डालते चलो ! बस वोट डालते चलो !!

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लोकतंत्र की सेहत के लिए जरूरी है कि मतदाता जागरूक हो । जागरूक मतदाता ही लोकतांत्र को हर संकट से बचाता है। सत्ता वोटर को नचाती है और वोटर सत्ता को। वोटर ने अतीत में नायकों,खलनायकों और तो बड़े -बड़े अधिनायकों को कत्थक कराया है। 2024 के आम चुनाव में भी भारतीय मतदाता जिस तर्ज पर मतदान कर रहा है उसे देखकर पता नहीं क्यों सत्तारूढ़ दल की नींद उड़ी हुई है। मतदान के पहले दो चरणों ने तो सत्तारूढदल को बहुत निराश किया है।
मुझे यद् है की 1965 में एक फिल्म आई थी ‘हम सब उस्ताद है ‘ इस फिल्म के लिए हमारे उस्ताद असद भोपाली ने एक गीत लिखा था -‘ हो प्यार बांटते चलो
प्यार बांटते चलो
हे प्यार बांटते चलो
प्यार बांटते चलो
क्या हिन्दू क्या मुसलमान
हम सब हैं भाई भाई ‘
आज मुझे लगता है कि असद भाई होते तो इस गीत को दोबारा लिखते और कहते
-‘ वोट डालते चलो
वोट डालते चलो
हे वोट डालते चलो
वोट डालते चलो
क्या हिन्दू,क्या मुसलमान
हम सब हैं भाई -भाई ‘
दरअसल भारत का वोटर भारतीय होने के नाते वोट डालता है। लेकिन पहली बार हमारे पंत प्रधान ने वोटरों को हिन्दू -मुसलमान में विभक्त कर दिया। वोटरों में भक्तों अंधभक्तों की जमात अलग है । पंत प्रधान ने वोटरों को डराया,मुसलमानों का भय दिखाया ,कहा वे सत्ता में आये तो मंगलसूत्र लूट लेंगे। आपकी विरासत उन मुसलमानों में बाँट देंगे जो ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं। वोटर पंत प्रधान के इस आव्हान से भ्रमित हो गए और इसका असर पहले और दूसरे चरण के मतदान पर साफ़ दिखाई दे रहा है। अपेक्षित मतदान न होने से मोशा जोड़ी की नींद उड़ गयी है। मोशा जोड़ी चाहती थी कि भारत में भी रूस की तर्ज पर कम से कम 87 फीसदी मतदान तो होता ताकि मोदी जी को पुतिन जैसा जन समर्थन मिलने का डंका बजाया जा सकता।
हम लोग सनातनी हैं इसलिए धार्मिक ग्रंथों में हमारी अटूट आस्था है। राम चरित मानस की चौपाइयां तो हमारे लिए सूत्रों /मंत्रों के सदृश्य है। मानस में कहा गया है कि – होइहै वो ही जो राम रची रखा। को कह तर्क बढ़ावहि साखा।। इसलिए मतदान के प्रतिशत को लेकर हम कोई तर्क/वितर्क करना ही नहीं चाहते। सत्तारूढ़ दल कम मतदान से चिंतित है तो हमारी बला से। हम तो सिर्फ इतना जानता हैं कि वोटरों को हिन्दू-मुसलमान बने बिना अपने वोट का इस्तेमाल करना चाहिए। यही राजधर्म है । यही राष्ट्रप्रेम है। इसी से सद्गति भी मिलती है । इसी से अच्छे दिन आते-जाते रहते हैं।
केंचुआ के आंकड़े बताते हैं कि लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 12 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश की 88 सीटों के लिए शुक्रवार शाम छह बजे तक 68.49 फीसदी मतदान हुआ। सात राज्यों में मतदान 70 फीसदी से अधिक रहा। त्रिपुरा में सर्वाधिक 79.66 फीसदी मतदान हुआ। राजस्थान को छोड़कर हिंदी पट्टी में मतदान को लेकर उत्साह नजर नहीं आया। सरकार और सरकारी पार्टी को लगता है कि हमारा वोटर केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला का कहा बुरा मान गया। कम से कम राजपूत तो मान ही गए इसलिए उन्होंने या तो जानबूझकर भाजपाई होते हुए भाजपा के पक्ष में मतदान नहीं किया ,या किया है तो भाजपा को सबक सिखाने के लिए किया है। राजपूत अपने जातियय अपमान को कदापि नहीं भूल पाए यद्यपि राजनाथ सिंह से लेकर योगी आदित्यनाथ तक ने कस -बल लगाया।
मोशा के लिए भाजपा को और माननीय नरेंद्र मोदी जी को तीसरी बार सत्ता में लाने के लिए सबसे ज्यादा उम्मीद उत्तरप्रदेश के मतदाताओं से है किन्तु दूसरे चरण के मतदान में उत्तरप्रदेश के मतदाताओं ने ही सबसे ज्यादा गैर जिम्मेदारी से मतदान किया। आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर 54.85 फीसदी मतदान हुआ। अमरोहा में सबसे अधिक 64.02 फीसदी व मथुरा में सबसे कम 49.29 फीसदी मतदान हुआ। वहीं, बुलंदशहर में 55.79, मेरठ में 58.70, बागपत में 55.93, गौतमबुद्धनगर में 53.21, गाजियाबाद में 49.65 और अलीगढ़ में 56.62 फीसदी वोटिंग हुई। अब मथुरा से तो स्वपन सुंदरी हेमा मालिनी जी चुनाव लड़ रहीं है। यदि उनके प्रति भी मतदाता का आकर्षण कम हुआ है तो फिर दूसरों के बारे में कहा ही क्या जा सकता है। अब हेमा जी भी क्या क्या करे । अपने मतदाताओं का ख्याल रखें या बिजली के पंखों और आरओ के विज्ञापन करें ?
लोकतंत्र में चुनाव कि एक-दो नहीं पूरी सात भाँवरें डाली जाती है। अभी तो केवल दो भाँवरें पड़ीं हैं और मोशा की जोड़ी को दिन में तारे नजर आ रहे हैं। मुमकिन है कि राहुल गाँधी और उनकी टीम के साथ भी ऐसा ही हो रहा हो किन्तु वे अपने माथे पर शिकन नहीं पड़ने दे रहे। उन्हें सत्ता में आने की फ़िक्र है न कि भाजपा की तरह सत्ता से बाहर जाने की। सत्ता का स्वाद चख चुके भाजपा के मनीषी नेता अब बिना सत्ता के रह नहीं सकते। मुमकिन है कि सत्ता के बिना उन्हें पक्षाघात हो जाये । दिल का दौरा पड़ जाय। रक्तचाप ऊपर-नीचे हो जाये। दुसरे चरण के बाद सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने हर सूबे में जाकर आपात बैठकें की है। शायद वे पछता रहे हैं कि उन्होंने कांग्रेस से बहुत कुछ सीखा लेकिन आपातकाल लगना क्यों नहीं सीखा ? उनकी चिंता को समझा जा सकता है। समझा जाना चाहिये । आखिर भाजपा वाले मुसलमानों की तरह कोई बाहरी व्यक्ति तो हैं नहीं !
हम इस बात के सख्त खिलाफ हैं कि देश के मतदाताओं को हिन्दू या मुसलमान में बांटा जाये। हमें ये भी अच्छा नहीं लगता कि देश का मतदाता भक्तों और अंधभक्तों की तरह पहचाना जाये। जैसे सत्ता परम स्वतंत्र होती है वैसे ही मतदाता को भी परम स्वतंत्र होना चाहिये । कम से कम मतदान के दिन तो ऐसा होना ही चाहिए। परम स्वतंत्र मतदाता ही सही फैसला कर सकता है । ऐसे परम स्वतंत्र मतदाता को डराया -धमकाया नहीं जा सकता। न हिन्दू को मुस्सलमान से और न मुसलमान को हिन्दू से। सदियों से वे साथ-साथ रहते आये है। वे भाजपा के जन्म से पहले भी हिलमिलकर रहते थे और भाजपा के बाद भी हिल-मिलकर ही रहने वाले हैं। न भाजपा उन्हें देश निकाला दे सकती है और न कांग्रेस। किसी ने किसी का मंगलसूत्र कभी नहीं छीना। अभी तक तो किसी कि विरासत पर कोई टैक्स लगा और न आगे लगेगा।
दरअसल भाजपा सैम अंकल की एक बात को लेकर उड़ पड़े। जबकि सेम अंकल ने सिर्फ एक बात प्रसंगवश विमर्श के लिए जनता के सामने रखी थी। मतदान के तीसरे से लेकर सातवें चरण तक मतदाताओं को एक ही बात रखना चाहिए कि ये चुनाव देश के लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए हो रहा है। ये चुनाव हिन्दू-मुसलमान के लिए नहीं बल्कि एक नए हिन्दुस्तान के लिए हो रहें हैं ,जिसमें अदावत न हो ,घृणा न हो विद्वेष न हो। भाई-चारा हो। लेकिन ऐसा देश राजनितिक दल तो बनने नहीं दे सकते। ये काम तो केवल और केवल देश का मतदाता कर सकते हैं। इस समय देश के सामने जो चुनावी मुद्दे होना चाहिए थे,वे सिरे से नदारद हैं। उन्हें गोल कर दिया गया है। अब ये वोटर को देखना है कि कौन -क्या कर रहा है ? अभी बहुत वक्त है। बस वोट डालते चलो ,वोट डालते चलो। क्या हिन्दू ,क्या मुसलमान हम सब हैं भाई-भाई। हमारे बीच जो विभाजक रेखा खींचना चाहता है ,उसे पहचानों और उसे मोक्ष प्रदान करो।
@ राकेश अचल
achalrakesh1959@gmail.comj

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