भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम जयंती महोत्सव 29 अप्रैल 2025-परशुराम ने धरती पर अन्याय व अत्याचार के खिलाफ़ आवाज उठाई थी
पृथ्वी पर जब-जब अत्याचार व पाप बढ़ते हैं तो जीवों का कल्याण व रक्षा करने संतो महात्माओं युगपुरुषों का अवतरण हुआ है, बड़े बुजुर्गों का सत्य कथन- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर भारत को पृथ्वी का सबसे बड़ा आध्यात्मिक महाकुंभ कहा जाता है, ऐसे विचार मैंने अनेकों बार बड़े बुजुर्गों से सुने हैं परंतु वर्तमान समय में हम देख रहे हैं कि कैसे बड़े-बड़े धार्मिक आध्यात्मिक आयोजन भारत में होते रहते हैं, जिसका सबसे बड़ा सटीक उदाहरण हमने अभी महाकुंभ के रूप में देखा जिसनें पूरी दुनियाँ में एक मिसाल कायम की है,हमारे बड़े बुजुर्गों का आदि अनादि काल से कहना रहा है कि जब- जब पृथ्वी पर अन्याय अत्याचार व पापों का सैलाब आता है तो ऊपर वाला किसी ने किसी रूप में अवतरित होकर उन पापियों अत्याचार्यों का दमन करने आते हैं। आज हम इस विषय पर चर्चा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि 29 अप्रैल 2025 को ऐसे ही एक अवतार भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम के रूप में हुआ था, इसीलिए ही इस न्याय के देवता की जयंती इस दिन बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है, वैसे इस दिन अक्षय तृतीया भी होती है परंतु इस वर्ष 2025 में अक्षय तृतीया 29 या 30 दोनों दिन मनाने की खबरें आ रही है।चूँकि भगवान परशुराम ने समाज में एकता समरसता का संदेश दिया है जो उनकी जयंती का महत्वपूर्ण पहलू है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम जयंती महोत्सव 29 अप्रैल 2025, परशुराम ने धरती पर अन्याय व अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई थी यह पूरी जानकारी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से ली गई है व इसकी सटीकता का प्रमाण नहीं है परंतु आदि अनादि काल से यह रीत चली आ रही है।
साथियों बात अगर हम भगवान परशुराम के जीवन को जानने की करें तो, उन्होंने एकता का सूत्र संसार को दिया है। सभी जाति और समाजों में समरसता का संदेश दिया है। भारतीय वाङमय में सबसे दीर्घ जीवी चरित्र परशुराम जी का है। सतयुग के समापन से कलयुग के प्रारंभ तक उनका उल्लेख मिलता है। भगवान परशुराम जी के जन्म समय को सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है। भारतीय इतिहास में इतना दीर्घजीवी चरित्र किसी का नहीं है। वे हमेशा निर्णायक और नियामक शक्ति रहे। दुष्टों का दमन और सत-पुरूषों को संरक्षण उनके चरित्र की विशेषता है। उनका चरित्र अक्षय है, इसलिए उनकी जन्म तिथि वैशाख शुक्ल तृतीया को माना गया। इस दिन का प्रत्येक पल, प्रत्येक क्षण शुभ मुहूर्त माना जाता है। विवाह के लिए या अन्य किसी शुभ कार्य के लिए अक्षय तृतीया के दिन अलग से मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं है। उनके जीवन का समूचा अभियान, संस्कार, संगठन, शक्ति और समरसता के लिए समर्पित रहा है। मानव जीवन को व्यवस्थित ढांचे में ढाला भगवान परशुराम ने मानव जीवन को व्यवस्थित ढांचे में ढालने का महत्वपूर्ण कार्य किया। दक्षिण के क्षेत्र में जाकर वहां कमजोर समाज को एकत्रित कर समुद्र तटों को रहने योग्य बनाया। अगस्त ऋषि से समुद्र से पानी निकालने की विद्या सीख कर समुद्र के किनारों को रहने योग्य बनाया। एक बंदरगाह बनाने का भी प्रमाण परशुराम जी का मिलता है। वही परशुराम जी ने कैलाश मानसरोवर पहुंचकर स्थानीय लोगों के सहयोग से पर्वत का सीना काटकर ब्रह्म कुंड से पानी की धारा को नीचे लाये जो ब्रह्मपुत्र नदी कहलायी। भगवान परशुराम समतावादी समाज का निर्माण करने वाले थे। भले ही उन्हें ब्राह्मणों का हितैषी और क्षत्रियों का विरोधी माना जाता रहा है। यह परशुराम जी को बेहद संकुचित आधार पर देखने की दृष्टि है। हम महापुरुषों को उनकी जाति के आधार पर देखते हैं। परंतु इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दिया गया है कि उन्होंने क्षत्रियों को इसलिए पराजित नहीं किया कि वह क्षत्रिय थे या ब्राह्मण नहीं थे। उन्होंने क्षत्रिय समाज के उन अहंकारी राजाओं को परास्त किया जो समाज रक्षण का मूल धर्म भूल गए थे। क्षत्रियों पर उनके क्रोध के पीछे का कारण को समझने से पता चलता है कि उस समय क्षत्रियों के अत्याचार और अन्याय इतने बढ़ गए थे कि उन्होंने क्षत्रियों को सबक सिखाने का प्रण किया। दूसरा अपने मौसा जी सहस्त्रबाहु द्वारा अपने पिता के आश्रम पर आक्रमण और पिता की हत्या ने भी परशुराम के क्रोध को भड़का दिया।
साथियों बात अगर हम हिंदू धर्म में परशुराम जयंती के खास महत्व की करें तो, हिन्दू धर्म में परशुराम जयंती का खास महत्व है, पंचांग के अनुसार, हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली तृतीया तिथि पर विष्णु जी के छठे अवतार भगवान परशुराम जी की जयंती मनाने का विधान है, भगवान विष्णु के इस अवतार को बहुत ही उग्र माना जाता है,धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन सच्चे मन से भगवान परशुराम की पूजा करने से ज्ञान, साहस और शौर्य आदि की प्राप्ति होती है, साथ ही जीवन में खुशियां बढ़ती हैं। भगवान परशुराम जयंती का धार्मिक महत्व परशुराम जयंती पर श्रद्धालु व्रत रखते हैं, भगवान परशुराम की प्रतिमा या चित्र की विधिपूर्वक पूजा करते हैं, उनके जन्म की कथा का पाठ, हवन और दान करना भी इस दिन विशेष पुण्यकारी माना जाता है, परशुराम जी को ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों के गुणों का प्रतीक माना जाता है, इसलिए उनकी पूजा से ज्ञान, शक्ति और न्याय की प्राप्ति होती है। भगवान परशुराम सात चिरंजीवियों अश्वत्थामा, राजा बलि, परशुराम, विभीषण, महर्षि व्यास, हनुमान, कृपाचार्य इनमें से एक हैं। भगवान विष्णु के छठे अवतार एवं ब्राह्म्ण जाति के कुल गुरु परशुराम, जिनकी जयंती वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया के दिन मनाई जाती है। मत्स्य पुराण के अनुसार इस दिन जो कुछ भी दान किया जाता है वह अक्षय रहता है यानि इस दिन किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता है। सतयुग का प्रारंभ अक्षय तृतीया से ही माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव के परम भक्त परशुराम न्याय के देवता हैं, जिन्होंने 21 बार इस पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन किया था।
साथियों बात अगर हम भगवान परशुराम के भृगु वंशी होने की करें तो, यह वही भृगु वंश है, जिसमें भृगु ऋषि ने अग्नि का आविष्कार किया था। श्रीमद्भगव द्गीता के दसवें अध्याय में भगवान ने कहा-“मैं ऋषियों में भृगु हूं” ! महर्षि भृगु को संसार का पहला प्रचेता लिखा गया है। विष्णु पुराण के अनुसार नारायण को ब्याहीं श्री लक्ष्मी महर्षि भृगु की ही बेटी थीं। समुद्र मंथन से उत्पन्न लक्ष्मी तो उनकी आभा थी। भृगु वंश में ही महर्षि मार्कण्डेय, शुक्राचार्य, ऋचीक, विधाता, दधीचि, त्रिशिरा, जमदग्नि, च्यवन और नारायण का ओजस्वी अवतार भगवान परशुराम जी का जन्म हुआ।महर्षि भृगु को अंतरिक्ष, चिकित्सा और नीति का जनक माना जाता है। अंतरिक्ष के ग्रहों और तारागणों की गणना का पहला शास्त्र भृगु संहिता है। वामन अवतार के बाद परशुराम का अवतार हुआ। वामन अवतार जहां जीव के जैविक विकास क्रम का लघु रूप था। वहीं परशुराम मानव जीवन के विकास क्रम के संपूर्णता के प्रतीक थे। ब्राह्मण समाज में भी उन्होंने सत्ता दी जो संस्कारी थे, सदाचारी थे। वही यदि कोई ब्राह्मण संस्कार विहीन है तो उसे भी पदावनत किया। साथ ही अगर कोई संस्कारवान है तो उसे ब्राह्मणों की श्रेणी में रखने में भी उन्होंने संकोच नहीं किया। उनका भाव इस जीव सृष्टि को इसके प्राकृतिक सौंदर्य सहित जीवंत बनाए रखना था। वे चाहते थे कि यह सारी सृष्टि पशु पक्षियों, वृक्षों, फल फूल और समूची प्रकृति के लिए जीवित रहे। उनका कहना था कि राजा का धर्म वैदिक जीवन का प्रसार करना है ना कि अपनी प्रजा से आज्ञा पालन करवाना।
साथियों बात अगर हम भगवान परशुराम के संबंध में पौराणिक कथाओं की करें तो, भगवान परशुराम का जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ। यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को एक बालक का जन्म हुआ था। वह भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम,जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण करने के कारण वह परशुराम कहलाए। जब माता पृथ्वी ने श्री विष्णु से की विनती पुराणों के अनुसार कार्तवीर्य अर्जुन नाम का राजा था जो महिष्मती नगरी पर शासन करता था। राजा कार्तवीर्य और उसके अनेकों सहयोगी क्षत्रिय राजा मित्र विनाशकारी कार्यों में लिप्त थे और वह सब मिलकर अकारण ही निर्बलों पर अत्याचार करते थे। उनके अनाचार और अत्याचार से सभी जगह हाहाकार मच गया,निर्दोष जीवों के लिए जीना कठिन हो गया। इस सबसे दुखी होकर माता पृथ्वी ने भगवान नारायण से पृथ्वी और निर्दोष प्राणियों की सहायता करने के लिए विनती की। माता पृथ्वी की मदद के लिए भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में देवी रेणुका और ऋषि जमदग्नि के पुत्र के रूप में अवतार लिया। भगवान परशुराम ने कार्तवीर्य अर्जुन तथा सभी अनाचारी राजाओं का अपने फरसे से वध कर माता पृथ्वी को उनकी हिंसा और क्रूरता से मुक्त कराया।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम जयंती महोत्सव 29 अप्रैल 2025- परशुराम ने धरती पर अन्याय व अत्याचार के खिलाफ़ आवाज उठाई थी।भगवान परशुराम ने समाज में एकता समरसता का संदेश दिया जो उनकी जयंती का महत्वपूर्ण पहलू है। पृथ्वी पर जब-जब अत्याचार व पाप बढ़ते हैं तो जीवों का कल्याण व रक्षा करने संतो महात्माओं युगपुरुषों का अवतरण हुआ है, बड़े बुजुर्गों का सत्य कथन है।
*-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र *