फांसी की सजा, 7 को उम्रकैद की सजा और एक आरोपी को बरी कर दिया था।2016 में आरोपियों ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया, 9 साल केस चला2019 में बॉम्बेहाईकोर्ट ने अपीलों पर सुनवाई शुरू की। अदालत ने कहा कि इस मामले में विस्तृत दलीलें और रिकॉर्ड की समीक्षा की जाएगी। 2023 से 2024 तक हाईकोर्ट में मामला लंबित रहा, सुनवाई टुकड़ों में होती रही। 2025 में हाईकोर्ट ने सभी 12 आरोपियों को बरी किया।
साथियों बात अगर हम प्रॉसीक्यूशन की चुनौतियों की करें तो,भारतीय अदालतों में, अभियोजन पक्ष (प्रॉसिक्यूशन) द्वारा अपराधियों को सजा दिलाना एक जटिल प्रक्रिया है और कई कारक हैं जो इस प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। सजा दर कम होने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें साक्ष्य की कमी, गवाहों की अनिच्छा, या कानूनी प्रक्रियाओं में देरी शामिल हैं। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सजा की दर एक जटिल मुद्दा है और इसमें सुधार के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। यहां कुछ कारण दिए गए हैं कि क्यों भारतीय अदालतों में अपराधियों को सजा दिलाना मुश्किल हो सकता है:(1) साक्ष्य की कमी:-अपराधों को साबित करने के लिए पर्याप्त और ठोस सबूतों की आवश्यकता होती है। यदि अभियोजन पक्ष पर्याप्त सबूत पेश करने में विफल रहता है, तो अपराधी को बरी किया जा सकता है। (2) गवाहों की अनिच्छा: कई बार गवाह डर के मारे या किसी अन्य कारण से गवाही देने से हिचकिचाते हैं। इससे अभियोजन पक्ष के लिए मामले को साबित करना मुश्किल हो जाता है। (3) कानूनी प्रक्रियाओं में देरी:भारतीय अदालतों में मुकदमेबाजी में अक्सर देरी होती है। यह देरी साक्ष्य को कमजोर कर सकती है और गवाहों को प्रभावित कर सकती है, जिससे अभियोजन पक्ष के लिए मामले को जीतना मुश्किल हो जाता है। (4) अपर्याप्त कानूनी सहायता:कुछ मामलों में, आरोपी के पास एक मजबूत कानूनी टीम नहीं होती है, जो उसे प्रभावी ढंग से बचाव कर सके। इससे अभियोजन पक्ष के लिए मामले को जीतना आसान हो जाता है।इन कारकों के अलावा,भ्रष्टाचार,राजनीतिक हस्तक्षेप,और अदालतों में अपर्याप्त संसाधनों जैसे अन्य कारक भी हैं जो अभियोजन पक्ष की सफलता को प्रभावित कर सकते हैं।भारतीय अदालतों में सजा दर में सुधार के लिए सरकार और अन्य हितधारकों द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं। इन प्रयासों में शामिल हैं (1) कानूनों और प्रक्रियाओं में सुधार:सरकार कानूनों और प्रक्रियाओं में सुधार कर रही है ताकि अभियोजन पक्ष को अधिक प्रभावी ढंग से काम करने में मदद मिल सके।(2)अदालतों में संसाधनों में वृद्धि:-अदालतों में अधिक संसाधनों को आवंटित करके,सरकार यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है कि मुकदमेबाजी में देरी कम हो।(3) जागरूकता बढ़ाना:सरकार और अन्य हितधारक जनता को कानूनी प्रक्रियाओं और अपने अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए काम कर रहे हैं।इन प्रयासों के बावजूद, भारतीय अदालतों में सजा दर में सुधार करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि अपराधियों को सजा मिले, निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट केस 2006-ट्रायल कोर्ट से दोषी ठहराए सभी 12 लोगों को हाईकोर्ट ने आरोपों से बरी किया-फिर दोषी कौन?प्रॉसीक्यूशन पर उठे सवाल?भारत में भ्रष्टाचार आतंकवाद हत्या इत्यादि अपराधों में प्रॉसीक्यूशन द्वारा सजा दिलाने का प्रतिशत बहुत कम होना सोचनीय?भारत में प्रॉसीक्यूशन पक्ष की सफलताओं को प्रभावित करने में राजनीतिक हस्तक्षेप,भ्रष्टाचार,गवाहों का डर इत्यादि कारकों का संज्ञान लेना ज़रूरी है।
*-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यम सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र *