दुनिया में नाम कमाने वाली लुधियाना साइकिल इंडस्ट्री के आज टोबे के डड्‌डू जैसे हालात

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लुधियाना 16 मई। पूरी दुनिया में अपनी साइकिल का डंका बजाने वाली लुधियाना साइकिल इंडस्ट्री के आज टोबे के डड्‌डू जैसे हालात हुए पड़े हैं। यह कहना है यूसीपीएमए के पूर्व प्रधान व कारोबारी चरणजीत सिंह विश्वकर्मा का। कारोबारी चरणजीत सिंह विश्वकर्मा हाल ही में चाइना में आयोजित हुई बायसाइकिल एग्जीबिशन में हिस्सा लेकर वापिस आए हैं। जहां पर उन्होंने चाइना की साइकिल इंडस्ट्री में हो रही तरक्की देख, इंडिया की साइकिल इंडस्ट्री प्रति अपनी चिंता जाहिर की। जिन्होंने कहा कि बिना सरकारी मदद और केंद्र व पंजाब सरकार की अनदेखी के कारण लगातार देश व पंजाब की साइकिल इंडस्ट्री का सत्र गिरता जा रहा है। जबकि चाइना हमारे से कई कदम आगे निकल चुका है। अगर सरकार की और से अभी भी इस तरफ ध्यान न दिया गया तो साइकिल इंडस्ट्री पूरी तरह से खत्म हो जाएगी। इस संबंध में यूटर्न टाइम न्यूजपेपर की और से चरणजीत विश्वकर्मा के साथ खास बातचीत की गई।

हाल ही में आपने चाइना एग्जीबिशन में विजिट किया, वहां कौन से नए प्रोडक्टर्स देखने को मिले ?
चाइना में 32वीं बायसाइकिल एग्जीबिशन में यहां से 150 बायसाइकिल इंडस्ट्री के व्यापारी गए थे। एग्जीबिशन में 17 कंट्री के लोग पहुंचे। जहां पर 7400 कंपनियों के स्टॉल लगे थे। विश्वकर्मा ने कहा कि चाइना ई-व्हीकल्स पर ज्यादा फोक्स कर रहा है। एग्जीबिशन में जाने के बाद पता चला कि इंडिया चाइना से बहुत पीछे रह चुका है। भारत जहां ढ़ाई करोड़ सालाना साइकिल तैयार करता है, वहीं चाइना 25 से 30 करोड़ साइकिल तैयार कर रहा है। क्योंकि वहां पर सरकार की इंडस्ट्री को पूरी स्पोर्ट है। सरकार उन्हें खुद बताती है कि कौन सी चीज मार्केट में बिक रही है और कौन सा प्रोडक्ट बनाया जाए, जिससे सेल बढ़ सके।

आपको नहीं लगता मशीनरी एग्जीबिशन में जाना चाहिए, ताकि नई तकनीक लाई जा सके ?
पहले जुगाड़ू सिस्टम हमारे बुजुर्गों ने बनाया, वह काफी बेहतर था। लेकिन अब जुगाड़ू सिस्टम नहीं चल पाएगा। हमारी तरफ से मशीनरी एग्जीबिशन में भी जाते हैं, जबकि साइकिल हमारी फैमिली है, हम वहां पर जाकर नई तकनीक का ज्ञान लेते हैं।

इंडस्ट्री फिनिश प्रोडक्ट देखकर, यहां मंगवा, उसे बेचकर अपना मुनाफा कमाने में लगी हैं, इससे इंडस्ट्री पीछे नहीं जा रही ?
हम इस चीज के हक में न हीं है कि कोई बाहरी चीज इंडिया में इंपोर्ट की जाए। हम मेक इन इंडिया के हक में हैं। इंडस्ट्री की और से अभी भी लोकसभा चुनाव के दौरान सभी उम्मीदवारों को भी यही निवेदन की जा रही है कि जो मेक इन इंडिया के तहत हमने आइटमें बनाई है, वह बाहर से इंपोर्ट होने से बंद की जाए।

दूसरी बड़ी लार्जेस्ट इंडस्ट्री होने के बावजूद लगातार पीछे होने का क्या कारण है ?
हम प्रोडक्ट बनाते हैं, यह नहीं कि हम कुछ नहीं कर रहे। लेकिन इसमें सरकार की सहायता भी चाहिए। जैसे हमारे आरएंडडी सेंटर है। उन्हें एक्टिव होना चाहिए। चाइना की आरएंडी सेंटर काफी तेज हैं। लेकिन भारत में हम खुद ही वहां से कंपोनेंट्स लाते है और खुद ही टूल्स बनाते हैं। हमें एक टूल बनाने में 6 से 8 महीने लग जाते हैं। जब तक हम टूल बनाते हैं, तब तक चाइना दूसरे कंपोनेंट्स बना देते हैं।

आप क्या चाहते हैं कि आरएंडडी सेंटर मजबूत मिलें ?
आरएंडडी सेंटर मजबूत तो चाहिए ही साथ ही हमारे पास अत्यआधुनिक मशीनरी भी नहीं है। हम मशीनरी के शो में जाते हैं, लेकिन वहां 1 से 2 करोड़ की मशीनरी है। वह मशीनरी भी लगा लें, तो हमारे पास वॉल्यूम ही नहीं है। हम अपना माल बेचेगें किसे। अब चाइना एक चीज 50-50 हजार पीस बना देता हैं, क्योंकि उनके पास वॉल्यूम है। वह हमारे पास हो तो

अगर आप बढ़िया प्रोडक्ट बनाएंगे तो आपका प्रोडक्ट भी एक्सपोर्ट होगा ?
बेशक हम सैकेंड लार्जेस्ट इंडस्ट्री है। लेकिन हमारे पासे वॉल्यूम नहीं है। हम ढ़ाई तीन लाख साइकिल बनाते हैं। लेकिन चाइना में एक छोटी कंपनी भी 25 से 30 लाख साइकिल बना रही है। वह भी हमारे से सस्ते व कम भार वाले और नए डिजाइन के साइकिल बना रहे हैं। चाइना वाले अलॉय के फ्रेम बना रहे हैं। हमारे पास अभी भी स्टील के फ्रेंम बनाए जा रहे है। हमारे पास सब कुछ है, लेकिन वॉल्यूम नहीं है। हमारे पास कंपनियां आए और ऑर्डर करे, तो हम क्यों नहीं माल तैयार करेगें।

मतलब हम सिर्फ बड़का मार रहें, वैसे कुछ नहीं है ?
हां, यह सच है कि हम सिर्फ बड़का ही मार रहे हैं। एक्सपोर्ट मार्केट का डाटा देखा जाए तो हमने सिर्फ चार लाख साइकिल ही सिर्फ यूरोप में एक्सपोर्ट किया है। यूरोप कंपनियां हमारे पास आते है। लेकिन वह जब हमारी फैक्ट्रियां व मशीनरी देखते हैं, तो हमारा सिस्टम देख वह कैंसिल कर देते हैं। लेकिन अगर हमारे इन्फ्रास्ट्र्क्चर अच्छा हो, बढ़िया मशीनरी हो तो हमें भी ऑर्डर मिलेगें। इस सिस्टम के कारण हमारी आने वाली जनरेशन भी चिंतित है।

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