कनाडा के पीएम ट्रूडो का रुख शुरु से ही नकारात्मक
खालिस्तानी आतंकवादियों के मुद्दे पर भारत और कनाडा के रिश्तों में कड़वाहट लगातार बढ़ती जा रही है। कनाडा ने आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भारतीय राजनयिक की तरफ उंगली उठाई तो भारत ने इसे बर्दाश्त से बाहर बताते हुए अपने कुछ उच्चायुक्त को वापस बुला लिया। इसके साथ ही, भारत ने कनाडा के छह राजनयिकों को निष्कासित भी कर दिया। उसके बाद कनाडा ने पश्चिमी देशों में भारत के खिलाफ गुटबंदी की कोशिशें तेज कर दी हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने इस संबंध में यूनाइटेड किंगडम यानि यूके के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर से बात की है। ट्रूडो ने अपने विदेश मंत्री को अमेरिका और पश्चिमी देशों के उच्च पदस्थ अधिकारियों से संपर्क साधकर भारत के खिलाफ नैरेटिव सेट करने का निर्देश दिया है।
इधर, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत ने भी ट्रूडो के नफरती इरादों पर पानी फेरने के लिए कमर कस ली है। दरअसल, जस्टिन ट्रूडो जब 2015 में कनाडा के प्रधानमंत्री बने तब से ही भारत के साथ कनाडा के रिश्तों में खटास आने लगी थी। ट्रूडो से पहले के कनाडाई प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने भारत के साथ अच्छे संबंध बना रखे थे, लेकिन ट्रूडो ने भारत के प्रति उदासीनता दिखाई। फिर भारत और कनाडा के बीच संबंध धीरे-धीरे खराब होने लगे। ट्रूडो की खालिस्तानी समर्थकों के प्रति नरम नीति और जगमीत सिंह के साथ गठबंधन से यह तनाव और बढ़ा। 2018 में ट्रूडो की विवादित भारत यात्रा के बाद से संबंधों में खटास बढ़ने लगी। 2020 में किसान आंदोलन पर ट्रूडो की टिप्पणी ने भी तनाव को और बढ़ाया।
साल 2023 में हरदीप निज्जर की हत्या और ट्रूडो द्वारा भारत पर लगाए गए आरोपों ने दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों को बुरी तरह से प्रभावित किया। गौरतलब है कि 2015 में जस्टिन ट्रूडो कनाडा के प्रधानमंत्री बने तो उन्हें विरासत में भारत और कनाडा के बीच मजबूत संबंध मिले, लेकिन उन्होंने भारत को प्राथमिकता नहीं दी। साल 2016 में भारत-कनाडा संबंध ठप हो गए हैं। कुछ लोगों ने ट्रूडो पर आरोप लगाया कि उन्होंने भारत पर ध्यान देने के बजाए चीन को ज्यादा तवज्जो दी। साल 2018 में भारत के साथ संबंध सुधारने के उद्देश्य से ट्रूडो ने भारत की यात्रा की, लेकिन यात्रा विवादास्पद रही। दरअसल खालिस्तानी आतंकवादी जसपाल अटवाल को कनाडा के एक राजनयिक कार्यक्रम में निमंत्रण दिया गया था। यह निमंत्रण रद्द कर दिया गया, लेकिन इस घटना ने भारत में नाराजगी पैदा की। भारत और कनाडा ने आतंकवाद विरोधी सहयोग पर एक समझौता किया। जिसमें पहली बार खालिस्तानी आतंकवाद का उल्लेख किया गया, लेकिन कनाडा की सरकार पर खालिस्तानी समूहों के दबाव के कारण अगले साल इस रिपोर्ट से खालिस्तानी चरमपंथ का जिक्र हटा दिया गया। फिर 2020 में ट्रूडो ने भारत में चल रहे किसान आंदोलन पर टिप्पणी की, जिससे भारत ने इसे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में देखा और नाराजगी जताई।
अगले साल 2021 में ट्रूडो की पार्टी ने जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ गठबंधन किया, जो खालिस्तानी समर्थक माने जाते हैं। सिंह के भारत विरोधी रुख के कारण तनाव और बढ़ गया। इसी क्रम में 2022-2023 में कनाडा में खालिस्तानी गतिविधियों को लेकर तनाव बढ़ने लगा। भारतीय दूतावासों के बाहर खालिस्तानी प्रदर्शन हुए और भारत नाराज हुआ कि कनाडा ने इन समूहों के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाए। जून, 2023 में खालिस्तानी नेता हरदीप निज्जर की कनाडा में हत्या हो गई। भारत पहले से ही कनाडा से खालिस्तानी समूहों पर सख्त कार्रवाई की मांग कर रहा था, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। इससे तनाव और बढ़ गया। सितंबर, 2023 कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया कि हरदीप निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंटों का हाथ है। यह एक चौंकाने वाला बयान था और इससे राजनयिक तनाव अपने चरम पर पहुंच गया। भारत ने इन आरोपों को सख्ती से नकार दिया और दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को निष्कासित कर दिया। कनाडा अपने आरोपों को लेकर ठोस सबूत देने में असफल रहा तो यह तनाव और गहरा गया। भारत ने कनाडा पर खालिस्तानी अलगाववाद का समर्थन करने का आरोप लगाया। साल 2023 के अंत में कनाडा ने भारतीय राजनयिकों पर खालिस्तानी समर्थकों पर हमलों में शामिल होने का आरोप लगाया और जांच शुरू की। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए भारत ने कई राजनयिकों को वापस बुला लिया और कनाडाई राजनयिकों को निष्कासित कर दिया। व्यापार और आव्रजन से संबंधित सभी वार्ताएं बंद हो गईं और दोनों देशों के बीच संबंध गंभीर रूप से खराब हो गए। अक्टूबर, 2023 में भारत ने अपने उच्चायुक्त को कनाडा से वापस बुला लिया और कनाडा पर आरोप लगाया कि उसने भारतीय राजनयिकों की सुरक्षा करने में असफलता दिखाई है। कनाडा ने संभावित प्रतिबंधों का संकेत दिया, जबकि भारत ने कनाडा पर अपनी वैश्विक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया। दोनों देशों के बीच संबंध अब लगभग पूरी तरह से खत्म हो गए हैं। ट्रूडो ने पश्चिमी नेताओं से समर्थन मांगा, जबकि भारत ने अपनी स्थिति को अंतर्रा्ष्ट्रीय मंच पर मजबूत करने की कोशिश की है।
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