बनारसी-मोदी शहंशाह हैं या फकीर ?
मोदी का मतलब विकास, उनका नाम ही काफी है, यह भाजपा और एनडीए का जोरदार जुमला रहा है। फिर मंगलवार को आखिर क्या हो गया कि वाराणसी की पावन-धरती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा के उम्मीदवार के तौर पर नामाकंन किया तो उनको मेगा-शो करना पड़ा। उनके नामाकंन के दौरान बीस केंद्रीय मंत्री, 11 राज्यों के सीएम, पूर्व सीएम और दो सैकड़ा से ज्यादा वीवीआईपी वहां जुटाए गए। पीएम मोदी का ड्रैस-कोड भी गौर करने लायक रहा।
उनके साथ यूपी के सीएम योगी भी अलग रंग में नजर आए। नामाकंन से पहले पीएम मोदी गंगा मैया की शरण में पहुंचे, फिर बाबा काल-भैरव के मंदिर पूजा-अर्चना कर गए। इस दौरान भी गौर करने लायक पहलू यह रहा कि पूजा-पाठ कराने वाले चार में तीन पुजारी गैर-ब्राह्मण रहे, क्या इस मामले में भी सोची-समझी रणनीति के तहत जातीय समीकरण लगाए गए। करीब आधा दिन धर्म-नगरी वाराणसी पूरी तरह वीवीआईपी के कब्जे में और आम आदमी घरों में कैद नजर आए।
पीएम मोदी इस लोकतांत्रिक-व्यवस्था के तहत मंगलवार को केवल एक भाजपा प्रत्याशी थे। हालांकि वह एनडीए-भाजपा की भाषा में तो विकास-महापुरुष हैं। फिर उनको नामाकंन के दौरान इतने तामझाम की जरुरत क्यों पड़ गई। उनके पास तो कथित तौर पर अपने दस साल के कार्यकाल की विकास-उपलब्धियों की लंबी-चौड़ी फहरिस्त है। जिसे गिनवाने लगें तो कई दिन लग सकते हैं। तब ऐसे में पीएम जैसी महान हस्ती को अपने नामाकंन में सैकड़ों वीवीआईपी जुटाने पर करोड़ों की फिजूलखर्ची क्यों करनी पड़ गई। आमजन का यही लाख टके का सवाल है कि जनता से मिले टैक्स से भरने वाले सरकारी खजाने से ही तो तमाम वीवीआईपी की सुरक्षा और हवाई यात्राओं पर खर्च किए जाते हैं।
फिर जनता के खून-पसीने की गाढ़ी कमाई से वसूले टैक्स को क्या सरकारें इसी तरह अपने शक्ति-प्रदर्शन में उड़ा देती हैं। आज देश की जनता पीएम मोदी के मेगा-शो को देखकर यही सवाल कर रही है। रही बात, बीजेपी-एनडीए की तो वही तय करके बताएं कि देश में शहजादा कौन है और उनको शहजादा कहने वाला फकीर है या शहंशाह ?