नई दिल्ली/चंडीगढ़, 8 सितंबर
राज्यसभा सदस्य और पर्यावरणविद् संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने कहा कि बाढ़ से राहत पाने के लिए हमें प्रकृति के करीब जाना होगा और बाढ़ के मैदानों को नदियों के लिए छोड़ना होगा। पिछले 29 दिनों से बाढ़ प्रभावित लोगों के साथ व्यक्तिगत रूप से खड़े संत सीचेवाल ने इस बात पर ज़ोर दिया कि हमें वैश्विक जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए अपनी फ़सलों की योजना बनानी होगी। जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए समाज को तैयार रहना होगा। उन्होंने कहा कि जिस विकास मॉडल को बढ़ावा दिया जा रहा है, उसने तबाही मचाई है, जंगलों और पहाड़ों को नष्ट किया है।
संत सीचेवाल ने बताया कि सभ्यताएँ नदियों के किनारे बसने का कारण यह था कि नदियाँ उपजाऊ मिट्टी लाती थीं, जिससे कृषि को लाभ होता था। लेकिन जब से मनुष्यों ने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ शुरू की है, तब से उन्होंने लगातार मुसीबतें बढ़ाई हैं।
गौरतलब है कि पंजाब में सतलुज, व्यास, रावी और घग्गर नदियों के किनारे लगभग 900 किलोमीटर लंबे मिट्टी के तटबंध हैं। इनमें सतलुज के किनारे 226 किलोमीटर, रावी के किनारे 164 किलोमीटर, व्यास के किनारे 104 किलोमीटर और घग्गर के किनारे लगभग 100 किलोमीटर लंबे तटबंध शामिल हैं। इसके अलावा, छोटी नदियों और नालों के किनारे लगभग 300 किलोमीटर लंबे अस्थायी तटबंध भी हैं। ये तटबंध 1950 और 60 के दशक में बनाए गए थे, लेकिन इस साल की बाढ़ ने पानी के पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।
संत सीचेवाल ने सुझाव दिया कि इन तटबंधों को मज़बूत बनाने के लिए, उन पर स्थायी सड़कें बनाई जानी चाहिए और रास्ते में पेड़ लगाए जाने चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि बाढ़ रोकने का सबसे आसान तरीका है कि हर खेत या हर ट्यूबवेल पर कम से कम पाँच पेड़ लगाए जाएँ। पंजाब में लगभग 14 लाख ट्यूबवेल हैं, और अगर हर एक पर पाँच पेड़ लगाए जाएँ, तो 70 लाख पेड़ों की बढ़ोतरी होगी। ये पेड़ बाढ़ को कम करने में मदद करेंगे और समय पर बारिश भी सुनिश्चित करेंगे।