सत्यशील अग्रवाल
समाज में यह सामान्य प्रथा प्रचलित है कि समाज में, परिवार में अथवा विश्व में मानव के दु:ख से हम विचलित होते हैं, दु:खी या पीड़ित जनों के लिए सहानुभूति रखते हैं और यथा सम्भव उनका दु:ख दूर करने का प्रयास करते हैं। यह बात अलग है कि जितना करीब का रिश्ता उस व्यक्ति के साथ होता है उतनी ही सहानुभूति एवं सहायता हम उस व्यक्ति को देते हैं। एक कहावत भी प्रचलित है कि एक बार किसी के सुख में शामिल न हों परन्तु दु:ख की घड़ी में अवश्य साथ देना चाहिये। एक अन्य कहावत है दु:खी के साथ सहानुभूति करते समय मित्र या शत्रु की पहचान नहीं करनी चाहिये अर्थात् दु:ख में सबके साथ शामिल होना चाहिये। मानव को मानव मात्र के कल्याण के लिये सोचना एक उचित और आवश्यक प्रचलन है।
परन्तु आज के युग में एक बात अक्सर देखने में आती है, वह है ‘हम अपने दु:ख से कम दु:खी होते हैं अपेक्षाकृत दूसरे के सुख से अधिक दु:खी होते हैं।’ परिणामस्वरूप वह या तो अपने सम्बन्ध खराब कर लेता है अथवा द्वेष वश उसे नीचा दिखाने के उपाय सोचने लगता है ताकि उसकी आत्म-सन्तुष्टि हो सके। अर्थात् उसके पतन में वह अपना सुख अनुभव करता है और इस द्वन्द में अपने दु:खों को दूर करने के प्रयास करना भी भूल जाता है। हमारे समाज में यह व्यवहार आम प्रचलन में आ रहा है जबकि हमारे मानसिक तनाव का मुख्य कारण भी यही व्यवहार बनता जा रहा है। अपने दु:खों और कष्टों के अतिरिक्त हम इस प्रकार के अवांछनीय व्यवहार से उत्पन्न मानसिक तनाव अतिरिक्त रूप में बढ़ा लेते हैं।
इस प्रकार की सोच हमें बदलनी होगी तभी हमें वास्तविक रूप में प्रसन्नता मिल सकेगी। इससे हमारा लाभ ही होगा नुकसान तो बिल्कुल भी नहीं। यदि सम्भव हो तो ऐसे प्रयास किये जाने चाहिये कि अपने परिजनों, रिश्तेदारों और हितैषियों के चेहरे पर मुस्कान ला सकें। यदि हमारे सहयोग से किसी को लाभ मिलता हो अथवा खुशी प्राप्त होती है तो हमें सहयोग देने से पीछे नहीं हटना चाहिये, फिर भले ही हमें कुछ धन या शारीरिक कष्ट ही क्यों न उठाना पड़े। इस प्रकार का अनुभव करने वाले जानते हैं कि उनके मन को कितनी शांति प्राप्त होती है।
खुशी का प्रदर्शन करने के विभिन्न पहलू हो सकते हैं जो व्यक्ति से हमारी घनिष्ठता पर निर्भर करता है जैसे:- अपने देश के दूर दराज के भागों में अथवा विदेश में घटित खुशखबरी के लिये सिर्फ अपनी भावनाएं व्यक्त करना ही काफी नहीं है, उसके लिये टेलीफोन अथवा एस.एम.एस. अथवा डाक द्वारा बधाई सन्देश भेजकर उनकी सफलता अथïवा खुशी में शामिल हो सकते हैं। यदि अपने शहर की बात है तो सफलता अथवा खुशी के समारोह में उपस्थित होकर प्रसन्नता व्यक्त की जा सकती है और बधाई दी जा सकती है।
घनिष्ठ व्यक्ति के साथ खुशी मनाने के लिये तन मन से सहयोग कर उसकी खुशी में चार चांद लगाये जा सकते हैं और उसे सफलता के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है। साथ ही उससे अपने सम्बन्धों में प्रगाढ़ता विकसित की जा सकती है तथा उसे अपनेपन का अनुभव कराया जा सकता है।
यदि कोई ऐसा व्यक्ति जो आपका प्रतिद्वन्दी अथवा शत्रु है तो भी उसकी खुशी में औपचारिकता निभाने में संकोच नहीं करना चाहिये। कभी-कभी तो आपके इस व्यवहार से कटुता समाप्त भी हो सकती है, बिगड़े सम्बन्धों में सुधार आ सकता है। आपके खुशी व्यक्त करने से आपके व्यक्तित्व में चार चांद लग जाते हैं तथा आपका समाज में कद ऊंचा हो जाता है।
अनेक परिवार, जहां लोग निरंकुश स्वभाव रखते हैं, घर के मुख्य सदस्य अर्थात् बुजुर्ग परिवार के अन्य सदस्यों के साथ हमेशा सख्त व्यवहार रखते हैं। जब वे खुश हैं तो सब सदस्य खुश होने को स्वतंत्र हैं, परंतु यदि उनका मूड खराब है अथवा सामान्य स्थिति में जब वे प्रसन्न नहीं हैं तो किसी भी सदस्य का आराम करना अथवा खुशी व्यक्त करना उनके लिये असहनीय होता है। ऐसे में घर के अन्य सदस्य घर में आते ही तनावग्रस्त हो जाते हैं। ऐसे परिवारों में आपसी सामंजस्य समाप्त हो जाता है और घर के सदस्य घर के अतिरिक्त यार-दोस्तों में अपनी खुशियां ढूंढऩे लगते हैं। परिवार एक धर्मशाला के रूप में परिवर्तित हो जाता है या फिर बिखराव की स्थिति आ जाती है। अत: हमें सबकी खुशी में खुश होने की आदत डालनी होगी। सभी की भावनाओं को सम्मान देना होगा तभी हम अपने सम्मान की आशा कर सकते हैं। इस प्रयास से देश और समाज की उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। सबकी उन्नति से हमारी उन्नति व खुशी भी निश्चित है। एक बार आजमा कर तो देखिये।
(विभूति फीचर्स)